पिछले दिनों ही जम्मू-कश्मीर में विशेष सैन्य टुकड़ी भी तैनात की गई है जिसमें वहां के चप्पे-चप्पे से वाकिफ जवानों को शामिल किया गया है। ग्राम स्तरीय सुरक्षा टोलियों का गठन भी इससे आगे का कदम कहा जाना चाहिए। यह उपाय सेना के आने तक गांव की सुरक्षा की अवधारणा पर आधारित है। जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति बहुत जटिल है। सभी जगह और दुर्गम इलाकों से सटे गांवों में सेना हर समय मौजूद नहीं रह सकती। सेना की ओर से हथियार चलानेे का प्रशिक्षण देने के साथ ही इन ग्राम रक्षा दल के जवानों को हथियार भी मुहैया करवाए जा रहे हैं ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति में सेना या पुलिस के पहुंचने से पहले आतंकियों से दो-दो हाथ किए जा सकें। स्थानीय स्तर पर सुरक्षा कवच की मजबूती के इस उपाय का स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन सुरक्षा दस्ते में जिन्हें शामिल किया जा रहा है उनकी पूरी पड़ताल भी जरूरी है। निगाह इस बात की रखनी होगी कि कहीं ऐसे किसी सुरक्षा दस्ते में शामिल होकर कोई आतंकियों का मददगार नहीं बन जाए। सेेना की कार्यप्रणाली, रणनीति और उसकी ताकत का भेद आतंकियों तक पहुंच जाए तो ’यादा खतरा हो सकता है। ऐसे में गांव की इस सेना में युवाओं का चयन ठोक-बजाकर करना होगा। एक बड़ी आवश्यकता इस बात की भी है कि आतंकियों के स्थानीय मददगारों की कमर तोड़ी जाए। अब तक की छोटी-बड़ी आतंकी घटनाओं में यह बात भी सामने आई है कि किसी न किसी रूप में आतंकियों को स्थानीय लोगों की मदद भी मिलती आई है।
देश की सुरक्षा के लिए खतरा बने ऐसे देशद्रोहियों पर पैनी नजर रखनी होगी। क्योंकि ऐसे लोग ही आतंकियों की घुसपैठ की राह भी आसान करते रहे हैं। दूसरी सबसे बड़ी जरूरत उस रास्ते को बंद करने की है जिस रास्ते से आतंककारी व आतंकी संगठनों को आर्थिक मदद आती है। कुल मिलाकर चुनावों के मौके पर चौतरफा मोर्चाबंदी करनी होगी।