दरअसल पूरे देश में लाॅकडाउन के चलते बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। इसलिए विश्वविद्यालयों से लेकर छोटी कक्षाओं के स्कूलों तक में आॅनलाइन पढ़ाई की मुहिम तेज हो गई है। कुछ राज्य सरकारें भी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए निर्देश दे रही हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर राज्य सरकारों या शिक्षा विभाग द्वारा इस तरह की पढ़ाई के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं दिए गए हैं। बड़े शहरों के सम्पन्न विद्यार्थियों के पास तो ऑनलाइन पढ़ाई के पर्याप्त साधन मौजूद हैं लेकिन बड़े शहरों के गरीब विद्यार्थियों, छोटे शहरों, कस्बों और गांवों के अधिकतर विद्यार्थियों के पास ऐसी पढ़ाई हेतु पर्याप्त साधन मौजूद नहीं हैं। इस समय सबसे बड़ी व्यावहारिक दिक्कत यह आ रही है कि छोटे बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई से जुड़ाव महसूस नहीं कर रहे हैं। छोटी कक्षाओं के बच्चों को इस तरह की पढ़ाई बोझ लग रही है। बच्चों को पढ़ाई का यह तरीका बोझ लगना स्वाभाविक भी है।
छोटे शहरों और कस्बों में जिस पढ़ाई को ऑनलाइन का नाम दिया जा रहा है, वह वाट्सअप के माध्यम से हो रही है। इस पढ़ाई के अन्तर्गत अभिभावकों को वाट्सअप पर एक दिन में ही कई-कई पेज भेज दिए जाते हैं। फिर एक-दो दिन कोई काम नहीं भेजा जाता है। एक साथ इतने पृष्ठों को देखकर बच्चे सहम जाते हैं। होना तो यह चाहिए प्रतिदिन बच्चों को थोड़ा-थोड़ा काम भेजा जाए। नियमित थोड़े काम से उन्हें नियमित काम करने का अभ्यास भी रहेगा। दरअसल बड़ी कक्षाओं के बच्चे स्वयं जागरूक होते हैं इसलिए वे ऑनलाइन पढ़ाई के लिए आसानी से अपना आधार तैयार कर लेते हैं। हमें यह समझना होगा कि अध्यापन के दौरान छोटे बच्चों के लिए पढ़ाई में रोकचकता पैदा करना जरूरी है। रोचकता के अभाव में बच्चों को पढ़ाई बोझ लगने लगती है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इस कठिन समय में ऑनलाइन पढ़ाई छोटे बच्चों में रोचकता पैदा नहीं कर पा रही है। विचारणीय प्रश्न यह है कि आज जिस तरह से ऑनलाइन पढ़ाई का हल्ला मचाया जा रहा है, क्या उसके सार्थक परिणाम सामने आ पाएंगे ? इस समय ऑनलाइन पढ़ाई हड़बड़ी में कराई जा रही है। ऐसी स्थिति में इसके सार्थक परिणाम आने मुश्किल हैं। आज जरूरत इस बात की है कि राज्य सरकारें और स्कूल, अध्यापकों में ऑनलाइन अध्यापन को लेकर एक जिम्मेदारी का भाव पैदा करें। अध्यापकों को भी यह समझना होगा कि इस कठिन दौर में मजबूरी के चलते ऑनलाइन अध्यापन किया जा रहा हैं। इसलिए उन्हें यह सोचना होगा कि इस पढ़ाई को किस प्रकार सृजनात्मक बनाया जा सकता है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि आज छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई को सृजनात्मक बनाने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। सृजनात्मकता के माध्यम से ही बच्चों में पढ़ाई के प्रति रूचि जाग्रत हो पाएगी। इस समस्या के लिए काफी हद तक स्कूलों का प्रबन्धन भी जिम्मेदार है। ज्यादातर निजी पब्लिक स्कूलों में अध्यापकों को इतना अवकाश ही नहीं दिया जाता है कि वे पढ़ाई में स्वयं से सृजनात्मकता का माहौल तैयार कर सकें। ज्यादातर निजी पब्लिक स्कूलों का प्रबन्धन अध्यापकों को अपना गुलाम समझता है, इसीलिए वह उन पर अव्यावहारिक फैसले थोपता रहता है। इस मामले में सरकारी स्कूलों का रवैया भी परम्परागत और सरकारी है। सरकारी स्कूलों को सरकारी आदेश का पालन करना है तो करना है। इस सरकारी आदेश के पालन से व्यक्तिगत जुड़ाव नदारद है। ऑनलाइन पढ़ाई बुरी नहीं है लेकिन जिस तरह से बड़े बच्चों को आॅनलाइन शिक्षा दी जाती है उसी तरह से छोटे बच्चों को आॅनलाइन शिक्षा नहीं दी जा सकती। छोटे बच्चों को इस तरह की शिक्षा देने के लिए हमें अलग तरह से सोचना होगा। हमें यह सोचना होगा कि ऑनलाइन शिक्षा किस तरह बच्चों से एक बेहतर संवाद स्थापित कर पाएगी।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इसकी ऑनलाइन शिक्षा बच्चों से थोड़ा-बहुत संवाद भी स्थापित नहीं कर पा रही है। इस शिक्षा के माध्यम से जिस तरह बच्चों को काम दिया जा रहा है, उससे बच्चे अवसाद में भी जा सकते हैं। बच्चों को काम दिया जाना गलत नहीं है, गलत है बिना योजना के अव्यावहारिक रूप से काम दिया जाना। इस समय इस तरह की शिक्षा के माध्यम से बिना किसी योजना के अंधरे में तीर चलाया जा रहा है। अनेक जगहों पर विभिन्न एप्स के माध्यम से भी यह शिक्षा की दी जा रही है लेकिन तकनीकी कारणों से दूर दराज के इलाकों में इसका समुचित फायदा नहीं मिल रहा है। तकनीक अपनी जगह है लेकिन जब तक तकनीक के साथ दिल नहीं जुड़ेगा तब तक इसका सृजनात्मक उपयोग नहीं हो पाएगा।
आनॅलाइन पढ़ाई की इस प्रक्रिया में हमें गांवों के बच्चों के बारे में भी सोचना होगा। अभी इस प्रक्रिया में हमारा ध्यान गांवों के बच्चों की तरफ बिल्कुल भी नहीं है। बहरहाल मूल बात यह है कि छोटे बच्चों के लिए ऑनलाइन पढ़ाई को व्यावहारिक और वैज्ञानिक बनाया जाए। विश्वव्यापी आपदा की इस घड़ी में हम सिर्फ इस बात को ही न सोचें कि पढ़ाई के मामले में बच्चों की हानि हो रही है। हमें यह भी सोचना होगा कि इस नुकसान की भरपाई व्यावहारिक तौर पर कैसे हो सकती है। अगर जरूरत पड़े तो बच्चों के पाठ्यक्रम को थोड़ा कम भी किया जा सकता है। बच्चों को यह विश्वास भी दिलाया जा सकता है कि स्कूल खुलते ही आनलाइन शिक्षा की परीक्षा नहीं कराई जाएगी। योजनाबद्ध तरीके से ऑनलाइन अध्यापन न होने के कारण इसकी परीक्षा तो कराई ही नहीं जानी चाहिए। इस विश्वास से बच्चों को एक नैतिक बल मिलेगा और वे बेहतर ढंग से सीख पाएंगे। बहरहाल इस कठिन दौर में हमें बच्चों पर फैसले थोपने की बजाय उनके साथ खड़ा होना होगा।