प्राथमिक जांच में जो तथ्य सामने आए हैं, उसके तहत जिस फैक्ट्री में आग लगी वह काफी सघन इलाके में संचालित हो रही थी। फैक्ट्री मालिक ने फायर ब्रिगेड से फायर एनओसी भी नहीं ले रखी थी। यही नहीं, जिस गली में फैक्ट्री थी, वह इतनी संकरी थी कि गाडिय़ां अंदर नहीं जा सकती हैं। इसके अलावा, पूरे इलाके में खुले तारों का जंजाल है। यानी एक नहीं कई विभाग इस लापरवाही में शामिल रहे हैं और इसका खामियाजा इस घटना से प्रभावित लोगों को भुगतना पड़ा। ऐसे में यह फैक्ट्री इतनें दिनों से किसकी मिलीभगत से चल रही थी, यह बड़ा सवाल है।
दिल्ली में आग लगने की यह दुखद घटना जिन वजहों से हुई, कमोबेश यही स्थितियां नोएडा और गाजियाबाद में भी हैं। गाजियाबाद में ही बीते कुछ वर्षों में आग लगने की कई बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। 11 नवंबर 2016 को साहिबाबाद की एक कपड़ा फैक्ट्री में आग लगी। इस घटना में 10 लोगों की मौत हो गई थी। वर्ष 2017 में एक केमिकल फैक्ट्री आग लगी। यह आग इतनी भयावह थी कि पूूरी फैक्ट्री जलकर खाक हो गई। आग को बुझाने के लिए वायुसेना की मदद लेनी पड़ी थी। फैक्ट्री के बगल में ही सीएनजी पंप था, जिससे आग और भडक़ गई थी।
वहीं, फरवरी 2019 में नोएडा के मेट्रो अस्पताल में आग लग गई। आनन-फानन में मरीजों और उनके परिजनों को खिडक़ी के रास्ते क्रेन की मदद से बाहर निकाला गया। अगस्त 2019 में नोएडा के सेक्टर 25 में स्पाइस मॉल में आग लग गई। यह सभी घटनाएं भवन-फैक्ट्री संचालकों की लापरवाही से हुईं और पूरा खेल फायर विभाग, बिजली विभाग और प्रशासन की मिलीभगत से चल रहा था।
आग लगने की ज्यादातर घटनाएं ठंड के मौसम में ही हुई हैं। इसलिए प्रशासन को अब ज्यादा सचेत रहना चाहिए। दिल्ली की घटना को एक सबक मानते हुए उन्हें तत्काल ऐसे कारखानों का निरीक्षण करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वहां किसी तरह की लापरवाही तो नहीं बरती जा रही। अगर दुर्भाग्यवश ऐसी कोई घटना होती भी है तो उससे त्वरित निपटने के पर्याप्त इंतजाम हैं या नहीं।
आग लगने की स्थिति में फायर बिग्र्रेड की गाडिय़ां मौके तक पहुंच सकेंगी या नहीं। फायर ब्रिगेड को भी समय-समय पर मॉक ड्रिल करते रहनी चाहिए, जिससे उनके उपकरण और वाहनों की जांच होती रहे कि वह समय पर काम कर सकेंगे या नहीं। घटनास्थल तक पहुंचने के लिए यातायात सुगम हो और फायर बिग्रेड की गाड़ी को अतिक्रमण की वजह से जाम में नहीं फंसना पड़े, इसके लिए नगर निगम और प्राधिकरणों को समुचित व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही, यातायात पुलिस और प्रशासन भी यातायात सुचारू रहे, इसकी मॉनिटरिंग करे। प्रशासन देखे कि फैक्ट्री रहवासी इलाके में संचालित नहीं हो, इससे जान का नुकसान कम होगा। साथ ही, भवन ऐसा बनाया गया हो, जिससे लोगों को तुरंत निकाला जा सके।
विद्युत वितरण कंपनियों सबसे अधिक सतर्क रहने की जरूरत है। तारों और ट्रांसफार्मरों की जांच समय-समय पर करते रहनी चाहिए, जिससे यह तय होता रहे कि निर्धारित क्षमता में ही उनका इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही, खुले तार और सघन तारों के जंजाल से लोगों को जल्द से जल्द मुक्ति दिलाने के उपाय किए जाने चाहिए, क्योंकि आग लगने की ज्यादातर घटनाएं शार्ट सर्किट की वजह से ही होती हैं। अगर सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का ईमानदारी से पालन करें तो ऐसी घटनाओं और इससे होने वाली क्षति को रोका जा सकता है।