scriptकारोबार से बड़ी भावना | India-US Trade War: Big feeling from business | Patrika News
ओपिनियन

कारोबार से बड़ी भावना

अमरीका अपने डेयरी उत्पादों के आयात पर भारत के रुख को बचकाना बता रहा है। भारत का तर्क है कि यह हमारी धार्मिक व सांस्कृतिक संवेदनाओं से जुड़ा मुद्दा है।

Mar 10, 2019 / 03:49 pm

dilip chaturvedi

India-US Trade War

India-US Trade War

अमरीका ने भारत को व्यापार में तरजीह देने वाले देशों की सूची से बाहर कर दिया है। बताया जा रहा है कि इसके पीछे वजह डेयरी उत्पाद हैं। वे डेयरी उत्पाद, जिनके आयात से भारत ने इनकार कर दिया है। इसकी वजह है। सरकार ने साफ किया है कि अमरीका के डेयरी उत्पादक अपने उत्पादों के साथ यह जरूर लिखकर दें कि जिन जानवरों के दूध से यह उत्पाद बने हैं, उन्होंने ब्लड मील का सेवन नहीं किया है। अमरीका इसे भारत का बचकाना कदम बता रहा है, जबकि भारत का तर्क है कि यह हमारी धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक संवेदनाओं से जुड़ा मुद्दा है। ऐसे में इसमें कोई रियायत संभव नहीं है। दरअसल, ब्लड मील एक तरह का चारा है। इसे गाय, भेड़, ***** के मांस और खून को सुखाकर बनाया जाता है। इसका उपयोग अमरीका समेत कई देशों में मवेशियों को खिलाने में किया जा रहा है। इससे दूधारू जानवर ज्यादा दूध देते हैं। हालांकि कई देशों में इसे सीधे-सीधे मांसाहार की श्रेणी में रखा गया है। ऐसे में भारत सरकार भी इस बात पर कायम है कि बिना सर्टिफिकेशन ऐसे डेयरी उत्पादों को स्वीकार नहीं किया जाएगा। अमरीका अपने डेयरी उत्पादकों के दबाव में है और सर्टिफिकेशन के लिए राजी नहीं है। यही वजह है कि उसने भारत पर दबाव बनाने की नीति का सहारा लेना शुरू कर दिया है।

भारत खुद दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश है। यहां चार हजार से ज्यादा पंजीकृत बूचडख़ाने हैं। अवैध बूचडख़ानों की संख्या करीब 25 हजार के आसपास है। बावजूद इसके हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक संवदेनाएं हैं। हमारे यहां कई धर्मों में मांस का सेवन प्रतिबंधित है। यहां तक स्थिति है कि जिन कांउटर पर मांसाहार और शाकाहार एक साथ बेचे जाते हैं, वहां से अधिकांश शाकाहारी लोग खान-पान के उत्पाद खरीदना पसंद नहीं करते हैं। ब्लड मील के उत्पादों पर सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस तरह का प्रतिबंध लगाया था। बेहतर हो कि उत्पादक खुलासा करें कि उनके उत्पाद में क्या ब्लड मील खाने वाले मवेशियों का दूध शामिल है। इस सर्टिफिकेशन के बाद ही भारतीय बाजार में यह उत्पाद बेचने की आजादी हो। भले ही सरकार ने ब्लड मील से जुड़े उत्पादों पर रोक लगाने की कोशिश शुरू की हो, लेकिन हकीकत यह भी है कि देश के भीतर ऑनलाइन बिजनेस से सीधे ऐसे उत्पाद बेचे जा रहे हैं। इनका उपयोग खेती से लेकर जानवरों तक पर करने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार एक कदम और आगे बढ़ाए और ऐसी वेबसाइट पर रोक लगाकर कार्रवाई करे।

देश की सांस्कृतिक संवेदनाओं और भावनाओं को बरकरार रखने की जिम्मेदारी सरकार की भी है। ऐसे में सरकार को सख्ती से लगाम लगानी चाहिए। आखिर हम धार्मिक विविधताओं वाले देश में कैसे बाजार को धार्मिक भावनाओं को नुकसान पहुंचाने की आजादी दे सकते हैं। सरकार के प्रयास सराहनीय हैं और इसे बड़े कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। लेकिन सरकार के लिए भी जरूरी है कि वह अपने फैसले पर अडिग बनी रहे। किसी दबाव में आकर फैसला बदलने के बारे में उसे विचार नहीं करना चाहिए। देश की भावनाएं पहले हैं, कारोबार बाद में।

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