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ओपिनियन

चीन के सही और गलत कदमों में छुपा भारत की वास्तविक छलांग का मंत्र

सफलता के लिए जरूरी आत्मसंतोष व अति महत्त्वाकांक्षा के चलते विफलता के बीच संतुलन

Jul 05, 2021 / 01:12 pm

सुनील शर्मा

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पैंगोंग झील के उत्तरी-दक्षिणी किनारों से सैनिकों की वापसी का काम पूरा।

– गौरव डालमिया, चेयरमैन, डालमिया ग्रुप होल्डिंग्स

बीस साल पहले शंघाई की यात्रा के दौरान हमें जिंटियान्डी क्षेत्र जाने का मौका मिला। स्टाइलिश बुटीक और रेस्टॉरेन्टों के बीच वहां आज भी वह सलेटी रंग की इमारत है, जहां जुलाई 1921 में १३ सदस्य कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (सीपीसी) के गठन के लिए एकजुट हुए थे। आज सीपीसी के 9 करोड़ 19 लाख सदस्य हैं और भारत की भारतीय जनता पार्टी के बाद यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। जिंटियांडी उभरते चीन का ऐसा जीवंत प्रतिबिंब है – जहां आधुनिकता की नींव उसकी परम्पराओं में है।
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चीन सीपीसी के गठन का शताब्दी समारोह मना रहा है और विश्व चीन को दो दृष्टिकोण से देख रहा है। एक ओर इसे नई भूराजनीतिक शक्ति, नया व्यावसायिक ठिकाना माना जा रहा है तो दूसरी ओर एक ऐसा देश जो मानवाधिकारों की दृष्टि से दु:स्वप्न है। बतौर व्यापारी चीन से जो सबसे अहम सबक सीखा जा सकता है वह है इसका पैमाना। आज विश्व की 500 बड़ी कंपनियों में से 124 चीन की हैं। इनमें ताइवान की कंपनियां शामिल नहीं हैं। गत वर्ष इस सूची में चीनी कंपनियों की संख्या अमरीका से अधिक थी। ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें चीन का दबदबा एकदम स्पष्ट है। विश्व के पांच अग्रणी बैंकों में से चार चीन के हैं। बाजार मूल्य के हिसाब से चीन की 50वीं सबसे बड़ी कंपनी साइटिक सिक्योरिटीज है। इसका मूल्य 48 बिलियन डॉलर है, वेदांता से तकरीबन 3.5 गुना जो भारत की 50वीं सबसे बड़ी कंपनी है।
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चीन आज ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, दक्षिण कोरिया, रूस और वियतनाम के बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है। चीन के नवाचार बाजार को परिभाषित करते हैं। वर्ष 2019 में चीन में मोबाइल एप के जरिये सकल खर्च 54 ट्रिलियन डॉलर था, जो अमरीका की तुलना में 551 गुना ज्यादा था। टैक कंपनी बायदू के ‘ओपन सोर्स ऑटोनमस व्हीकल प्लेटफॉर्म’ के 130 पार्टनर हैं और डीजेआइ को दुनिया की अग्रणी ड्रोन निर्माता कंपनी माना जाता है। कुछ वर्ष पहले मैंने तियांजिन में सोच से नियंत्रित होने वाले प्रयोग को सफल होते हुए देखा था। नवंबर 2020 में चीन ने 6जी तकनीक के लिए प्रायोगिक टेस्ट सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया। आज चीन में 145 यूनिकॉर्न हैं, जिनमें से 89 चार वर्षों में ही तैयार हुए हैं। यही वजह है कि सिलिकॉन वैली में ‘चाइना स्पीड’ नया प्रचलित शब्द है। आज चीन में 30 साल पहले की तुलना में 74.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आ चुके हैं। अमरीकी थिंकटैंक प्यू रिसर्च के अनुसार, चीन में मध्यम वर्ग की संख्या दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है – वर्ष 2000 में आबादी के 3.1त्न से बढक़र 2018 में यह वर्ग बढक़र 50.8त्न हो गया। हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू के विभिन्न देशों के लिए आर्थिक परिवर्तन (प्रति व्यक्ति जीडीपी विकास) संबंधी ‘द लिव्ड चेंज इंडेक्स’ में 1990 से 2019 के बीच चीन ने 32 बार परिवर्तन दर्ज किया, दूसरे नंबर पर रहे पोलैंड ने 9 बार और छठे पायदान पर रहे भारत ने 5.5 बार।
यह सब डेंग जियाओपिंग की विचारधारा ‘अमीर बनना श्रेष्ठ है’ पर केंद्रित 1978 के आंदोलन का नतीजा है। इसके तहत कन्फ्युशियस सिद्धांतों एवं सफल सरकार-व्यापारी वर्ग की साझेदारी के आधार पर चीन को विश्व अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत करने के लिए आगे लाया गया। हालांकि, 2030 तक चीन में सक्रिय कामगार 2015 के मुकाबले 8.1 करोड़ कम रह जाएंगे, जिससे आश्रितता अनुपात, बचत दर और आर्थिक विकास प्रभावित होंगे। यह देखते हुए कि 2019 में चीन ने आंतरिक सुरक्षा पर 216 बिलियन डॉलर खर्च किए, लग रहा है कि आने वाले दशकों में इसकी गलतियों के नतीजे सामने आने लगेंगे।
चीन के बिजनेस लीडरों से मेरी वार्ता के पांच निष्कर्ष सामने आए – एक, 1989 के थियानमेन चौक प्रदर्शन और सोवियत संघ के विघटन की यादें अब भी सत्ता के इस्तेमाल संबंधी विचार को स्वरूप देने में अहम भूमिका निभाती हैं। दो, चीन का दूसरे देशों के लिए खुले विकल्प प्रस्तुत करना राष्ट्रवाद को प्रोत्साहित करता है। संभवत: चीन इस तरह पश्चिमी देशों के पूर्व में किए गए अपमान से उबरता है। तीन, चीन को लगता है कि ताइवान 1940 के दशक की ऐतिहासिक दुर्घटना है और उसका एकीकरण शानदार लोकप्रिय अपील जगाएगा। चार, वे बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत संवेदनशील परियोजनाओं के प्रति मोहभंग होने पर चीन के प्रति नफरत बढऩे की बात स्वीकारते भी हैं और तर्क भी देते हैं कि कई समुदायों के लिए ईष्र्या के कारणों को स्वीकारने की बजाय नफरत करना आसान होता है। पांच, चीन के लोग महसूस करते हैं कि २००० के दशक के आरंभ में जब यूएस ने मध्य पूर्व पर ध्यान केंद्रित किया, तब से चीन को जो रणनीतिक पहल का जो ऐतिहासिक अवसर मिला, उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। इस नए चीन की दुनिया को आदत डालनी ही होगी।
सफल देशों के लिए यह जरूरी है कि वे आत्मसंतोष और अत्यधिक महत्त्वाकांक्षा के चलते असफलता के बीच संतुलन कायम करें। जिस तरह इलियट एकरमैन और पूर्व यूएस एडमिरल जेम्स स्टाव्रिडिस ने अपनी किताब ‘2034: ए नॉवल ऑफ द नेक्स्ट वर्ल्ड वार’ में ईरान की मदद और उकसावे पर चीन की भूराजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं, अमरीका का अभिमान टूटने और नई दिल्ली शांति समझौते व संयुक्त राष्ट्र के अपना मुख्यालय मुंबई ले जाने के रूप में अंतत: भारतीय कूटनीति की जीत की कल्पनाएं की हैं, जाहिर है यदि भारत, चीन को टक्कर देने और संतुलित करने वाली अर्थव्यवस्था के रूप में खुद को विकसित करता है और अपने बहुपक्षवाद का सही तरीके से इस्तेमाल करता है, तो यह काल्पनिक उपन्यास हकीकत में तब्दील हो सकता है।
(द इकोनॉमिक टाइम्स से साभार)

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