scriptदीवाली या दिवाला | Gulab Kothari Article on Jaipur Diwali arrangements which made by Rajasthan Government | Patrika News
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दीवाली या दिवाला

Gulab Kothari Article: दिवाली जैसे सौहार्दपूर्ण त्योहारों को बन्दूकों के साए में लाकर खड़ा कर दिया। शासन-प्रशासन दोनों को धिक्कार है। इनका सिर शर्म से कभी झुकता ही नहीं। अंग्रेजों की तरह संवेदनहीन हो गए हैं… त्योहारों पर शासन-प्रशासन के अविवेकी निर्णयों से उपजे हालात पर केंद्रित पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-
 
 

Oct 28, 2022 / 12:52 pm

Gulab Kothari

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Editor-in-Chief of Patrika Group

Gulab Kothari Article: संविधान में लक्ष्य राष्ट्रीय एकता और अखण्डता था। और आज? राजनीति के कलाबाजों, धर्मगुरुओं, जातियों के नाम पर लूटने वालों ने लोकतंत्र के चिथड़े- चिथड़े कर डाले। संपूर्ण देश खण्ड-खण्ड तथा लोकतंत्र जर्जर नजर आ रहा है। देश को बाहरी शत्रुओं का उतना डर नहीं, जितना भीतर एक-दूसरे से डरने लगे हैं। जयपुर में दिवाली को देखकर लगा कि भारतीय संस्कृति का दिवाला निकल चुका है। सरकारें बुद्धि से इतनी भ्रष्ट हो चुकी कि दिवाली जैसे सौहार्दपूर्ण त्योहारों को बन्दूकों के साए में लाकर खड़ा कर दिया। शासन-प्रशासन दोनों को धिक्कार है। इनका सिर शर्म से कभी झुकता ही नहीं। अंग्रेजों की तरह संवेदनहीन हो गए हैं।

दिवाली पर बच्चों को रोशनी दिखाने ले गया तो सकते में आ गया। सारे बाजार बंद। रोशनी किसके लिए? लक्ष्मी किसके यहां आएगी और क्यों? लग रहा था मानो निष्प्राण शरीर पर फूलों की सजावट कर रखी है। यह भी समझ में नहीं आया कि बाजार बंद ही रखने थे, तब रोशनी किसके लिए? पुलिस का इतना बड़ा जाप्ता किसके लिए? दंगा नियंत्रण वाहन बड़ी चौपड़ पर दीवाली पर खिल्लियां उड़ा रहे थे। जनता से घरों में रहने की ओर इशारा कर रहे थे।

जयपुर के बाजारों व मुख्य इमारतों की दीपावली पर रोशनी व सजावट को लेकर होने वाली प्रतिस्पर्धा कम नहीं है। जयपुर के पूर्व सांसद गिरधारीलाल भार्गव ने नगर विकास न्यास (यूआईटी) अध्यक्ष रहने के दौरान बाजारों व इमारतों की सजावट के पुरस्कार शुरू किए थे। उनके पद से हटते ही ये पुरस्कार बंद हो गए।

बाद में श्रद्धेय कर्पूरचन्द्र कुलिश के प्रयासों से ये फिर शुरू हुए। तब न्यायमूर्ति बीपी बेरी की अध्यक्षता में बनी कमेटी शहर में घूम-घूम कर पुरस्कार योग्य बाजारों व इमारतों का चयन करती थी। सजावट की स्पर्धा आज भी होती है लेकिन जब लोगों को इसे देखने का वक्त ही नहीं मिल पाए तो कैसी सजावट और कैसी रोशनी?

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दीवाली मुख्य रूप से वैश्यों का सबसे बड़ा पर्व है। व्यापारी वर्ग लक्ष्मी पूजन करता है। बही-खातों का स्वरूप कानून ने बदल दिया। व्यापारी की सुविधा, राष्ट्रीय संस्कृति से ज्यादा सरकार की सुविधा भारी पड़ गई। दिवाली पर जयपुर शहर में रात बारह बजे तक भी लोग दुकानों में लक्ष्मीपूजन करते थे।

और, आज दुकानें खोलना मना? यह हमारे अमृत महोत्सव की सौगात है। राज्य सरकार कानून-व्यवस्था में चौपट तो है ही जनप्रतिनिधि तक थानों से चांदी कूटने में लगे हैं। जनता की ओर देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। दंगा नियंत्रण वाहनों को लगाकर सरकार ने क्या संदेश दिया है? इस शहर में केवल दो समुदाय प्रमुखता से रहते हैं। रोशनी देखने क लिए दोनों समुदाय बराबर संख्या में सड़क पर चल रहे थे। दंगा नियंत्रण वाहन का मुंह किस ओर होगा, इसका उत्तर सरकार को देना चाहिए।

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राज्य में पिछले चार साल से कांग्रेस पार्टी की सरकार है। सरकार की नीतियों में तथा कार्यशैली में ऐसा क्या है कि वह स्वयं को कानून-व्यवस्था बनाए रखने में असमर्थ मानती है। बाजार खुले रहना सरकार के बूते के बाहर नजर आता है। तब कैसी दिवाली? क्या सरकार विदेशी है जो दिवाली का अर्थ नहीं समझती?

क्या बाजार बंद करवाकर चैन की नींद सोना ज्यादा सुखद है। क्या लक्ष्मी पूजन करने वाले दुकानदारों को सरकार सुरक्षा नहीं दे सकती! सरकार में थोड़ी भी शर्म है तो शहर की दिवाली बहाल करनी ही चाहिए। व्यापारियों को पूजा करने का अधिकार पुन: प्रतिष्ठित होना चाहिए। ऐसे अवसरों पर दंगा नियंत्रण जाप्ता शहर का अपमान है।

सरकार को अपने किए पर विचार भी करना चाहिए कि उसके रहते ऐसी परिस्थिति क्यों बनी? जनता से इस अपराध के लिए (व्यवस्था को प्रशासन के भरोसे छोड़ देना) क्षमायाचना भी करनी चाहिए। भविष्य में ऐसा नहीं हो तो व्यापारियों को भी बाजार बंद करके रोशनी भी बंद करने का, सजावट नहीं करने का ऐलान कर देना चाहिए। यह तो तय है कि सरकार बीज तो बोती है, फसल काटने की हिम्मत नहीं दिखाती। दंगे रोक नहीं सकती, जाप्ता लगा सकती है।

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