रिपोर्ट दावा करती है कि दिल्ली ने साफ हवा में सांस केवल गर्मियों में तब ली थी, जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था। अब देश के कई शहरों में हवा में प्रदूषण का स्तर सामान्य से काफी ज्यादा है। यह खुलासा नया नहीं है। इससे पहले भी कई रिपोर्टों में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में तेजी के साथ वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार शहरों का बेतरतीब विकास और वहां रहने वाले लोगों की लाइफ स्टाइल है। सड़कों पर बढ़ती गाडिय़ों की भीड़ भी लगातार कार्बन की मात्रा बढ़ा रही है। ऐसे में सवाल यही है कि सरकारें और नगरीय विकास विभाग शहर की योजनाओं को बनाते समय प्रदूषण जैसे मुद्दे पर गंभीरता से क्यों नहीं सोचते हैं? क्यों नहीं शहरी विकास की कार्ययोजना में प्रदूषण कम करने के बारे में चर्चा होती है? हम साफ सुथरी हवा को लोगों के मूलभूत अधिकार के तौर पर क्यों नहीं देखते हैं?
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विकास की अंधी दौड़ में हमने प्रदूषण खासकर वायु प्रदूषण को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है। नगर नियोजन की योजनाएं बनती हैं और कागजों में दफन हो जाती हैं। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत भी देश के सबसे ज्यादा प्रदूषित 102 शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए अभियान चल रहा है। कोशिश है कि 2024 तक इसमें 20 से 40 फीसदी की कमी लाई जाए। यह दावा कागजों में ही बेहतर लगता है, लेकिन जब तक हम शहर की कार्य योजना में इस मद्दे को शामिल नहीं करेंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता। हमें इस पर एक बार फिर से सोचने की जरूरत है। शहर के लोगों के साथ जिम्मेदारों को आगे आने की जरूरत है, तभी नियोजित विकास के जरिए इस पर काबू पाया जा सकता है।