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जानिए, कैराना लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करना क्यों भाजपा के लिए बन गया है नाक का सवाल

विपक्षी एकता के लिए लिट्मस टेस्ट है कैराना उपचुनाव

नोएडाMay 29, 2018 / 11:30 am

Iftekhar

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जानिए, कैरना लोकसभा उपचुनाव में जीत दर्ज करना क्यों भाजपा के लिए बन गया है नाक का सवाल

सहारनपुर. आम चुनाव 2019 में एक साल से भी कम का समय बचा है। इसके साथ ही केन्द्र में सत्तासीन एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है। कैराना चुनाव जीतने और हारने से से वर्तमान केन्द्र सरकार की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है। ऐसे में ये सवाल उठता है कि फिर इस चुनाव को लेकर इतनी हाय-तौबा क्यों मची है। इसकी वजह ये है कि कुछ दिनों पहले गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में भाजपा को सपा-बसपा गठबंधन के सामने हार का सामना करना पड़ा था। खुद सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का क्षेत्र होने के बाद भी यहां मिली हार से दोनों नेताओं पर सवाल खड़े हो गए थे। यह भी कहा जाने लगा था कि अब भाजपा का मिडास खत्म हो रहा है। ऐसे में भाजपा कैराना उपचुनाव को गोरखपुर और फूलपुर के बदले के तौर पर लेते हुए अपने नाक का सवाल बना लिया है। भाजपा यह सीट जीतकर यह साबित करना चाहती है कि गोरखपुर और फूलपुर के नतीजे अपवाद थे और सूबे में अब भी भाजपा की लहर चल रही है। वहीं, विपक्ष भी कैराना उपचुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल के तौर पर देख रहा है। दरअसल, इस उपचुनाव में समूचा विपक्ष एक साथ खड़ा है। अगर यहां विपक्ष का उम्मीदवार जीत जाता है तो यह विपक्षी एकता के मॉडल को संजीवनी प्रदान करेगा। लिहाजा, यह रणनीति विपक्ष के लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह है। अगर भाजपा के खिलाफ विपक्ष की यह रणनीति सफल रही तो 2019 में विपक्ष इसे सफलता का मॉडल मानकर चुनाव में उतर सकता है।

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कैराना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है। कैराना के जरिए भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर पकड़ बनाये रखना चाहती है। यहां बड़ी संख्या में किसान मतदाता हैं। खासकर गन्ना किसान। ऐसे में इस चुनावों से यह भी साफ होगा कि किसानों का रुख किस तरफ है। किसान वोटर भाजपा के लिए कितने महत्वपूर्ण बन चुके हैं, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि रविवार को कैराना से सटे बागपत में प्रधानमंत्री मोदी ने ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे के उद्घाटन के मौके पर जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाकायदा गन्ना किसानों का नाम लेकर कहा कि सरकार किसानों के प्रति संवेदनशील है। इस दौरान पीएम मोदी ने अपनी सरकार की किसान हितैषी योजनाओं का भी जमकर बखान किया।

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राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माने जा रहे इस सीट से भाजपा के हुकुम सिंह सांसद थे। इस क्षेत्र में उनकी अच्छी-खासी धमक थी। हुकुम सिंह के निधन के बाद भाजपा ने सहानुभूति की लहर में चुनावी बैतरनी पार करने के लिए उनकी बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा था। पार्टी ने कैराना में भाजपा के पारंपरिक वोटरों को जोड़ने की रणनीति के तहत दिवंगत सांसद हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को देकर हुकुम सिंह की लोकप्रियता का फायदा उठाने की कोशिश की थी। कैराना लोकसभा सीट में शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले की गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं। क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं। इनमें मुस्लिम, जाट और दलितों की काफी संख्या है। अमूमन जाट आरएलडी के पारंपरिक वोटर माने जाते हैं, लेकिन भाजपा ने इसमें सेंधमारी कर दी है। वर्ष 2014 में पार्टी को जाटों का ठीक-ठाक वोट मिला था।

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उपचुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी है। यानी मतदाताओं ने अपना मत ईवीएम में बंद कर दिया है। अब 31 तारीख को मतगणना है। लिहाजा मतगमना के बाद ही साफ हो पाएगा की किस की रणनीति सफल रही। 2019 के इस सेमिफाइनल से किसे संजीवनी मिलती है और किसे अपनी रणनीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन विपक्षी एकता से इतना तो साफ हो गया है कि 2019 में जीत दर्ज करना भाजपा के लिए उतना आसान नहीं होगा, जितनी आसानी से 2014 में सत्ता हासिल हो गई थी। हालांकि, चुनाव के दौरान ईवीएम में आई खराबी के कारण घंटों की देरी के बाद मतदान शुरू होने और भारी संख्या में मतदाताओं के अपने अपने घर वापस चले जाने की वजह से इस लोक सभी सीट के उन मतदान केन्द्रों पर फिर सो वोटिंग की मांग विपक्षी पार्टियां कर रही है। गौरतलब है कि कैराना लोकसभी उपचुनाव के दौरान 130 ईवीएम में खराबी आई थी। विपक्ष का ये भी आरोप है कि दलित और मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों की ईवीएम में खराबी आई थी, जोकि भाजपा की सोची समझी चाल का हिस्सा है। वहीं, भाजपा इस गठबंधन प्रत्याशी को दिख रही आपनी हार की खिसियाहत बता रही है। हालांकि, विपक्षी उम्मीदवार ने इस की शिकायत मुख्य चुनाव आयोग से कर ईवीएम खराब होने वाले मतदान केन्द्रों पर फिर से मतदान कराने की मांग की है। अब देखना ये होगा कि चुनाव आयोग इस दिशा में क्या कदम उठाता है।

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