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मेडिकल शिक्षा के नाम पर खानापूर्ति से नहीं सुधरेगी सेहत

मेडिकल शिक्षा को सही दिशा में आगे बढ़ाना जरूरी है। हमें ऐसे चिकित्सकों को तैयार करना है जो स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें। विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ व्यावहारिक अनुभव भी दिया जाना जरूरी है।

जयपुरNov 05, 2024 / 12:56 pm

विकास माथुर

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पिछले वर्षों में भारत में चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में काफी कुछ बदलाव हुआ है। नए मेडिकल कॉलेज खोलने के साथ-साथ चिकित्सा शिक्षा के अधिक अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि वर्ष 2014 से पहले देश में केवल 387 मेडिकल कॉलेज थे, वहीं 2023 तक इनकी संख्या बढ़कर 706 हो गई है। जाहिर तौर पर इन प्रयासों से चिकित्सा शिक्षा में एमबीबीएस की सीटों में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
देश में एलोपैथिक चिकित्सकों की कमी दूर करने की दिशा में इन प्रयासों को सकारात्मक रूप में देखा जा सकता है। तमाम प्रयासों के बावजूद कई गंभीर चुनौतियां भी हैंं जो मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता और विद्यार्थियों के प्रशिक्षण को प्रभावित कर रही हैं। गाहे-बगाहे ऐसे समाचार सामने आते हैं जिनमें देश में खुलने वाले नए मेडिकल कॉलेजों में आधारभूत ढांचे के साथ-साथ अनुभवी फैकल्टी सदस्यों और संसाधनों की कमी की बातें उजागर होती हैं। नेशनल मेडिकल कमीशन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, मेडिकल कॉलेज में प्रत्येक विषयों के विशेषज्ञ शिक्षकों की आवश्यकता होती है, ताकि विद्यार्थियों को समुचित जानकारी और प्रशिक्षण मिल सके। वास्तविकता यह है कि ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में ये मानक पूरा नहीं हो पाता है। अक्सर देखा गया है कि नेशनल मेडिकल कमीशन के निरीक्षण के समय मेडिकल कॉलेजों द्वारा दूसरे कॉलेजों से फैकल्टी सदस्य कुछ दिनों के लिए बुलाकर खानापूर्ति कर दी जाती है।
निरीक्षण के समय रोगियों को भी नि:शुल्क शिविर लगाकर भर्ती कर लिया जाता है। इस प्रकार की तात्कालिक व्यवस्था से मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थियों को ज्यादा सीखने को नहीं मिलता। अनुभवी फैकल्टी की कमी को पूरा करने के लिए देशभर में फैकल्टी नियुक्ति अभियान चलाने की जरूरत है। योग्य शिक्षकों को आकर्षित करने के लिए उच्च वेतनमान, प्रोत्साहन और सुविधाएं दी जानी चाहिए ताकि वे मेडिकल कॉलेजों में योगदान देने के लिए प्रेरित हों। इसके अलावा, ऐसे अनुभवी प्रशिक्षकों का होना भी अनिवार्य है जो विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव भी दे सकें। शिक्षकों की कमी से चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करती है। नए खुलने वाले मेडिकल कॉलेजों में कैडेवर और उन्नत प्रयोगशालाओं का अभाव भी एक गंभीर चुनौती है। कैडेवर के जरिए विद्यार्थियों को मानव शरीर के जटिल अंगों और संरचना का अध्ययन करने में मदद मिलती है। देखा जाए तो हर स्तर पर ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। सिर्फ डिग्री देना काफी नहीं है मेडिकल शिक्षा को सही दिशा में आगे बढ़ाना भी जरूरी है। हमें ऐसे चिकित्सकों को तैयार करना है जो समाज के स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें। चिकित्सा शिक्षा में सुधार की यह यात्रा इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल छात्रों के भविष्य को आकार देती है बल्कि पूरे देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को भी प्रभावित करती है। आखिरकार, चिकित्सा शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ प्रत्येक व्यक्तिको गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिल सके। यह तभी संभव होगा जब चिकित्सा शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जाए।
चिकित्सा शिक्षा में सुधार के लिए सरकार को कड़े नियम लागू करने की जरूरत है, जिनसे यह सुनिश्चित किया जा सके कि मेडिकल विद्यार्थी नियमित रूप से कॉलेज आएं और प्रायोगिक कक्षाओं में सक्रिय रूप से भाग लें। उपस्थिति को अनिवार्य करना और विद्यार्थियों को क्लीनिकल केस पर काम करने के अवसर देना एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है। जब विद्यार्थी मरीजों की समस्याओं को समझकर उनके इलाज की प्रक्रिया में भाग लेते हैं, तो वे एक कुशल चिकित्सक बनने के लिए आवश्यक कौशल हासिल करते हैं। मेडिकल शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए सरकार को स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा का बजट बढ़ाना होगा। सरकार को मेडिकल कॉलेजों में इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के साथ फैकल्टी सदस्योंकी कमी को दूर करना होगा।
— डॉ. सुरेश पांडेय

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