दस्तावेजों में दर्ज आंकड़े बताते हैं कि देश में जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने वालों की सूची में शीर्ष पर मौजूद 50 लोगों के पास भारतीय बैंकों का 92570 करोड़ रुपए बकाया है। अर्थशास्त्रियों द्वारा जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने के मामलों पर अधिक ध्यान नहीं देने की एक बड़ी वजह यह भी है कि इस तरह के मामले सिर्फ भारत से संबंधित हैं और हाल के दिनों तक ज़्यादातर आर्थिक शोध मुख्य रूप से अमेरिका पर केंद्रित रहे हैं। लिहाजा इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है कि, अर्थशास्त्र एवं फाइनेंस के क्षेत्र में जानबूझकर कर्ज़ न चुकाने के मामलों पर शोध को काफी हद तक नजरअंदाज किया गया है।
भारतीय उद्योग जगत के लिए खुशी की बात यह है कि सरकार ने सुधारों की आवश्यकता को समझते हुए मौजूदा कमियों को दूर करने के लिए संशोधन पेश किए हैं। उदाहरण के लिए एमएसएमई के लिए प्री-पैकेज्ड इन्सॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोसेस की शुरूआत से छोटे उद्यमों के दिवालियापन से संबंधित मामलों का अधिक किफायती तरीके से समाधान संभव हो गया है। किसी भी सरकार की तरह हमारी सरकार भी इस बात को अच्छी तरह समझती है कि ऋण समाधान दोनों पक्षों के लिए जीत वाली स्थिति है। इसे सही तरीके से लागू करने पर अनुकूल कारोबारी माहौल बनाने में मदद मिलने के साथ-साथ निवेशकों का भरोसा भी बढ़ता है, और यकीनन इससे अधिक संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होते हैं।