गौरतलब है कि नागरिक संशोधन कानून (CAA) पास होने के बाद स्वामी विवेकानंद की ओर से अमरीका के शिकागो में सर्वधर्म संभाव पर 11 सितंबर 1893 दिया गया भाषण इन दिनों फिर से चर्चा में है। संसद से लेकर सड़क तक वर्तमान सरकार को घेरने के लिए स्वामी विवेकानंद के इस भाषण का इस्तेमाल कर रहे हैं। दरअसल, सीएए में मुसलमानों को छोड़कर सभी धर्मों के धार्मिक रूप से प्रताड़ित लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है, जिसे भारतीय संविधान की प्रस्तावना की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए देशभर के विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्रा सड़कों पर हैं। इन सभी का कहना है कि संविधान सभी को बराबर का हक देता है। लिहाजा, धर्म के अधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इस मौके पर स्वामी विवेकानंद का शिकागो में दिया गया भाषण इस लिए वायरल हो रहा है, क्योंकि उस भाषण में उन्होंने कहा था कि ‘मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को बिना क्सी भेदभाव के अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।
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यह है स्वामी विवेकानंद का पूरा भाषण
अमरीकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है। उससे मेरा दिल भर आया है। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से आपको धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं, जिन्होंने यह जाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ़ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते, बल्कि हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं, जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इसरायल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं, जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे गर्व है कि मेरा संबंध एक ऐसे धर्म से है, जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।
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मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं, जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं। ”जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं। मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण है। ”जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।” सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है. उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है. न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए। यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है, लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा। चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से।