Opinion : पैदल व साइकिल सवारों की सुध लेना अच्छा कदम
कानून की नजर से देखें तो सड़क पर सबसे पहले चलने का अधिकार पैदल चलने वाले का होता है। जबकि शहरों में सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल और गायब होते फुटपाथों को देखकर तो कहीं लगता नहीं कि पैदल चलने के इस अधिकार की जरा सी भी रक्षा की जा रही है। अब शहरी नियोजन […]
कानून की नजर से देखें तो सड़क पर सबसे पहले चलने का अधिकार पैदल चलने वाले का होता है। जबकि शहरों में सड़कों पर वाहनों की रेलमपेल और गायब होते फुटपाथों को देखकर तो कहीं लगता नहीं कि पैदल चलने के इस अधिकार की जरा सी भी रक्षा की जा रही है। अब शहरी नियोजन एवं विकास पर सुझाव देने के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति ने शहरों की सड़क योजना में पैदल व साइकिल से चलने वालों का खास ध्यान रखने की बात कहते हुए इन्हें भी यातायात की परिभाषा में शामिल करने की सिफारिश की है। केंद्र सरकार के वर्ष 2022 के बजट में की गई घोषणा के अनुरूप यह उच्च स्तरीय समिति बनाई गई थी। समिति की सिफारिश पर अमल करने की ज्यादा जरूरत इसलिए भी है क्योंकि सड़क हादसों में होने वाली मौतों में बीस फीसदी पैदल चलने वाले होते हैं। हैरत की बात यह है कि हमारे शहरों में जब कभी सड़कों पर यातायात का दबाव बढ़ता है तो सबसे पहले फुटपाथ छोटे करने या इन्हें खत्म ही कर देने का काम होता है। सड़कों पर सुगम व सुरक्षित आवागमन की योजनाओं में पैदल चलने का अधिकार न जाने कहां गुम हो जाता है?
पिछले साल ही केंद्र सरकार की ओर से यातायात-परिवहन से जुड़ी एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया था कि देश के शहरों में 74 फीसदी से ज्यादा सड़कें फुटपाथ रहित है। जहां कहीं फुटपाथ है भी तो उनका अधिकांश हिस्सा पैदल चलने लायक नहीं है। यानी पैदल चलने के लिए सुरक्षित रखे जाने वाले फुटपाथ भी अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं। बचे-खुचे फुटपाथों पर चलने वालों से पूछा जाए कि उन्हें कितनी बाधाएं पार करनी पड़ी तो गिनती बताना ही मुश्किल होगा। एक तरफ शहरों में सार्वजनिक परिवहन के साधनों की कमी रहती है, वहीं दूसरी ओर पैदल या साइकिल से आवागमन करना चाहने वाले हर वक्त डरे-सहमे से रहते हैं। चलने का अधिकार देना और इसे कठोरता से लागू करना दोनों अलग-अलग विषय हैं।
यह सचमुच चिंता का विषय है कि सड़कों का जाल जिस विस्तार से फैल रहा है, उससे कहीं ज्यादा रफ्तार से पैदल चलने वालों की हादसों में मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। हालांकि सड़क निर्माण के कानून-कायदों में पैदल चलने वालों की सुरक्षा भी तय की हुई है। सबसे अहम जरूरत इन सड़कों के निर्माण के वक्त ही फुटपाथ और साइकिल ट्रेक के लिए अलग से जगह छोडऩे की है तब ही हादसों पर अंकुश लग सकेगा। पैदल चलने वाले व साइकिल चालकों के लिए कानूनी प्रावधान करना ही काफी नहीं, सख्ती से अमल भी जरूरी है। ठोस उपाय नहीं किए गए तो ये सदैव खुद को असुरक्षित ही महसूस करते रहेंगे।
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