यूक्रेन और रूस युद्ध की पृष्ठभूमि
ऐतिहासिक तनाव: यूक्रेन ने 1991 में सोवियत संघ से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। तब से, यूक्रेन में प्रे-रूस और प्रो-यूरोपीय धड़ों के बीच तनाव रहा है।
क्राइमिया का अधिग्रहण: 2014 में, रूस ने यूक्रेन में यूरोमेडन प्रदर्शन और एक प्रॉ-रूस राष्ट्रपति की बर्खास्तगी के बाद क्राइमिया का अधिग्रहण किया। इस कदम की व्यापक रूप से निंदा की गई और रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए गए।
2022 का आक्रमण
पूर्ण पैमाने पर आक्रमण: 24 फरवरी, 2022 को,
रूस ने एक बड़े पैमाने पर आक्रमण शुरू किया, सुरक्षा चिंताओं और यूक्रेन में रूसी-भाषी जनसंख्या की रक्षा के नाम पर। इस आक्रमण का यूक्रेनी बलों ने कठोर विरोध किया।
वैश्विक प्रतिक्रिया: इस आक्रमण की व्यापक निंदा की गई और पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ से यूक्रेन के लिए महत्वपूर्ण सैन्य और मानवीय सहायता मिली।
जंग के प्रमुख घटनाक्रम
सैन्य संघर्ष: कीव, मारियुपोल और बखमुत जैसे शहरों में प्रमुख लड़ाइयाँ हुई हैं, जिनमें दोनों पक्षों के लिए बड़ी संख्या में हताहत हुए हैं।
एंटी-टैंक हथियार और वायु रक्षा प्रणाली
अमेरिका और नाटो सहयोगियों ने यूक्रेनी बलों को उन्नत हथियार, प्रशिक्षण और खुफिया जानकारी प्रदान की है, जिसमें आर्टिलरी सिस्टम, एंटी-टैंक हथियार और वायु रक्षा प्रणाली शामिल हैं।
जंग का मानवीय प्रभाव
लाखों यूक्रेनी लोग विस्थापित हो गए हैं, जिनमें से कई पड़ोसी देशों में शरण ले चुके हैं। युद्ध ने गंभीर मानवीय संकट पैदा किया है, जिसमें खाद्य संकट और चिकित्सा आवश्यकताएँ शामिल हैं।
नागरिक हताहत : युद्ध ने महत्वपूर्ण नागरिक हताहत और बुनियादी ढांचे को नष्ट किया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय मानवीय प्रयासों की आवश्यकता बढ़ गई है।
जंग की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में, संघर्ष जारी है, जिसमें समय-समय पर वृद्धि और बातचीत के प्रयास शामिल हैं। शांति वार्ताएँ ठप हो गई हैं, और दोनों पक्ष अपनी स्थिति में अडिग हैं।
रूस और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध
रूस को अपने आर्थिक आधार को कमजोर करने के लिए लगातार प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि यूक्रेन अधिक मजबूत सैन्य समर्थन के लिए संघर्ष कर रहा है।
जंग के भू-राजनीतिक परिणाम
नाटो का विस्तार: इस संघर्ष ने पूर्वी यूरोप में नाटो के लिए समर्थन को बढ़ाया है, जिसमें फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों ने सदस्यता लेने की इच्छा व्यक्त की है।
वैश्विक ऊर्जा संकट
युद्ध ने वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति और कीमतों को प्रभावित किया है, विशेष रूप से यूरोप में, जिसके परिणामस्वरूप ऊर्जा स्वतंत्रता और वैकल्पिक स्रोतों पर चर्चा हुई है। स्थिति जटिल है और संघर्ष में विकास क्षेत्रीय और वैश्विक गतिशीलता को आकार देता है।