माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 17 दिसम्बर 2024 को एक फैसला दिया है जिसमें न्यायाधीश जे.बी.पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने रिहायशी क्षेत्र में बने व्यावसायिक कॉम्पलेक्स को तुरन्त ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसी प्रकार के आदेश राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर शहर के मास्टर प्लान को न बदलने के दिए हैं। खेद है कि न तो इन आदेशों पर अमल होता है, न कोई मानहानि होती और न ही परिस्थितियों में कोई परिवर्तन दिखता। अवैध निर्माण सरकारों का मुख्य व्यापार बन गया है। आने वाली पीढ़ियां क्या कंकरीट के वनों में, बिना किसी सुविधा और सुरक्षा के रह सकेगी? हरे-भरे शहर लुट रहे हैं, प्रदूषण राज की चपेट में। अकेले भोपाल में हर साल दस हजार टन सूक्ष्म कण हवा में घुल रहे हैं। खतरनाक उद्योगों की जहरीली वायु शहर के मध्य में प्रतिष्ठित हो गई है।
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मध्यप्रदेश के 89 शहरों में मास्टर प्लान बने, किन्तु लागू 22 में ही हुए। क्यों? क्योंकि सरकार ही नहीं चाहती। राजधानी भोपाल में ही 19 साल पुराना मास्टर प्लान लागू है। भ्रष्टाचार का इससे बड़ा मुकुट और क्या हो सकता है! अभी तो वे अधिकारी भी जीवित होंगे, जिन्होंने यह मास्टर प्लान बनाया और वे भी जिन्होंने इसके बाद नया नहीं बनने दिया। मगरमच्छी आंसू इनके आदेशों में दिखाई पड़ते हैं। इंदौर और जबलपुर में तो दो बार नए मास्टर प्लान बनाए भी, बस्तों में बन्द किसने किया, हमें क्या पता! सच्चाई तो यह है कि मास्टर प्लान का मुद्दा भू-माफिया और ऊपर की बड़ी कमाई का है। कानून के खिलाफ अवैध कारोबार के लिए सरकारी शह (आश्रय) देने से जुड़ा है। सम्पूर्ण प्रदेश में नजर दौड़ाकर देखें-चारों ओर मंत्री-नेता-अधिकारी-भू-माफिया और दलालों ने मिलकर हजारों बीघा जमीनें कब्जे में कर रखी हैं। प्रदेश में मोटे अनुमान के अनुसार 3000 से ज्यादा अवैध कॉलोनियां हैं। इनमें मूलभूत सुविधाएं कैसे हों। अभी भी 2-3 दिन में एक बार जल की सप्लाई और 4-6 घंटे तक अधिकतम बिजली उपलब्ध है-अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में। जहां-जहां सुविधाओं के और ग्रीनबेल्ट के प्रावधान होते हैं, वहीं अतिक्रमण आमंत्रित होता है। प्रदूषण से देश में 21 लाख लोग हर साल मरते हैं, सरकारों की कृपा से।
भोपाल में आज गंदे जल (सीवरेज) की निकासी पूरी नहीं है। करीब 40 प्रतिशत गंदगी तो आज भी तालाबों और नदियों में मिल रही है। प्रदेशभर में लाखों टन कचरे के ढेर लगे हैं। बड़े तालाब के किनारे बड़े लोगों के अतिक्रमण। वन क्षेत्र, कैचमेण्ट क्षेत्रों आदि में पिछले बीस वर्षों में 22 बार भू-उपयोग परिवर्तन की धारा 16 में परिवर्तन कर डाले। जिसके जो हाथ पड़े-लूट ले गए। इस परिवर्तन की आंधी में लगभग 700 भू-क्षेत्रों के उपयोग बदले गए। अधिकांश परिवर्तन सितम्बर 24 से नवम्बर 24 तक (लगभग 50 फाइलों में) हुए। आज इन क्षेत्रों में नीलबड़, रातीबड़ से लेकर सेवनिया गोंड, प्रेमपुरा, बरखेड़ा नाथू क्षेत्रों में निजी और सरकारी क्षेत्रों में जो निर्माण हो रहे हैं, किसको नजर नहीं आ रहे? क्या सरकारी स्वीकृति के बिना संभव है? नहीं! कैसे मेंडोरा-मेंडोरी से लेकर समसगढ़ का वन क्षेत्र नए बंगलों में खो गया?
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अफसर कितने शातिर होते हैं! इंदौर में नए मास्टर प्लान में 79 गांवों को जोड़ने का निर्णय हुआ 2021 के प्लान के बाद। इनके नक्शे पास करने और भू-उपयोग परिवर्तन पर रोक लगा दी। भू-माफिया को सूचना पहुंचनी ही थी। उन्होंने भोपाल मुख्यालय में धारा-16 में भू-उपयोग के आदेश करवा लिए और 60 नक्शे पास हो गए। इसका असर यह पड़ा कि इस क्षेत्र की ग्रीनबेल्ट 14 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत रह गई। देश में लालू यादव के समय तो केवल चारा खाया गया, यहां तो गांव के गांव खा जाते हैं। कहने का अर्थ यह है कि जो कुछ हो रहा है, अपने आप नहीं हो रहा। सोच समझकर करवाया जा रहा है, सरकार करवा रही है। अफसरों को रोकने की क्षमता सरकार में नहीं है। नदी में पानी तो वहीं से आता है। सरकारी बसें शुरू करने की घोषणाएं कई बार हो गई, आगे भी होती रहेंगी। लागू कौन करेगा, कौन करवाएगा? जहां सरकारें स्वयं दोषी हों, वहां कार्रवाई कौन करे? क्या सरकार से उम्मीद हो सकती है कि वह अतिक्रमण रोकेगी? मास्टर प्लान हर शहर में लागू होंगे-दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी? आज तो चारों ओर अंधेरा ही है, रोशनी की मशाल युवाओं के हाथ में है या फिर प्रधानमंत्री कार्यालय ही लोगों की सुध ले सकता है।