जो सडक़ें धंसी नहीं, उनपर ही होगी तकनीकि इस्तेमाल
विभाग का दावा है कि इस तकनीक में करीब 20 साल तक सडक़ें खराब नहीं होंगी और सरकार का हर साल के मेंटेनेंस का खर्चा भी बचेगा। सडक़ें पानी की वजह से खराब होती हैं और उसमें गड्?ढे हो जाते हैं। लेकिन, यह सडक़ें धंसती नहीं हैं। व्हाइट टॉपिंग का उपयोग ऐसी ही सडक़ों पर किया जाना है।
ये रहेगा खर्च का हिसाब
एक किमी पर 33 लाख अधिक खर्च व्हाइट टॉपिंग तकनीक से बनी सडक़ सामान्य डामर रोड की तुलना करीब ढाई गुना महंगी है। अधिकारियों के मुताबिक 7 मीटर चौड़ी एक किलोमीटर टूलेन डामर रोड पर 22 लाख रुपए खर्च आता है। अगर व्हाइट टॉपिंग तकनीक से इसे बनाने पर करीब 55 लाख प्रति एक किमी के हिसाब से बनेगी।
मेंटेनेंस पर खर्च घटेगा
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि व्हाइट टॉपिंग तकनीक के तहत डामर रोड पर बेस मजबूत कर छह इंच कांक्रीट किया जाता है। यह तकनीक दक्षिण भारत के राज्यों सहित कई नेशनल हाइवे पर उपयोग में लाई जा रही है। लेकिन, इसमें शर्त यह है कि सडक़ें भार की वजह से धंसे नहीं। यह तकनीक बहुत कारागर है और इसमें केवल एक बार खर्च करने के बाद बार-बार मेंटेंनेस की जरूरत नहीं पड़ेगी। गौरतलब है कि कुछ समय पहले मुख्यमंत्री ने एक बैठक में ऐसे विकल्पों पर काम करने के लिए कहा था, जिन्हें अपनाने से सडक़ें लंबे समय तक चलें। साथ ही हर साल सडक़ों के मेंटेनेंस पर भारी-भरकम राशि खर्च करने की जरूरत न पड़े।
इनका कहना है
व्हाइट टॉपिंग तकनीक ऐसे शहरों के लिए मुफीद है, जहां हर साल सडक़ें खराब होती हैं। इसके लिए विभाग ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है। इस तकनीक से बनी सडक़ें लंबे समय तक चलती हैं। बार-बार मेंटेनेंस पर पैसा खर्च नहीं होता।
आरके महेरा, प्रमुख अभियंता, लोक निर्माण विभाग
आरएस शुक्ला, कार्यपालन अभियंता