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फ्लाईओवर और एलिवेटेड रोड नहीं हैं समस्या का समाधान

विदेशों में यह नीति कई साल पहले अपनाई गई पर अब वहां यह समझ आ चुका है कि यातायात और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए निजी वाहनों को हतोत्साहित करना ही एक मात्र दीर्घकालिक उपाय है। इसके लिए आवश्यक कदम शीघ्रतापूर्वक उठाए जाने लगे हैं। इसके लिए दक्ष, सुलभ व सस्ती सार्वजनिक व्यवस्था (मेट्रो, सिटी बस व सस्ती टैक्सी) पर ध्यान दिया जा रहा है।

जयपुरNov 20, 2024 / 10:11 pm

Gyan Chand Patni

ज्ञान प्रकाश सोनी
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यों में सक्रिय आर्थिक संपन्नता आने से अपने देश में दुपहिया व चौपहिया वाहन खरीदने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारत में 2019 की तुलना में 2023 में 40 प्रतिशत वृद्धि हुई। इसी कालखंड में पूरे विश्व में कारों की बिक्री में मात्र 7 प्रतिशत वृद्धि हुई। यानी भारत में निजी वाहनों की खरीद बढ़ रही है। स्टेटस सिंबल के चलते भी कार खरीदने का चलन बढ़ा है। बढ़ते निजी वाहनों के कारण सड़कों पर आए दिन जाम लगते हैं, प्रदूषण बढ़ता है और इससे निपटने के लिए वर्तमान में नीति यह है कि सड़क के ऊपर एक और सड़क, यानी एलिवेटेड रोड व व्यस्त चौराहों पर फ्लाईओवरों का निर्माण किया जाए ।
इस नीति से करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं, कंक्रीट के जंगल बढ़ रहे हैं और प्रदूषण बढ़ रहा है। ये निर्माण दिन में सूरज की गर्मी सोखते हैं और रात में छोड़ते हैं तो इस कारण दिन का तापमान बढ़ता है और रात का घट जाता है। साथ ही इन वृहद निर्माण कार्यों के लिए बहुत अधिक सीमेंट, गिट्टी व रेत चाहिए। सीमेंट बनाने के लिए मुख्यत: चूना पत्थर चाहिए और गिट्टी बनाने के लिए भी मजबूत पत्थर चाहिए जो किसी न किसी पहाड़ को काट कर ही मिलते हैं। रेत के लिए किसी न किसी नदी का पेटा उघाडऩा पड़ता है। इस तरह पहाड़ों व नदियों के संरक्षण की बात तो हम करते हैं पर इन्हें बर्बाद करने की व्यवस्था भी हम ही करते हैं। इस एलिवेटेड रोड व फ्लाईओवर नीति से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निजी वाहनों को प्रोत्साहन मिल रहा है और देश में निजी वाहन 10 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ रहे हैं।
एलिवेटेड रोड या फ्लाईओवर बनने में 2-3 साल का समय लगता है और इनके बनने के बाद यदि आधा ट्रैफिक ऊपर की रोड से और आधा नीचे की पुरानी रोड से जाने लगे तो एक बार तो रोड पर 50 प्रतिशत वाहनों का दबाव कम होने की कल्पना करना सहज-सा ही है पर होता यह है कि 10 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से पांच साल में ही 50 प्रतिशत वाहन बढ़ जाते हैं। इसलिए पांच साल में ही पुरानी सड़क पर उतने ही वाहन फिर हो जाते हैं और समस्या फ्लाईओवर या एलिवेटेड रोड बनने के पहले जैसी ही हो जाती है। इसमें 2-3 साल की निर्माण अवधि घटाएं तो वास्तविकता में ट्रैफिक समस्या का समाधान 2-3 साल की अवधि के लिए ही हो पाता है। इस तरह से फ्लाईओवर या एलिवेटेड रोड का उपयोगी जीवनकाल ज्यादा नहीं है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम्स इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशीष वर्मा ने अपने एक चर्चित लेख में एलिवेटेड रोड को ‘नर्क की सीढ़ी’ तक बता दिया।
विदेशों में यह नीति कई साल पहले अपनाई गई पर अब वहां यह समझ आ चुका है कि यातायात और प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए निजी वाहनों को हतोत्साहित करना ही एक मात्र दीर्घकालिक उपाय है। इसके लिए आवश्यक कदम शीघ्रतापूर्वक उठाए जाने लगे हैं। इसके लिए दक्ष, सुलभ व सस्ती सार्वजनिक व्यवस्था (मेट्रो, सिटी बस व सस्ती टैक्सी) पर ध्यान दिया जा रहा है। सड़कों के किनारे फुटपाथ और साइकिल ट्रैक बनाए जा रहे हैं ताकि लोग सुरक्षा के साथ पैदल या साइकिल पर चल सकें। बड़े सरकारी पदाधिकारी साइकिलों पर ऑफिस आने लगे हैं और सिटी बस या मेट्रो का उपयोग करने में स्टेटस अब आड़े नहीं आ रहा है। सिंगापुर में दुनिया की सबसे अच्छी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था है और निजी वाहनों पर भारी कर लगाया जा रहा है। वहां कार की कीमत का 100 से 320 प्रतिशत तक का रजिस्ट्रेशन शुल्क है। यानी मूल 10 लाख की कार टैक्स के बाद 20 से 42 लाख की पड़ती है। भारत में भी एलिवेटेड रोड व फ्लाईओवरों के निर्माण के कुप्रभावों व अल्पकालिक उपयोगी जीवनकाल को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन की दक्ष व्यवस्था विकसित करने पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है, नहीं तो लंबे जाम लगने से बचना मुश्किल है।

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