सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों के प्रति असंतोष के कारण एलडीपी को चुनावी झटके की आशंका थी, लेकिन जैसे ही परिणाम आए स्पष्ट हो गया कि एलडीपी के चुनावी पतन की आशंकाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया था। चुनावी नतीजों ने एक चीज को और स्पष्ट कर दिया कि जापानी राजनीति की चाल-ढाल दक्षिण पंथ की ओर स्थानान्तरित हो गई है। यह समझा जा सकता है कि भारत इन चुनावी परिणामों से बहुत खुश है। प्रधानमंत्री मोदी पहले ही एक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन के लिए किशिदा को भारत आने का आमंत्रण दे चुके हैं। नई मिली जिम्मेदारी और सार्वजनिक वैधता के साथ किशिदा अब अपनी विदेश नीति के एजेंडे के महत्त्वपूर्ण हिस्सों को लागू कर सकते हैं। जापान की आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित और आर्थिक सुरक्षा को आकार देने में किशिदा के प्रयासों को राजनीतिक दलों के बीच बड़ा समर्थन मिला है।
भारत भी लाभान्वित होना चाहेगा, क्योंकि जापान अपना ध्यान चीन पर निर्भरता हटाने की कोशिशों में है। देखा जाए, तो किशिदा का कार्यकाल जापान की रक्षा नीतियों पर बड़ी बहस लिए होगा। किशिदा के समर्थक देश के रक्षा बजट को दोगुना कर जीडीपी का 2 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं। रक्षा व्यय में वृद्धि से क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता के रूप में जापान की क्षमताएं बढऩे की संभावनाएं हैं। किशिदा की जीत उनकी सरकार को एक मजबूत चीनी नीति को आगे बढ़ाने में मदद देगी। यह भारत के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वह भी चीन की आक्रामक नीतियों से पीडि़त हुआ है। किशिदा ने विदेश मंत्री के रूप में वर्ष 2015 में भारत यात्रा के दौरान आश्वासन दिया था कि जापान ‘मेक इन इंडियाÓ पहल के तहत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आर्थिक विकास की धुरी बनने में भारत को सहयोग देगा।
शिंजो आबे के समर्थन के चलते किशिदा महत्त्वपूर्ण ‘क्वाड’ नवाचारों को आगे बढ़ाने में समर्थ होंगे। वे ढांचागत परियोजनाओं की फंडिंग, साझेदार देशों के बीच सैन्य समन्वय बढ़ाने और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस एवं 5जी जैसी प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ा सकेंगे। हालांकि कुछ जापानी विश्लेषक किशिदा से यूएस-चीन की रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के बीच चीन से रिश्तों को संभालने का स्थिर तरीका अपनाने को कह रहे हैं। भारत और जापान दोनों ही आक्रामक चीन की ओर से परेशानी झेल रहे हैं। यह दोनों ही देशों के लिए बड़ा अवसर है कि वे अपनी रणनीतियों में समन्वय बनाएं। जापान में अमन पसंद दृष्टिकोण छोडऩे और मिसाइल रक्षा क्षमता को मजबूत बनाने की मांग बढ़ती जा रही है। यह कदम जापान को चीन और उत्तरी कोरिया में सैन्य लक्ष्यों को साधने में मदद देगा। साथ ही वह क्षेत्र में यूएस की अगुवाई वाले सुरक्षा ढांचे से जुड़ेगा।