भारत खुद दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा मांस निर्यातक देश है। यहां चार हजार से ज्यादा पंजीकृत बूचडख़ाने हैं। अवैध बूचडख़ानों की संख्या करीब 25 हजार के आसपास है। बावजूद इसके हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक संवदेनाएं हैं। हमारे यहां कई धर्मों में मांस का सेवन प्रतिबंधित है। यहां तक स्थिति है कि जिन कांउटर पर मांसाहार और शाकाहार एक साथ बेचे जाते हैं, वहां से अधिकांश शाकाहारी लोग खान-पान के उत्पाद खरीदना पसंद नहीं करते हैं। ब्लड मील के उत्पादों पर सबसे पहले अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इस तरह का प्रतिबंध लगाया था। बेहतर हो कि उत्पादक खुलासा करें कि उनके उत्पाद में क्या ब्लड मील खाने वाले मवेशियों का दूध शामिल है। इस सर्टिफिकेशन के बाद ही भारतीय बाजार में यह उत्पाद बेचने की आजादी हो। भले ही सरकार ने ब्लड मील से जुड़े उत्पादों पर रोक लगाने की कोशिश शुरू की हो, लेकिन हकीकत यह भी है कि देश के भीतर ऑनलाइन बिजनेस से सीधे ऐसे उत्पाद बेचे जा रहे हैं। इनका उपयोग खेती से लेकर जानवरों तक पर करने की सलाह दी जा रही है। ऐसे में जरूरी है कि सरकार एक कदम और आगे बढ़ाए और ऐसी वेबसाइट पर रोक लगाकर कार्रवाई करे।
देश की सांस्कृतिक संवेदनाओं और भावनाओं को बरकरार रखने की जिम्मेदारी सरकार की भी है। ऐसे में सरकार को सख्ती से लगाम लगानी चाहिए। आखिर हम धार्मिक विविधताओं वाले देश में कैसे बाजार को धार्मिक भावनाओं को नुकसान पहुंचाने की आजादी दे सकते हैं। सरकार के प्रयास सराहनीय हैं और इसे बड़े कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। लेकिन सरकार के लिए भी जरूरी है कि वह अपने फैसले पर अडिग बनी रहे। किसी दबाव में आकर फैसला बदलने के बारे में उसे विचार नहीं करना चाहिए। देश की भावनाएं पहले हैं, कारोबार बाद में।