महर्षि दधीचि के देश में अंगदान को लेकर संकोच क्यों
भारत महर्षि दधीचि जैसे ऋषियों का देश है, जिन्होंने असुरों का संहार करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था। समाज में दधीचि जैसी शख्सियतों को आगे आना होगा और अंगदान की पहल करनी होगी। निश्चित तौर पर अंगदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में आशा, उमंग व उम्मीदों का नया सवेरा लाया जा सकता है। आज अंगदान दिवस के मौके पर अंगदान का संकल्प लेकर इस दिन को मनाने की सार्थकता सिद्ध की जानी चाहिए। इस काम में संकोच नहीं करना चाहिए।
डॉ. पंकज जैन
एसोसिएट प्रोफेसर, मेडिसिन मेडिकल कॉलेज, कोटा
जीवन के साथ भी, जीवन के बाद भी, इस बात को चरितार्थ करने में अंगदान एक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि मरने के बाद भी मानव अंग अन्य लोगों का जीवन बचाने में काम आ सकते हैं। यह एक बहुत ही पुनीत, नेक व महान काम है किंतु कई सामाजिक भ्रांतियों के चलते शत प्रतिशत अंग दान एक दिवा स्वप्न सा प्रतीत होता है। अंगदान के महत्त्व के प्रति जागरूकता बढ़ाने, लोगों को अंगदान से जुड़ी भ्रांतियों से अवगत कराने, अंगदान के लिए प्रोत्साहित करने एवं अंगों की कमी के बारे में बताने के लिए प्रति वर्ष 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है। अंगदान तीन तरह से होता है- जीवित अंगदान, ब्रेन डेड दाता एवं प्राकृतिक रूप से कार्डियक डेथ व्यक्ति द्वारा। जीवित व्यक्ति के किडनी एवं लिवर के एक हिस्से का दान किया जा सकता है क्योंकि एक अकेली किडनी एवं लिवर के शेष भाग से अंगदाता का जीवन चल सकता है। वहीं ब्रेन डेड अंगदाता से अंग एवं ऊतक दोनों लिए जा सकते है क्योंकि ब्रेन डेड व्यक्ति में जीवन की उम्मीद न के बराबर रह जाती है।
प्राकृतिक रूप से कार्डियक डेथ वाले व्यक्ति से सिर्फ ऊतकों को ही लिया जा सकता है क्योंकि एक निश्चित समय के बाद अंग काम करना बंद कर देते हैं। हृदय, लिवर, किडनी, फेफड़े, अग्नाशय एवं आंतें कुछ प्रमुख अंग हैं जो अंग प्रत्यारोपण में प्रयुक्त किए जा सकते हंै। वहीं नैत्र (कार्निया), हृदय के वाल्व, हड्डियां, रक्त नलिकाएं, कार्टिलेज, अस्थि मज्जा, त्वचा आदि को ऊतक के तौर पर लिया जा सकता है। 18 वर्ष से कम उम्र के डोनर होने की स्थिति में उसके माता-पिता अथवा अभिभावक की सहमति जरूरी होती है। अंगदाता कुछ संक्रमण जैसे एचआइवी, हेपेटाइटिस, हृदय व लंग्स की गंभीर बीमारियों से पीडि़त नहीं होना चाहिए।। भारत में अंगदान के लिए मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 लागू है जो चिकित्सकीय उद्देश्यों के लिए अंगों को निकालने, उनके भंडारण एवं प्रत्यारोपण को विनियमित करता है। साथ ही उनके व्यावसायिकरण की रोकथाम को भी सुनिश्चित करता है। सन् 2011 एवं 2014 में इस अधिनियम में संशोधन भी किया गया है। भारत में अंगदान की प्रक्रिया को सुदृढ़ करने व सुचारू रूप से संचालित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (नोटो) एवं राज्य स्तर पर स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (सोटो) कार्यरत है। देश भर में अंगदान को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम भी प्रारंभ किया है।
इक्कीसवीं सदी में कदम रखने के बावजूद अंगदान के मामले में भारत दुनिया में बेहद पिछड़ा हुआ देश है जिसके प्रमुख कारणों में अंगदान को लेकर उचित शिक्षा व जागरूकता का अभाव, सामाजिक मान्यताएं, प्रत्यारोपण की उच्च लागत, मांग और पूर्ति के बीच का बड़ा अंतर, ज्यादातर अस्पतालों में अंग प्रत्यारोपण संबंधी आधारभूत संसाधनों का अभाव शामिल हैं। अंगदान की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए सरकार, समुदायों एवं जन सामान्य के समन्वित प्रयासों की अति आवश्यकता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अंग प्रत्यारोपण की सुविधाएं समाज के कमजोर वर्ग तक भी पहुंच सकें। इसके लिए सार्वजनिक अस्पतालों में संसाधनों की क्षमता बढ़ाई जा सकती है। चिकित्सकों, गैर सरकारी संगठनों एवं समाजसेवियों को लोगो को जागरूक करना चाहिए। अंगदान के प्रति व्याप्त गलत धारणाओं एवं मिथकों को दूर करने की जरूरत है। इसके लिए समाचार पत्रों, टीवी, रेडियो एवं सोशल मीडिया की सहायता ली जा सकती है। गांव-गांव व गली-गली में नक्कड़ नाटकों, सभाओं, पोस्टरों व बैनरों के जरिए अंगदान के महत्त्व के बारे में बताया जा सकता है।
भारत महर्षि दधीचि जैसे ऋषियों का देश है, जिन्होंने असुरों का संहार करने के लिए अपनी अस्थियों का दान कर दिया था। समाज में दधीचि जैसी शख्सियतों को आगे आना होगा और अंगदान की पहल करनी होगी। निश्चित तौर पर अंगदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में आशा, उमंग व उम्मीदों का नया सवेरा लाया जा सकता है। आज अंगदान दिवस के मौके पर अंगदान का संकल्प लेकर इस दिन को मनाने की सार्थकता सिद्ध की जानी चाहिए। इस काम में संकोच नहीं करना चाहिए।
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