मध्य पूर्व ऐसे जटिल क्षेत्र में तब्दील हो गया है, जहां फिलहाल शांति और स्थिरता के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते। इराक के विघटन, सीरिया में संघर्ष और मिस्र-लीबिया में उथल-पुथल से इस क्षेत्र में हालात पहले से बिगड़े हुए हैं। व्यापक सामाजिक असंतोष, जातीय-सांप्रदायिक विभाजन और जिहादवाद का विस्तार आग में घी साबित हो रहे हैं। नसरल्लाह की मौत ने कट्टरपंथी देशों और संगठनों को फिर लामबंद होने का मौका दे दिया है। धुर प्रतिद्वंद्वी ईरान और इराक के स्वर एक जैसे हो गए हैं। ईरान ने इजरायल के हमले को ‘युद्ध अपराध’ बताया है तो इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुडानी ने नसरल्लाह की मौत पर तीन दिन के शोक का ऐलान करते हुए कहा कि इजरायल ने सभी हदें पार कर दी हैं।
अमरीका और ब्रिटेन ने हिज्बुल्लाह को आतंकी संगठन घोषित कर रखा है। यह राजनीतिक पार्टी भी है। लेबनान की संसद में इसके प्रतिनिधि हैं। पार्टी सरकार में भी शामिल है। ईरान की शह पर हिज्बुल्लाह इजरायल पर हमले करता रहा है। नसरल्लाह की मौत के बाद ईरान के लिए इजरायल पर हमले करना आसान नहीं लगता। दो महीने पहले तेहरान पर हमले में हमास नेता इस्माइल हनिया की मौत पर भी ईरान ने इजरायल को ‘अंजाम भुगतने’ की धमकी दी थी। गनीमत है कि वह कुछ मिसाइल दागने से ज्यादा आगे नहीं बढ़ा। दरअसल, ईरान और हिज्बुल्लाह बखूबी जानते हैं कि वे अत्याधुनिक हथियारों वाले इजरायल से सीधा मुकाबला नहीं कर सकते। ईरान इससे भी बेखबर नहीं है कि इजरायल के दोस्त अमरीका के क्रूज मिसाइलों से लैस युद्धपोत तट पर खड़े हैं। ईरान भले हमले न करे, मध्य पूर्व में तनाव बना रहेगा। इस क्षेत्र को तनाव मुक्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोशिशों की दरकार है।