देवताओं में से कोई चार युग तक और कोई एक मन्वंतर तक ही रहते हैं, किंतु मैं तुम्हें एक कल्प तक स्थिर बने रहने की अनुमति देता हूं।’ चूंकि ध्रुव राजवंश से आते हैं, इसलिए अनेक पुराण और प्रवचनकर्ता विष्णु के इस वरदान रूपी कथन को एक कल्प सत्ता पर राज्य करने की स्थिति के रूप में लेते हैं और ध्रुव तारे को अटल मानते हैं।
यद्यपि विष्णु-पुराण में विष्णु स्पष्ट रूप से कहते हैं कि तुझे मैं एक कल्प अर्थात तेरह हजार वर्ष रहने की इजाजत देता हूं। इस संवाद पर गहन सोच-विचार करने से ज्ञात होता है कि इस प्रसंग में खगोल-विज्ञान का बड़ा गूढ़ रहस्य अंतर्निहित है। धरती जिस धुरी पर घूमती है, उस धुरी की ठीक सीध में ध्रुव तारा है। इसलिए वह स्थिर अतएव अटल दिखाई देता है। यह पृथ्वी से दिखाई देने वाले तारों में से 45वां प्रकाशमान तारा है। पृथ्वी से यह लगभग 434 प्रकाशवर्ष की दूरी पर है। ध्रुव तारा सूर्य से बाइस सौ गुना ज्यादा चमकदार और तीन गुना बड़ा है।
परंतु पृथ्वी से अधिक दूरी पर स्थित होने की वजह से लघु रूप में दिखाई देता है। हम जानते हैं कि कुम्हार के चाक की तरह धुरी पर चाक जिस तरह से डोलता है, पृथ्वी भी उसी प्रकार अपने अक्ष पर डोलती है। इस प्रक्रिया को विज्ञान की भाषा में ‘पुरस्सरण’ (पोलैरिस) कहते हैं। पृथ्वी को एक पुरस्सरण चक्र पूरा करने में छब्बीस हजार वर्ष लगते हैं। इससे पता चलता है कि ऋषियों को ज्ञात था कि एक तारा और है, जो तेरह हजार वर्ष बाद ध्रुव तारे की तरह ही पृथ्वी की धुरी की दिशा में आ जाता है, अतऐव अटल दिखता है। इस तारे का नाम ‘अभिजित’ या ‘वेगा’ है। धरती से दिखने वाले और सबसे तेज चमकने वाले तारों में यह पांचवां माना जाता है। यह पृथ्वी से पच्चीस प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित है।
खगोल-विज्ञानियों का अनुमान है कि ध्रुव तारा 2105 तक पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव में पूरी तरह से एक सीधी रेखा में आ जाएगा। तत्पश्चात फिर छब्बीस हजार साल बाद इसका सीधी रेखा में पुनरागमन होगा। इसका स्थान अभिजित तारा ले लेगा। दरअसल यह पृथ्वी के चक्र की आवर्तन (रोटेशन) पद्धति है, जो तारों की स्थितियों को परिवर्तित कर देती है। हालांकि अनेक वैज्ञानिकों का यह भी दावा है कि यह कभी भी उत्तरी ध्रुव से पूरी तरह विलोपित नहीं होता।