Independence Day 2021 : ‘अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’, नामालूम-सी किसी जगह से लाउड स्पीकर गूंज उठता है। खुदा की नेमत मोहम्मद रफी की पुरकशिश आवाज हमें पूरे भाव के साथ बताती है कि देश को स्वतंत्रता मिलने के भाव में सराबोर होना है। तभी पाश्र्व में कहीं मेरे देश की धरती सोना उगलने लगती है, महेंद्र कपूर के चिर-परिचित स्वर की अनुगूूंज छाती में एक जज्बा-सा भरती हुई उठती है। अब दूर कहीं , हवा के संग लहरातीं, सुर की पर्याय लता हैं – ‘ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’, यह आवाज, ये बोल एक मौका बनते हैं, स्वतंत्रता दिवस के पावन दिन पर अपने अंतस को परिमार्जित कर लेने का। साल- दर – साल यह सिलसिला चल रहा है। ऐसे आवसर पर सुबह आंख खुलने के साथ ही कहीं न कहीं से देशभक्ति के गीत सुनाई देने लगते हैं। इससे अनजाने में ही व्यक्ति के न में देशभक्ति की भावना समाहित हो जाती है।
पुराने सदाबहार गीत जिंदाबाद हैं। ‘वन्दे मातरम’ से लेकर ‘ये देश है वीर जवानों का’ ने अब भी धरती नहीं छोड़ी है, पर कुछ बाद के नगमों ने भी ख़ूब जगह बनाई है। विशेषकर रहमान के जादू ने पुरानों की चिर- स्वीकार्यता को भेदा है। उनकी आवाज में ‘मां तुझे सलाम’ टक्कर देता है। ‘मोहे रंग दे बसंती’, प्रसून जोशी का लिखा यह क्लासिक स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति को हर बरस झिंझोडऩे आता है। फिल्में आम जीवन से ही उगती-उठती हैं। देशभक्ति की फिल्मों ने ख़ूब कामयाबी का मुख देखा है। देशभक्ति आम तौर पर अभिव्यक्ति ढूंढती है। फिल्में यथार्थ या कल्पना, जिस भी धागे से बुनी जाएं, आम आदमी की उस अभिव्यक्ति को संतुष्ट करती हैं। फिल्मों ने समाज को जो सकारात्मकता दी है, उसमें ये गीत सबसे शानदार तोहफा हैं।
इस महान दिवस के उपलक्ष्य में देश के प्रधानमंत्री का लाल किले से भाषण एक अनिवार्य परम्परा है। भारतवर्ष उसे छोटे पर्दे पर देखता है। साथ ही सुबह से दिन ढलने तक देश-भर में शहर-शहर, गांव-गांव के स्कूलों, सार्वजनिक प्रतिष्ठानों इत्यादि में लाउडस्पीकर से फिल्मी सुर-शब्दों की गंगा बहती है, जिन्हें भले हम ठिठक कर न सुनें, पूरा अटेंशन चाहे न दें, पर सच पूछें तो ये हमारे इस दिन को मुकम्मल बनाते हैं। ये गीत कह जाते हैं कि आज हमारा देश स्वाधीन हुआ था। कल्पना की जा सकती है कि ये फिल्मी गीत इस दिवस न गूंजें, तो कितना खालीपन रह जाएगा।
रक्षा-बंधन का त्योहार भी इन गीतों से अवश्य ही सजता है। ‘राखी, धागों का त्योहार’ में रफी अपनी मखमली आवाज के जादू से बहन- भाई के प्यार को इस कदर उभारते हैं कि कानों में एकाध बार ये बोल, ये धुन न पड़ें, तो काफी-कुछ अधूरा-सा लगता है यह पवित्र दिन। ये गीत इन पावन दिनों में हम सभी में जज्बा जगाते हैं।
मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, महेंद्र कपूर इत्यादि गायकों व मदन मोहन, सी रामचंद्र , कल्याण जी-आनंद जी या रहमान समेत उन समूचे संगीतकारों व गीतकारों को हमें इसके लिए धन्यवाद ज्ञापित जरूर करना चाहिए।