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patrika opinion बेवजह विवादों से बचना होगा चुनाव आयोग को

आयोग के पास सभी राज्यों के त्योहार, विवाह व परीक्षाओं की तिथियों आदि की पहले से ही जानकारी होती है। इसके बावजूद त्योहारों की वजह से उसे मतदान की तारीखों में परिवर्तन करना पड़ता है।

जयपुरNov 04, 2024 / 10:00 pm

Gyan Chand Patni

Election commission

Election commission


सवाल जब विश्वसनीयता का हो तो क्या संवैधानिक संस्थाओं को फैसले और अधिक विचार-विमर्श के बाद नहीं करने चाहिए? इस सवाल का जवाब हां के अलावा दूसरा कोई हो ही नहीं सकता। बात भारत के चुनाव आयोग की है। आयोग ने सोमवार को तीन राज्यों की १४ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए मतदान अब १३ की जगह २० नवम्बर को कराने का फैसला किया है। यह बात सही है कि आयोग को जरूरत के मुताबिक अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अधिकार है। चुनाव तारीखों में बदलाव भी इसी अधिकार के तहत किया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर चुनाव आयोग को एक बार मतदान तिथि तय करने के बाद क्यों बदलनी पड़ जाती है?
उत्तरप्रदेश में कार्तिक पूर्णिमा, केरल में कलपाथिरास्थोसेवम और पंजाब में गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व के चलते क्षेत्र की मांग के अनुरूप मतदान की तारीखों में बदलाव करना पड़ा है। चुनाव आयोग किसी भी राज्य में मतदान की तिथियां ही नहीं बल्कि संपूर्ण चुनाव कार्यक्रम तय करने से पूर्व वहां के प्रशासनिक और राजनीतिक लोगों से विचार-विमर्श करता है। आयोग के पास सभी राज्यों के त्योहार, विवाह व परीक्षाओं की तिथियों आदि की पहले से ही जानकारी होती है। इसके बावजूद त्योहारों की वजह से उसे मतदान की तारीखों में परिवर्तन करना पड़ता है। पिछले माह हरियाणा में हुए विधानसभा चुनावों में भी आयोग ने पहले एक अक्टूबर को मतदान की घोषणा की थी लेकिन बाद में इसे पांच अक्टूबर कर दिया गया। कारण बताया गया कि बिश्नोई समाज के एक पर्व के कारण मतदान तिथि में बदलाव किया गया है। हरियाणा में भी चुनाव कार्यक्रम तय करने से पूर्व चुनाव आयोग के दल ने राज्य का दौरा किया था। प्रशासनिक और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से राय-मशविरा भी हुआ था। आयोग इतने अहम पर्व की जानकारी जुटाना आखिर क्यों भूल गया? इन राज्यों में भी आयोग ने गहन विचार विमर्श किया होता तो शायद मतदान तिथि बदलने की नौबत नहीं आती। इससे पहले वर्ष २०२२ में पंजाब में चुनाव आयोग ने एक बार मतदान तिथि घोषित कर एक सप्ताह आगे बढ़ा दी थी। राजस्थान में गत वर्ष हुए विधानसभा चुनावों में भी इसी तरह विवाह का अबूझ सावा टकराने के कारण मतदान तिथि में बदलाव करना पड़ा था।
आयोग की मंशा सही हो सकती है लेकिन ये तमाम सवाल इसलिए भी उठते हैं क्योंकि अनेक राजनीतिक दल आयोग के फैसलों में बदलाव के लिए ऊपरी दबाव को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। चुनाव आयोग दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव प्रकिया पूरी कराता है। उसे ऐसे बेवजह विवादों से बचना ही चाहिए।

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