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चरितार्थ करना होगा ‘सा विद्या या विमुक्तये’

विदेशी आक्रांताओं ने हमारे विद्यारूपी जिस स्वर्णिम वृक्ष को खोद दिया है, उसी वृक्ष की जड़ों को पुन: भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों से पोषित करना होगा। विष्णु पुराण के श्लोक ‘सा विद्या या विमुक्तये’ को चरितार्थ कर भारत को हम पुन: विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने का संकल्प लें।

Jan 23, 2023 / 09:55 pm

Patrika Desk

चरितार्थ करना होगा 'सा विद्या या विमुक्तये'

चरितार्थ करना होगा ‘सा विद्या या विमुक्तये’


चरितार्थ करना होगा ‘सा विद्या या विमुक्तये’

डॉ. शिव सिंह राठौड़
संस्थापक
शिक्षाविद और पूर्व कार्यवाहक अध्यक्ष, राजस्थान लोक सेवा आयोग

‘तत्कर्म यन्न बंधाय सा विद्या या विमुक्तये। आयासायापरम् कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्।’ श्री विष्णु पुराण में उल्लेखित इस श्लोक का अर्थ है कि कर्म वही है, जो बंधन में ना बांधे, विद्या वही है जो मुक्त करे। अन्य सभी कर्म केवल निरर्थक क्रिया व अन्य सभी अध्ययन केवल कारीगरी मात्र हैं। इसी श्लोक को केन्द्र में रखते हुए वैदिक काल से विदेशी आक्रांताओं के आगमन तक भारतीय विद्या गुरुकुल परंपराओं के माध्यम से दी जाती रही। इसी प्रणाली के बल पर भारत विश्वगुरु कहलाया। विदेशी आक्रांताओं ने हमारे अमूल्य साहित्य व शिक्षा संस्थानों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। मुख्य रूप से अंग्रेजी शासनकाल में शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कर इसे शिक्षित दास उपलब्ध कराने की फैक्ट्री बना दिया गया। आज की शिक्षा प्रणाली तो मात्र व्यवसाय के अतिरिक्त कुछ नहीं। एक होड़ मची हुई हैं, डॉक्टर, इंजीनियर, आइएएस बनने-बनाने की। प्राचीन शिक्षा व्यवस्था विद्यार्थी की नैसर्गिक योग्यताओं पर बल देती थी। अर्जुन धनुष चलाने में कुशल थे, तो भीम गदा संचालन में। गुरु द्रोण यदि दोनों को एक ही भांति प्रशिक्षित करते, तो सोचिए क्या होता। अभिभावक और शिक्षक विद्यार्थी की योग्यता को समझे बिना बस एक भेड़-चाल का अनुसरण करने में लगे हैं। वर्तमान शिक्षा प्रणाली से बेरोजगारी पनप रही है।
आज हम नई और तेजी से बदलती संभावनाओं के युग में जी रहे हैं। नई तकनीक अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाएगी। कोई भी अर्थव्यवस्था, कोई भी क्षेत्र, इस परिवर्तन से अलग नहीं रहेगा। आगामी लगभग चार दशकों तक हमारी जनसंख्या का बड़ा भाग युवा होंगे। हम इस शक्ति का लाभ तभी उठा सकते हैं, जब हमारे युवा अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रशिक्षित हों। युवाओं को इनोवेशन और स्व उद्यम के लिए प्रेरित करें, हमारी नई पीढ़ी के विद्यार्थी रोजगार खोजने वाले नहीं, बल्कि रोजगार देने वाले बनें। नव उद्यमियों को समाज में आदर दें, उन्हें प्रोत्साहित करें, उद्यमिता के लिए सामाजिक परिवेश बनाएं। ऐसी आशा की जा सकती है कि नई शिक्षा नीति के तहत मातृ भाषा में शिक्षा से शिक्षा की नींव मजबूत होगी तथा अपनी मातृ भाषा में पढऩे से विषय को रटने की बजाय विषय की समझ बढ़ेगी। इससे उच्च शिक्षा में विद्यार्थी अपनी रुचि से सही विषय का चयन कर पाएंगे। अपने पसंद के विषय के चयन की स्वतंत्रता नई शिक्षा नीति में होने की वजह से वे अपने अंदर के कौशल को निखार पाएंगे। वरना वर्तमान में दूसरों की सलाह पर प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिक अंक पाने वाले विषय का चयन कर एवं विदेशी आक्रांताओं की पीढिय़ों के नाम याद कर प्रतियोगी परीक्षा में अधिक अंक पाने की होड़ विषय को दिल से नहीं जोड़ पाती। केवल नियुक्ति पाने के लिए उपाधि प्राप्त करने के कारण वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षा का पेपर परीक्षा से पूर्व येन-केन प्राप्त करने का विकृत माहौल खड़ा हो गया है।
शिक्षा को व्यापार बनाकर प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल बनाने के सपने, राजनीति का शिक्षा में हस्तक्षेप, लुप्त गुरु-शिष्य परंपरा, सरकारी नौकरियों की तरफ बढ़ता आकर्षण, भर्ती संस्थाओं में कम होता विश्वास, देरी से प्राप्त होते न्याय की वजह से आज की विद्या युवा वर्ग को मुक्त करने की बजाय नियुक्ति के मोह में बांध रही है। इसीलिए शिक्षा से नियुक्ति के लिए कर रहे गैरकानूनी प्रयास से एक बड़ा वर्ग ‘सा विद्या या नियुक्तये’ को चरितार्थ कर रहा है। सही मार्ग पर चलकर संघर्ष कर रहा विद्यार्थी अपने आपको ठगा महसूस कर रहा है। यह बात ध्यान रखना आवश्यक है कि किसी व्यक्ति की योग्यता का प्रमाण विश्वविद्यालय प्रदत्त प्रमाण-पत्र नहीं, अपितु जीवन संग्राम में सत्य के पथ पर चलते हुए किए गए शास्त्रार्थ से प्राप्त ज्ञान है। यह ज्ञान ही व्यक्ति को जीवन-चक्र के प्रति सचेत अंतर्दृष्टि देकर सिद्धार्थ से बुद्ध बनाने में सक्षम है। विदेशी आक्रांताओं ने हमारे विद्यारूपी जिस स्वर्णिम वृक्ष को खोद दिया है, उसी वृक्ष की जड़ों को पुन: भारतीय संस्कृति एवं मूल्यों से पोषित करना होगा। विष्णु पुराण के श्लोक ‘सा विद्या या विमुक्तये’ को चरितार्थ कर भारत को हम पुन: विश्वगुरु के रूप में स्थापित करने का संकल्प लें।

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