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द वाशिंगटन पोस्ट से… अमरीका को एयूएएफ छात्रों को काबुल से लाना ही होगा

अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ अफगानिस्तान (एयूएएफ) की छात्राएं हैं। तालिबान के हाथों पकड़े जाने के डर से अब तक वे अपनी पहचान संबंधी सारे दस्तावेज नष्ट कर चुकी हैं। अमरीकी अधिकारी जिन अफगानियों को ‘संकट में’ मानते हैं, उनमें ये एयूएएफ छात्राएं भी हैं।

Aug 26, 2021 / 09:54 am

Patrika Desk

अमरीका को एयूएएफ छात्रों को काबुल से लाना ही होगा

अमरीका को एयूएएफ छात्रों को काबुल से लाना ही होगा

चार्ल्स लेन

(लेखक व स्तम्भकार, आर्थिक और वित्तीय नीति में विशेषज्ञता)

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की निकासी की डेडलाइन 31 अगस्त पर कायम हैं। मतलब जो लोग अफगानिस्तान से निकलना चाहते हैं, उनके पास काफी कम वक्त है। जैसे ही यह खबर आई, काबुल में रह रहीं विशेष अमरीकी संबद्धता प्राप्त सैकड़ों महिलाओं को चिंता हो गई कि वे कब वहां से बाहर निकलेंगी। ये अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ अफगानिस्तान (एयूएएफ) की छात्राएं हैं। तालिबान के हाथों पकड़े जाने के डर से अब तक वे अपनी पहचान संबंधी सारे दस्तावेज नष्ट कर चुकी हैं। सूत्रों के हवाले से पता चला है कि अमरीकी अधिकारी जिन अफगानियों को ‘संकट में’ मानते हैं, उनमें ये एयूएएफ छात्राएं भी हैं।

तालिबान महिलाओं के साथ चेकपॉइंट पर बहुत बुरा व हिंसक बर्ताव कर रहा है। रात के वक्त तालिबानी अमरीका के नाइट विजन गोगल्स लगा कर अपने संभावित विरोधियों के मकानों पर स्प्रे पेंट से निशान लगा रहे हैं। तालिबान ने अपनी मांग फिर दोहराई है कि अमरीका अफगानियों को वहां से निकलने के लिए प्रोत्साहित न करे। अगर अमरीका इस संस्था के छात्र- छात्राओं को नहीं निकाल पाया तो यह उसकी एक और हार होगी। 2006 में जब अफगाानिस्तान में 100 मिलियन अमरीकी डॉलर की आर्थिक सहायता से यह यूनिवर्सिटी खोली गई तो तत्कालीन प्रथम महिला लॉरा बुश ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की थी। यह अफगानिस्तान में उच्च शिक्षा का एकमात्र गैर लाभकारी, स्वतंत्र निजी सहशिक्षण संस्थान है। यह संस्थान अफगानिस्तान को भावी महिला व पुरुष कुशल नेतृत्व देने के अमरीकी प्रयासों का प्रतीक है। जिन छात्र-छात्राओं ने यहां कानून से लेकर इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर विज्ञान और बाकी विषय पढ़े हैं और यहां का सहायक स्टाफ, सभी को अमरीका पर भरोसा है। तालिबान ने 24 अगस्त 2016 को एयूएएफ पर निशाना साधा था। तालिबानियों ने बंदूकों व विस्फोटकों के साथ परिसर में करीब दस घंटे छापेमारी की थी। हमलावरों ने 7 छात्र-छात्राओं सहित 15 जनों को मार गिराया था। इससे पहले संस्थान के दो इंग्लिश टीचर, एक अमरीकी व दूसरे ऑस्ट्रेलियाई नागरिक को बंधक बना लिया था। 2019 में तालिबान के बड़े नेताओं के बदले उन्हें छुड़ाया जा सका।

अफगान सरकार और सेना की लापरवाही और हथियार डाल देने पर बहुत-सी बातें हो रही हैं जो कुछ हद तक सही हैं। एयूएएफ को 2016 के हमले के बाद फिर से बनाया गया और 27 मार्च 2017 में इसे दोबारा खोल दिया गया था। अब तालिबानी लड़ाकों ने इस पर कब्जा कर लिया है, बिना किसी विरोध का सामना किए। विस्फोट प्रूफ दीवारों, कक्षाओं व प्रयोगशालाओं और चारों ओर हरियाली वाला पूरा परिसर तालिबानियों के हाथ में चला गया। उनके पास वहां तमाम तरह के हथियार हैं जो उन्होंने लूटे हैं। यूनिवर्सिटी कम्युनिटी वहां से पहले ही जा चुकी है। निकलने से पहले उन्होंने स्कूल वेबसाइट और सर्वर व प्रोफेसर और छात्र-छात्राओं की लिस्ट सहित सारे दस्तावेज नष्ट कर दिए थे। 15 अगस्त से अब तक यूनिवर्सिटी कम्युनिटी के 1200 लोगों में से शायद 50 अफगानिस्तान से निकल चुके हैं। फ्रेंड्स ऑफ एयूएएफ के अध्यक्ष लेस्ली श्वित्जर के अनुसार, निकल चुके छात्र दोहा, कतर में हैं। अब स्कूल के सैटेलाइट लोकेशंस से ऑनलाइन संचालन की तैयारी की जा रही है। एयूएएफ की कहानी दर्शाती है कि कुछ अमरीकी प्रयास सार्थक भी रहे। जो भी हो, लोगों ने अमरीकी वादे पर अपना जीवन दांव पर लगा रखा था, उन्हें धोखा नहीं दिया जा सकता।

(द वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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