Opinion : बोरवेल हादसे: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश भी बेअसर क्यों?
बोरवेल मासूम बच्चों के लिए मौत का कुआं साबित हो रहे हैं। इस महीने ही राजस्थान में दौसा और जयपुर के कोटपूतली के बाद अब मध्य प्रदेश के गुना जिले में एक बच्चा बोरवेल में गिर गया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र के एक गांव में 2006 में प्रिंस नाम के बच्चे के बोरवेल में गिरने का […]
बोरवेल मासूम बच्चों के लिए मौत का कुआं साबित हो रहे हैं। इस महीने ही राजस्थान में दौसा और जयपुर के कोटपूतली के बाद अब मध्य प्रदेश के गुना जिले में एक बच्चा बोरवेल में गिर गया। हरियाणा के कुरुक्षेत्र के एक गांव में 2006 में प्रिंस नाम के बच्चे के बोरवेल में गिरने का हादसा सुर्खियों में रहा था। तब ऐसे हादसों को रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे किए गए, लेकिन 18 साल बाद भी खतरा जस का तस है। हैरानी की बात है कि 2010 में बोरवेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बाद भी देशभर से समय-समय पर ऐसे हादसों की खबरें आती रहती हैं। गाइडलाइन में साफ कहा गया था कि बोरवेल के हादसे के लिए जिला कलक्टर जिम्मेदार होंगे। पिछले 14 साल में ऐसे सैकड़ों हादसे हो चुके हैं। शायद ही किसी कलक्टर के खिलाफ कार्रवाई की गई। प्रशासन सिर्फ हादसे के वक्त हरकत में आता है और अगले हादसे तक के लिए फिर आंखें मूंद लेता है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक बोरवेल की खुदाई से पहले कलक्टर/ग्राम पंचायत को लिखित सूचना देना जरूरी है। खुदाई करने वाली सरकारी, अद्र्धसरकारी संस्था या ठेकेदार का रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। इन नियमों की लगातार अनदेखी की जा रही है। लोग प्रशासन की इजाजत के बगैर बोरवेल खुदवा लेते हैं। विडंबना है कि प्रशासन के पास अपने इलाके के अवैध बोरवेल का कोई आंकड़ा नहीं है। एनसीआरबी के पास जरूर चिंताजनक आंकड़े हैं कि 2006 से 2015 तक देशभर में बोरवेल, गड्ढों और मैनहोल में गिरने से 16,281 लोगों की मौत हुई। इन आंकड़ों के आधार पर ही राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बल (एनडीआरएफ) ने कहा था कि आतंकी घटनाओं के मुकाबले देश ऐसे हादसों में ज्यादा नागरिक खो रहा है। यह पहलू भी चिंताजनक है कि बोरवेल में किसी बच्चे के गिरने के बाद सेना और एनडीआरएफ बचाव अभियान में बेबस नजर आते हैं। चांद पर यान उतारने वाले भारत के पास चीन जैसी स्वचालित तकनीक क्यों नहीं है, जिसके जरिए बच्चों को बोरवेल से जल्दी बाहर निकालने में मदद मिले? ऐसे हादसों की चपेट में आने वाले सभी बच्चे हरियाणा के प्रिंस की तरह मौत को अंगूठा नहीं दिखा पाते। जब तक उन्हें बाहर निकाला जाता है, उनकी सांसों का सफर थम चुका होता है।
बोरवेल हादसों की रोकथाम के लिए सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का सख्ती से पालना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में विशेष चौकसी जरूरी है। सभी बोरवेल की नियमित जांच होनी चाहिए। कोताही बरतने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए। हादसे पर घडिय़ाली आंसू बहाने की बजाय प्रशासन की सजगता खतरे को काफी हद तक कम कर सकती है।
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