एक उदाहरण तो आज भी मेरे सामने हैं। एक ड्राइवर ने 32 वर्ष नौकरी करके इस्तीफा दे दिया। उसको पेंशन देने से कृपालु अधिकारी ने यह कहकर मना कर दिया कि उसने इस्तीफा दिया है, सेवानिवृत्ति नहीं मांगी। यही ‘दरियादिली’ पूरे परिवहन निगम को घाटे में रखे हुए है। हम ही खाएंगे, किसी को खाने नहीं देंगे। कागज पर शब्द ठीक कराया जा सकता था। उसके बच्चों की परवरिश तो हो जाती। डूब मरना चाहिए ऐसे तानाशाहों को।
समाचार में कितने बिन्दु थे जहां लाभ रोका जा रहा है। मानो ये कर्मचारियों पर मेहरबानी की जा रही हो, खैरात बांट रहे हों अथवा अफसर अपने वेतन से दे रहा हो।
- 1. संशोधित नियमों के अनुसार पेंशन नहीं दी जा रही !
- 2. सातवें वेतन आयोग में पे-मेट्रिक के अनुसार निगम की ओर से 2.57 प्रतिशत के हिसाब से पेंशन बनती है। इसमें बकाया महंगाई भत्ते जैसा भुगतान नहीं हो रहा।
- 3. बकाया अधिश्रम भत्ता, रात्रि भत्ता आदि का भुगतान नहीं हो रहा।
- 4. सीपीएफ पेंशनर्स के निराकरण में हायर पेंशन में आ रहीं विसंगतियों का निराकरण नहीं हो रहा।
- 5. 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को दस प्रतिशत अतिरिक्त पेंशन वृद्धि नहीं दी जा रही।
पेंशन लेना भी लाचारी भरा काम है। ले लो, जो दे रहे हैं, नहीं तो किसके आगे रोओगे।
परिवहन क्षेत्र में ही निजी बसों वाले भी तो कमा रहे हैं। वहां न टायर चोरी होते हैं, न डीजल और न बिना टिकट यात्रा संभव है। सरकार में वही आदमी कैसे चोर और भ्रष्ट बन जाता है! मध्यप्रदेश में तो सारी बसें नेता-अफसर-माफिया चलाते हैं। विभाग भी बंद नहीं है। वहां भी सरकार है, यहां भी सरकार है। जहां कर्मचारी ही दु:खी है, वहां आम नागरिक कैसे सुखी होगा। सरकार को जांच करानी चाहिए- कौन खा गया सारा धन। आज तो प्राथमिकता से सारी टोल टैक्स की आय से कर्मचारियों को पेंशन -बकाया भत्तों का भुगतान करना चाहिए। अन्यथा सरकारी नौकरी पर आशंका के प्रश्न उठने लग जाएंगे!