कम बजट के होंगे क्रिएशन पहले जिस तरह से डिजाइनर और क्लाइंट के बीच सम्पर्क रहता था, वह अब नहीं रहेगा। यानी, आप अपने क्लाइंट से आमने-सामने बैठकर उतनी बात नहीं कर पाएंगे, जितनी पहले होती रही हैं। क्लाइंट से ऑनलाइन ही बात करनी होगी। ऐसे में क्लाइंट की पसंद और फिटिंग का बारीकी से ध्यान रखना होगा। उसके अलावा ऐसे प्राकृतिक फैब्रिक या कपड़ों पर काम करें जो ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल हों। अब तक हम पार्टी वियर ड्रेस और रोजाना पहने जाने वाले कपड़े अलग डिजाइन करते थे, लेकिन कोरोना के कारण आयोजनों का दायरा और स्वरूप सिमटा है, जिसका असर आदमी के सोचने की क्षमता पर भी पड़ा है। इसलिए हमें अपने क्रिएशन का बजट भी छोटा करना होगा।
ऐसे कपड़ों के बारे में बताएं जिन पर संक्रमण न टिके ः अब बात यह कि आप क्या क्रिएट करेंगे? तो इसका जवाब है कि सबसे पहले तो क्लाइंट को लेटेस्ट फैशन के बारे में बताना होगा। उन्हें ऐसे कपड़ों के बारे में बताना होगा जिन पर वायरस या बैक्टीरिया का असर दूसरे कपड़ों के मुकाबले कम रहता है। फैब्रिक के चयन के बाद ज्यादा फास्ट-करंट पर क्रिएशन न करते हुए कम से कम स्टाइल के साथ सिलाई और डिजाइनिंग करनी होगी। जब हम क्लाइंट से ऑनलाइन मीटिंग कर रहे हैं तो फैब्रिक और डिजाइन को लेकर हमारा कंसेप्ट-समझ स्पष्ट होनी चाहिए। मेक इन इंडिया का ध्यान रखते हुए इंडिया में बनने वाले फैब्रिक पर हम क्रिएशन करेंगे। इंडियन फैब्रिक की की बात करें तो वह विदेशी कपड़ों के मुकाबले काफी कम है।
टेक्नो फ्रेंडली बनें, डिजिटल शोरूम होंगे कारगर ः सोशल डिस्टेंसिंग के इस दौर में फैशन शो की बात करें तो अब हम किसी पोर्टल या चैनल के माध्यम से ही हमारा कलेक्शन दिखा पाएंगे, क्योंकि ग्राहक की न तो कहीं जाने में दिलचस्पी है और न ही वह हमारे आयोजन में आना चाहता है। ऐसे में डिजाइनर्स को टेक्नो फ्रेंडली होना होगा। मुझे यह भी लगता है कि अब शोरूम भी छोटे होते जाएंगे, क्योंकि डिजिटल शोरूम ज्यादा कारगर साबित होंगे।