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Patrika Opinion : लोकतंत्र में हिंसा से दूर रहने में ही भलाई

सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा कि हिंसा होने पर कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता? न प्रशासन जिम्मेदारी लेता और न ही राजनीतिक दल अथवा आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठन।

Oct 06, 2021 / 08:27 am

Patrika Desk

Patrika Opinion : लोकतंत्र में हिंसा से दूर रहने में ही भलाई

Patrika Opinion : लोकतंत्र में हिंसा से दूर रहने में ही भलाई

कोई नहीं जानता कि चुनावी राजनीति देश को कहां ले जाएगी? बात अकेले लखीमपुर खीरी में हुई हिंसक झड़पों की ही नहीं है। पं. बंगाल में राजनीति के नाम पर आए दिन होने वाली झड़पें भी चिंता बढ़ाने वाली हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सही कहा कि हिंसा होने पर कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं लेता? न प्रशासन जिम्मेदारी लेता और न ही राजनीतिक दल अथवा आंदोलन की अगुवाई करने वाले संगठन। आंदोलन के दौरान होने वाली हिंसा को लेकर देश की अदालतें अनेक बार अपनी चिंता जाहिर कर चुकी हैं, लेकिन अफसोस की बात यह है कि किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती। लखीमपुर खीरी की हिंसा में आठ लोगों की मौत हो गई। राज्य सरकार ने मृतकों के आश्रितों को 45-45 लाख रुपए और सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली। विपक्षी दल आंदोलन का बिगुल फूंक कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। सत्तारूढ़ दल भी प्रशासनिक जांच की लीपापोती कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ही लेगा।

इस तथ्य से शायद ही कोई अनभिज्ञ हो कि आंदोलन या धरने और प्रदर्शन लोकतंत्र की पहचान हंै। यह देश आजादी के बाद से अनेक मौकों पर बड़े – बड़े आंदोलनों का साक्षी रहा है। आपातकाल के दौर से पहले और बाद में लोकनायक जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति का आंदोलन आज भी लोगों को याद है, लेकिन पिछले दो दशकों में आंदोलन की परिभाषा बदलती नजर आ रही है। अधिकतर आंदोलनों की परिणति हिंसक टकराव के रूप में ही सामने आती रही है। हम जब सबसे बड़े लोकतंत्र होने का दावा करते हैं, तो क्या हमारी जिम्मेदारी बढ़ नहीं जाती? खासकर आंदोलन के संचालन को लेकर। देश में पहले भी आंदोलन हुए हैं और अब भी हो रहे हैं, लेकिन सभी पक्ष इस बात का ध्यान जरूर रखें कि हिंसा न हो।

तीन कृषि विधेयकों के विरोध में देश के कुछ हिस्सों में आंदोलन चल रहा है, लेकिन गौर करने लायक बात यह है कि आंदोलन उन्हीं राज्यों में तेज है, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र में पंजाब और पश्चिमी उत्तरप्रदेश जैसा किसान आंदोलन देखने में नहीं आ रहा। क्या इन राज्यों में किसान नहीं हैं? किसान तो हैं, लेकिन यहां चुनाव अभी दूर हैं। हिंसा में किसी की भी मौत हो, आखिर है तो वह देश का नागरिक ही। यह बात समझते सब हैं, लेकिन वोटों की राजनीति के चलते इस पर अमल नहीं हो पाता। लोकतंत्र में आंदोलन का महत्त्व है, लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलन के लिए पाबंद जरूर किया जाना चाहिए।

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