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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: कहीं बन रहा लूट का हथियार, तो कहीं सुरक्षा चक्र

स्टेटिस्टा की 2022 में जारी हुई रिपोर्ट में बताया गया है कि 81 फीसदी संगठनों ने एक वर्ष मेें एआइ संचालित साइबर हमलों की पुष्टि की हैं। इसी प्रकार एफ—सिक्योर की मानें तो 2022 में ही एआइ आधारित फिशिंग षड्यंत्रों में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है

जयपुरOct 03, 2024 / 10:03 pm

Gyan Chand Patni

Artificial Intelligence

Artificial Intelligence

प्रो. सचिन बत्रा
सलाहकार, मीडिया फेडरेशन ऑफ इंडिया
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डिजिटल हो रही दुनिया में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआइ का इस्तेमाल बढ़ रहा है। इसका जहां लाभ मिल रहा है, वहीं एआइ साइबर अपराधियों के लिए मददगार भी बन रहा है। वह एल्गोरिदम की मदद से शिकार को चिह्नित करने के अलावा उसे आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए सटीक तकनीक भी मुहैया करवा रहे हैं। आंकड़ों की बात करें तो एफबीआइ और आइबीएम के मुताबिक वर्ष 2021 में 82 प्रतिशत साइबर हमलों में एआइ की भूमिका सामने आई थी।
स्टेटिस्टा की 2022 में जारी हुई रिपोर्ट में बताया गया है कि 81 फीसदी संगठनों ने एक वर्ष मेें एआइ संचालित साइबर हमलों की पुष्टि की हैं। इसी प्रकार एफ—सिक्योर की मानें तो 2022 में ही एआइ आधारित फिशिंग षड्यंत्रों में 25 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। हालांकि यह भी सच है कि साइबर सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध कंपनियां रोबस्ट एंटी-वायरस और फूलप्रूफ एंटी मैलवेयर सॉफ्टवेयर विकसित करने के अलावा नवीनतम अपराधों के पैटर्न और खतरों पर नजर बनाए हुए हैं। फिर भी पेशेवर अपराधी पैंतरे बदलकर बार-बार नई चुनौती खड़ी कर रहे हैं। एसेंचर ने अपनी चेतावनी रिपोर्ट में कहा है कि एआइ पोषित साइबर हमलों के चलते 2025 तक दुनिया की अर्थव्यवस्था को प्रतिवर्ष 6 ट्रिलियन डॉलर की चपत लग सकती है। एआइ किसी हथियार की तरह हो गया है, जिसका सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाता है तो वह बचाव करता है लेकिन गलत हाथों में पहुंचते ही विनाशक हो जाता है।
उदाहरण के लिए डार्कमैटर ऐसा एआइ संचालित प्लेटफॉर्म है जो मशीन लर्निंग के जरिए खतरों का पता लगाने का काम करता है। रेप्टिल ऐसा औजार है जो कि सोशल मीडिया और डार्क वेब से एकत्र आंकड़ों का विश्लेषण कर साइबर अपराधियों की शिनाख्त व ट्रेकिंग करता है। इसके अलावा एनसाइबर तो ऐसा डिजिटल शस्त्र है जो भविष्य में होने वाले साइबर हमलों की आशंका भी व्यक्त करता है। दुनिया की बात की जाए तो अमरीका ने 2022 में साइबर स्पेस राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत एआइ के खतरों से निपटने के लिए 10 बिलियन डॉलर का निवेश किया था। इसी प्रकार यूरोपीय संघ ने हॉराइजन यूरोप के तहत एआइ-साइबर सुरक्षा समाधानों के अनुसंधान व नवाचार के लिए 100 बिलियन यूरो का निवेश किया। हालांकि भारत ने भी 2020 में ही राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति विकसित करने के बाद आइ फोर सी यानी भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, एनसीआइआइपीसी यानी राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र, एनसीडीसी यानी राष्ट्रीय साइबर रक्षा केंद्र, सीटीआइ यानी साइबर थ्रेट इंटेलिजेंस, साइबर पुलिस जैसे ठोस कदम उठाए थे। लक्ष्य था एआइ आधारित अपराधों पर नियमित अनुसंधान करते हुए नकेल कसना।
इसके अलावा भी एआइ के गठजोड़ के खिलाफ साइबर सैनिटाइजेशन अभियान में निजी कंपनियां भी अपनी भागीदारी निभा रही हैं। जैसे टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस टीसीएस ने इग्निटो नाम से एआइ संचालित साइबर सुरक्षा प्लेटफार्म विकसित किया है। वहीं विप्रो ने एआइ संचालित साइबर सुरक्षा सेवा के तहत ग्राहकों को खतरों से बचाने की कवायद शुरू कर दी है। ऐसे ही इंफोसिस ने ऑर्केस्ट्रेशन नामक एआइ संचालित सुरक्षा समाधान इजाद किया है। इसके अलावा माइंडट्री ने एआइ थ्रेट इंटेलिजेंस सेवा के तहत नवीनतम खतरों की जानकारी देने के लिए जागरूकता का अभियान शुरू किया है। वहीं वाइटहैट जूनियर ने अपने स्टार्टअप के जरिए ब’चों की ऑनलाइन सुरक्षा को सुनिश्चित करने की अनूठी पहल की है। साइबर सिक्योरिटी जर्नल के मुताबिक नेटवर्क में असामान्य गतिविधियों का पता लगाने के लिए डार्कट्रेस नामक खोजी एआइ विकसित किया गया है जो कि सटीक सुरक्षात्मक सुझाव मुहैया कराता है।
इसी प्रकार स्पलंक टूल डाटा की अनवरत जांच करते हुए साइबर खतरों का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बताया गया है। वहीं कॉग्निटिव साइबरनेटिक्स ऐसा एआइ संचालित प्लेटफार्म है जो डिजिटल हमलों का पता लगाने के अलावा उनका मुकाबला भी करता है और सुरक्षा प्रणाली को सुधारता रहता है। इसके अलावा सिलेंस नामक एआइ औजार तो स्वायत्त रूप से मैलवेयर की रोकथाम में कारगर माना जाता है। ऐसे ही डीप इंस्टिंक्ट हर तरह के साइबर खतरों के खिलाफ स्वचालित कार्रवाई में सक्षम बताया गया है।

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