बांग्लादेश में राजनीतिक अनिश्चितता के लिए भले ही ठीकरा छात्रों के सिर पर फोड़ दिया जाए लेकिन इसके पीछे अनेक दिमाग काम कर रहे थे। पर्दे के पीछे से अमरीका अपनी चालें चल रहा था तो चीन और पाकिस्तान अपने तरीके से षड्यंत्र का ताना-बाना बुन रहे थे। कट्टरपंथी ताकतें भी अपना खेल खेल रही थीं। बांग्लादेश किस रास्ते पर जाएगा, यह कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन इतना तय है कि ये देश अब पाकिस्तान की तरह अस्थिरता के रास्ते पर जाता हुआ दिख रहा है। आने वाली सरकार से तय होगा कि इसके भारत के साथ संबंध कैसे रहते हैं। यदि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार आती है तो उसमें कौन-से दल होंगे? कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी जैसे दल सरकार में शामिल होते हैं तो बांग्लादेश भी तालिबान राज की तरफ जा सकता है। इससे भारत के साथ संबंध खराब हो सकते हैं। चिंता वहां रहने वाले आठ फीसदी हिंदुओं की भी है। सत्रह करोड़ आबादी वाले बांग्लादेश में सवा करोड़ हिंदू जनसंख्या है। वहां के माहौल से हिंदुओं में भय है। 1975 में वहां हुए सैन्य तख्ता पलट के समय भी ऐसा ही माहौल था। तब भी शेख हसीना ने भारत में शरण ली थी।
पड़ोसी देश में हुआ यह राजनीतिक घटनाक्रम भले ही बांग्लादेश का आंतरिक मामला हो लेकिन यह हर हाल में भारत और भारतीय लोगों को प्रभावित करेगा। इसलिए भारत सरकार और यहां के राजनीतिक दलों को पूरी संवेदनशीलता दिखाने के साथ-साथ सतर्कता भी बरतनी होगी। राजनीतिक फायदे के लिए राजनेताओं को कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे हालात और बिगड़ें। भारत ने पहले भी समझदारी दिखाई है और अब भी हर फैसला सोच-समझ कर लेगा।