पेपर लीक की घटनाओं ने परीक्षा व्यवस्थाओं पर भरोसे को कम किया है और गारंटी के साथ चयन के लिए अनुचित तरीके अपनाने के प्रलोभन को बढ़ावा मिला है। ऐसी प्रथाओं को रोकने के लिए जरूरी है- कड़े उपायों का कार्यान्वयन, कड़ा आर्थिक दंड लगाना और विश्वास बहाली एवं योग्यता-आधारित सफलता के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए पारदर्शी और निष्पक्ष परीक्षा प्रक्रिया सुनिश्चित करना। हमें यह भी स्मरण रखना चाहिए कि नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की स्थापना उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश परीक्षाओं के लिए प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को शामिल करते हुए स्वायत्त और आत्मनिर्भर परीक्षण संगठन के रूप में की गई थी। एनटीए का संचालन एक निकाय के हाथ में है जिसके सदस्यों में संघ लोक सेवा आयोग के पूर्व चेयरमैन, आइआइटी, एनआइटी, आइआइएम के निदेशक और जेएनयू एवं इग्नू के कुलपति जैसे प्रतिष्ठित लोग हैं जिनकी सत्यनिष्ठा पर कभी संदेह नहीं किया जा सकता। हालांकि, यह मुद्दा नीति निर्माण और क्रियान्वयन, दोनों स्तरों से जुड़ा है। ऐसे में समाधान भी दोनों स्तरों पर जरूरी है। कुछ प्रस्तावित समाधान इस तरह हैं –
जिन परीक्षाओं में पांच लाख से ज्यादा अभ्यर्थी हों, वहां द्विस्तरीय फिल्टरिंग मॉडल अपनाया जाए द्ग प्रारंभिक और मुख्य परीक्षाओं सहित। यदि अभ्यर्थियों की संख्या 20 लाख से ज्यादा है तो कठोर अनुशासन के रूप में त्रि-स्तरीय प्रारम्भिक, मुख्य चरण 1 और मुख्य चरण 2 व्यवस्था लागू की जाए। अंतिम फाइनल लिस्ट, मुख्य चरण 1 और मुख्य चरण 2 में प्राप्त औसत अंकों के आधार पर होनी चाहिए। यह दृष्टिकोण कई चरणों के जरिए उम्मीदवारों को परखकर निष्पक्षता और शुचिता के साथ व्यापक मूल्यांकन प्रक्रिया सुनिश्चित करता है। इस व्यवस्था के क्रियान्वयन से बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों का प्रबंधन करने से जुड़ी चुनौतियों का समाधान होगा, कदाचार का जोखिम कम होगा और अधिक विश्वसनीय परीक्षा प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा।
कुछ शहरों या केन्द्रों को संवेदनशील या अतिसंवेदनशील के रूप में चिह्नित करना भी अहम होगा, जैसे चुनाव आयोग मतदान केन्द्रों को करता है। ऐसे केन्द्रों की सीसीटीवी कैमरों से लगातार निगरानी होनी चाहिए। इस सक्रिय दृष्टिकोण से परीक्षाओं में विश्वास बहाली और अनियमितताओं को कम करने में मदद मिलेगी।
‘सलेक्शन’ और ‘रिजेक्शन’ की परीक्षाओं के बीच का अंतर स्पष्टत: परिभाषित हो और इसका समाधान निकाला जाए। अयोग्य छात्रों को बाहर करने के लिए नीट और जेईई जैसी परीक्षाओं को ‘रिजेक्शन’-आधारित बनाया गया है यानी आवश्यक मानक पूरे न करने वाले छात्रों को प्रक्रिया से बाहर करना। यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि केवल सबसे सक्षम और मेधावी छात्र ही सफल हों। कठिन प्रश्न बैंक, ऑनलाइन टेस्टिंग और एआइ आधारित प्रॉक्टर्ड परीक्षा (तकनीकी-सक्षम निगरानी सॉफ्टवेयर का उपयोग) से विश्वसनीयता बढ़ सकती है। शुचिता के लिए वैश्विक मानक वाले साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल को लागू करना जरूरी है। प्रश्नपत्रों के रख-रखाव में बायोमीट्रिक सत्यापन से लीक की घटनाओं को रोका जा सकता है। तकनीकी उपाय जैसे निरंतर सर्विलांस, डिजिटल एन्क्रिप्शन (सूचनाओं को गुप्त कोड में परिवर्तित करना) और सुरक्षित ट्रांसमिशन, निष्पक्षता व सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों को रोकने के उपाय की दिशा में 21 जून को अधिसूचित सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम-2024 काफी महत्त्वपूर्ण है। यह कानून व्यापक समर्थन का हकदार है क्योंकि यह ईमानदार छात्रों की कड़ी मेहनत, उनकी आकांक्षाओं की रक्षा व पारदर्शी प्रणाली सुनिश्चित करता है। ग्रेस मार्क्स प्रणाली को समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि इससे अनुचित लाभ की आशंका बनी रहती है।
सरकार की त्वरित कार्रवाई यानी सात केंद्रों पर 1,563 छात्रों के लिए नीट की परीक्षा फिर करवाना सराहनीय है। सीबीआइ की कार्रवाई से गलत कार्यों में शामिल दलालों, शिक्षकों, प्राचार्यों और अन्य लोगों की गिरफ्तारी हुई है। यह कार्रवाई सभी छात्रों के लिए उचित अवसर सुनिश्चित करने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सरकार और सीबीआइ जैसी जांच एजेंसियों के बीच ऐसे सहयोगात्मक कदम अनियमतिताएं दूर करने और परीक्षा प्रणाली में विश्वास बहाली के लिए आवश्यक हैं।
विपक्ष को परीक्षा लीक और धोखाधड़ी जैसे मुद्दों पर मददगार समाधानों के साथ आगे आना चाहिए। हमें छात्रों की भलाई को प्राथमिकता देते हुए उनके शैक्षिक और करियर लक्ष्यों का समर्थन करने के लिए सुरक्षित और पारदर्शी परीक्षा माहौल बनाना चाहिए। राष्ट्र के सुनहरे भविष्य के लिए यही अनुकूल होगा।