scriptसंपूर्ण जीव जगत से जोड़ता है नल्लामुथु का सिनेमा | Patrika News
ओपिनियन

संपूर्ण जीव जगत से जोड़ता है नल्लामुथु का सिनेमा

किस तरह एक मजबूत बाघिन अंतिम दिनों में लाचार हो जाती है, यह भी यहां नजर आता है। नल्लामुथु बाघ को जानवर समझने ही नहीं देते। वे अहसास कराते हैं कि बाघ भी हमारी तरह जीव हैं । वास्तव में हम जब सिनेमा की बात करते हैं, तो याद रखना चाहिए एक सिनेमा नल्लामुथु जैसे संवेदनशील प्रतिभाशाली फिल्मकारों का भी है, जिससे जुडऩा अपने संपूर्ण जीव जगत से जुडऩा है।

जयपुरJun 23, 2024 / 05:22 pm

Gyan Chand Patni

विनोद अनुपम
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त कला समीक्षक
सुब्बैया नल्लामुथु ने 9 वर्ष एक बाघ के पीछे व्यतीत कर दिए। ‘एलिफेंट व्हिस्परर्स’ को ऑस्कर मिलने के बाद निर्देशक कार्तिकी गोंसाल्विस ने कहा था, उन्हें हाथियों की इस कहानी को शूट करने में 5 वर्ष लगे, यदि पंद्रह लगते तब भी वे देंती। वास्तव में वाइल्ड लाइफ पर बनीं फिल्में देखना जितना सहज लगता है, उसे तैयार करना उतना ही कठिन होता है। जंगली जानवरों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता, न ही निर्देशित कर सकते। फिर भी ऐसी कहानी दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है, जहां वे थोड़ी संवेदना और ढेर सारा प्यार महसूस कर सकें।
वर्षों तक किसी जंगली जानवर की गतिविधियों को हर पल रिकॉर्ड करते जाना कि क्या पता सेकंड के किस हिस्से में कोई विलक्षण भाव दिख जाए, वाकई कौशल, असीम धैर्य और जिद की मांग करता है। ऐसे में बाघों के प्रति अपनी पूरी मेधा को समर्पित कर देने वाले फिल्मकार सुब्बैया नल्लामुथु को मुबई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के अवसर पर ‘वी शांताराम लाइफटाइम अचिवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया जाना संतोष देता है। इस अवार्ड की चर्चा हालांकि थोड़ी कम होती है, लेकिन डॉक्यूमेंट्री के क्षेत्र में इसका महत्त्व ‘दादा साहब फाल्के सम्मान’ के बराबर ही माना जाता है।
नल्लामुथु की विशेषता है कि अपनी कल्पनाशीलता और रचनात्मकता से उन्होंने अपने वृत्त चित्रों को कठोर यथार्थ से परे कोमल कहानियों में बदल दिया। वे कहते भी हैं कि बाघों में मनुष्य के समान ही तमाम संवेदनाएं होती हैं, जाहिर है जब मनुष्य की कहानियां कही जा सकती हैं तो उसी संवेदना से बाघों की क्यों नहीं। बाघों पर तो उन्होंने 5 वृत्त चित्र बनाए, जिसमें से अधिकांश राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हुए। इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण ‘द वल्र्ड मोस्ट फेमस टाइगर’ माना जाता है, जो रणथंभौर नेशनल पार्क की बाघिन मछली पर बना है। 2007 से उन्होंने मछली को शूट करना शुरू किया और उसकी मृत्यु तक (2016) वे लगातार 9 वर्षों तक उसकी गतिविधियों को शूट करते रहे। इस फिल्म का जब उन्होंने पोस्ट प्रोडक्शन आरंभ किया तो उनके पास एक कैमरे से शूट किए 250 घंटे से अधिक के फुटेज थे, जिससे लगभग 45 मिनट की फिल्म तैयार की गई। इस फिल्म में एक बाघ का जीवन मात्र नहीं है, इसमें उसके दोस्त, उसके दुश्मन, उसके परिवार, उसके बच्चे, उसकी संवेदना सब कुछ पूरी संवेदनशीलता से दिखता है।
किस तरह एक मजबूत बाघिन अंतिम दिनों में लाचार हो जाती है, यह भी यहां नजर आता है। नल्लामुथु बाघ को जानवर समझने ही नहीं देते। वे अहसास कराते हैं कि बाघ भी हमारी तरह जीव हैं । वास्तव में हम जब सिनेमा की बात करते हैं, तो याद रखना चाहिए एक सिनेमा नल्लामुथु जैसे संवेदनशील प्रतिभाशाली फिल्मकारों का भी है, जिससे जुडऩा अपने संपूर्ण जीव जगत से जुडऩा है।

Hindi News/ Prime / Opinion / संपूर्ण जीव जगत से जोड़ता है नल्लामुथु का सिनेमा

ट्रेंडिंग वीडियो