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जल स्वराज के लिए जल प्रबंधन का विकेंद्रीकृत मॉडल कारगर

हमारे यहां कहा गया है कि जल को नष्ट न करें, उसका संरक्षण करें। यह भावना हजारों वर्षों से हमारे अध्यात्म और धर्म का हिस्सा है, हमारे सामाजिक चिंतन के केंद्र में हमारी संस्कृति रही है। इसीलिए हम जल को देवता, नदियों को मां मानते हैं।

जयपुरSep 18, 2024 / 03:24 pm

विकास माथुर

पानी के मामले में भारत दुनिया का सबसे समृद्ध देश है। इसके बावजूद वह गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। असलियत में यह संकट केवल पानी तक ही सीमित नहीं है। सभी क्षेत्रों में तथा प्राकृतिक व कृत्रिम जलस्रोतों पर भी इस संकट का असर दिखाई दे रहा है। जलस्रोतों में बढ़ता प्रदूषण, उनकी घटती क्षमता तथा जलवायु परिवर्तन का खतरा जनप्रतिनिधियों, योजनाकारों, कार्यक्रम प्रबंधकों और समाज की चिंता का विषय बन चुका है।
आज देशवासियों को जल संरक्षण की उन्हीं प्राचीन मान्यताओं में आस्था पैदा करने की जरूरत है जिनका सृजन हमारे ऋषियों ने हजारों वर्ष पहले प्रकृति, पर्यावरण एवं पानी की संयमित, संतुलित एवं संवेदनशील व्यवस्था के माध्यम से किया था। हमारे यहां कहा गया है कि जल को नष्ट न करें, उसका संरक्षण करें। यह भावना हजारों वर्षों से हमारे अध्यात्म और धर्म का हिस्सा है, हमारे सामाजिक चिंतन के केंद्र में है, हमारी संस्कृति रही है। इसीलिए हम जल को देवता, नदियों को मां मानते हैं। वल्र्ड वाटर रिसोर्स इंस्टीट्यूट की मानें तो देश को हर साल करीब तीन हजार बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होती है, जबकि बारिश से ही 4000 क्यूबिक मीटर पानी मिल जाता है। दुर्भाग्य है कि भारत सिर्फ आठ फीसदी वर्षाजल का संचयन ही कर पाता है। 1947 में देश में प्रति व्यक्ति सालाना पानी की उपलब्धता 6042 क्यूबिक मीटर थी जो 2021 में 1486 क्यूबिक मीटर रह गई।
विश्व बैंक के अनुसार, देश में हर व्यक्ति को रोजाना औसतन 150 लीटर पानी की जरूरत होती है पर वह अपनी गलतियों के चलते 45 लीटर रोजाना बर्बाद कर देता है। संसदीय समिति ने भी यह चेताया है कि जल संसाधनों के मनचाहे उपयोग और उनको प्रदूषित करने की किसी को आजादी नहीं दी जा सकती। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी जल संरक्षण को जीवन का अंग बनाने की पुरजोर वकालत करते हैं। उनका मानना है कि इस तरह हम जल आंदोलन को गति दे सकते हैं। यहां जब हम जल प्रबंध की बात करते हैं तो यह भूल जाते हैं कि जल प्रबंधन का अंतिम लक्ष्य जल स्वराज है। हकीकत में जल स्वराज पानी के प्रबंध की वह आदर्श व्यवस्था है जिसमें हर बसावट, हर खेत-खलिहान तथा हर जगह जीवन को आधार प्रदान करती पानी की इष्टतम उपलब्धता सुनिश्चित होती है। जल स्वराज पानी का एक ऐसा सुशासन है जो जीवधारियों की इष्टतम आवश्यकता के साथ-साथ पानी चाहने वाले प्राकृतिक घटकों की पर्यावरणीय जरूरतों को बिना व्यवधान पूरा करता है।
हमारे देश में जल प्रबंधन के दो मॉडल प्रचलन में हैं। पहला मॉडल पाश्चात्य जल विज्ञान पर आधारित पानी का केंद्रीकृत मॉडल है। इसमें कैचमेंट के पानी को जलाशय में जमा कर कमांड में वितरित किया जाता है। अंग्रेजों द्वारा लागू इस मॉडल को भारतीय जल संसाधन विभाग क्रियान्वित करता है। जाहिर है इसका नियंत्रण सरकारी अमले के पास होता है। दूसरा मॉडल पानी के स्वत: जल संग्रह का है। इसमें जहां पानी बरसता है, उसे वहीं संचित कर उपयोग में लाया जाता है और बचे हुए पानी को आगे वितरण के लिए जाने दिया जाता है। इस विकेंद्रीकृत मॉडल को कृषि व ग्रामीण विकास विभाग अपनाता है। विकेंद्रीकृत मॉडल के तहत जल संरक्षण और उपयोग की क्षमता, केंद्रीकृत मॉडल की तुलना में दोगुनी से अधिक है।
जल स्वराज के लिए जरूरी है कि संविधान और राष्ट्रीय जल नीति 2012 में कुछ बदलाव किए जाएं। पानी के आवंटन में समाज की अनिवार्य आवश्यकता को पहला स्थान देना होगा। सबसे छोटी इकाई में निवास करने वाली आबादी की मूलभूत आवश्यकता तथा पर्यावरणीय प्रवाह की पूर्ति के लिए आवश्यक पानी छोडऩे के बाद अगली इकाई के लिए पानी छोड़ा जाए। इस व्यवस्था को ही उत्तरोत्तर बढ़ती इकाइयों के लिए अपनाया जाए। इसी तरह देश में जल स्वराज लाया जा सकता है।
— ज्ञानेन्द्र रावत

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