भारत में बीड़ी उद्योग एक प्राचीन और पारंपरिक उद्योग होने के साथ-साथ भारतीय अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। एक सदी से अधिक समय से लाखों लोगों का घर इस उद्योग पर टिका है। बीड़ी उद्योग मुख्यत: महिलाओं के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस उद्योग को कई संकटों का सामना करना पड़ा है, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका जीएसटी (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) और अन्य सरकारी नियमों की है। 2003 के ‘सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन पर प्रतिबंध और व्यापार और वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का नियमन)’ अधिनियम द्वारा लगाए गए कड़े प्रतिबंधों ने इस उद्योग को बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसका सबसे बड़ा नुकसान महिलाओं को हो रहा है जिनमें कौशल विकास की कमी होने की वजह से रोजगार के सीमित साधन हैं।
आज के समय में सरकार को बीड़ी बनाने वालों और अन्य संबंधित श्रमिकों की पहचान और पंजीकरण करने की ज़रूरत है। इसके जरिए बीड़ी कर्मियों को विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं और लाभों का लाभ मिल सकेगा। कुछ तत्काल उपाय जो सरकार को लागू करने की आवश्यकता है- जैसे सभी बीड़ी प्रतिष्ठानों का पंजीकरण, श्रम कानूनों का पालन, चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाना और बीड़ी श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों तक पहुंच में सुधार। अगर बीड़ी श्रमिकों को पहचान पत्र प्रदान किए जाते हैं तो यह उन्हें कई कानूनी लाभ तो मिलेंगे ही साथ ही वे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ भी उठा सकेंगे।
वर्तमान में मध्यप्रदेश देश में बीड़ी उत्पादन का सबसे बड़ा क्षेत्र है। यहां तेंदु पत्तों की अधिकता की वजह से राज्य में बीड़ी उद्योग प्रभावी है। लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले कुछ सालों में बीड़ी श्रमिकों की संख्या में खासी गिरावट आई है। केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय ने मध्य प्रदेश में 4,40,556 श्रमिकों की संख्या बताई है, लेकिन वास्तविक स्थिति ये है कि असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक पंजीकृत नहीं होते इसलिए वास्तविकता में ये संख्या कहीं अधिक हो सकती है।
बीड़ी उद्योग में आ रही गिरावट से सबसे ज्यादा चिंता महिलाओं को है। जिनके लिए रोजगार के सीमित अवसर होते हैं और बीड़ी उद्योग का एक बड़ा हिस्सा महिलाओं के भरोसे ही चलता है। महिलाओं का कहना है कि अगर बीड़ी उद्योग बंद हुआ तो उनकी धड़कनें बंद हो जाएंगी। अपने आप में ये वक्तव्य दिल को झकझोर देने वाला है। दूसरा पक्ष ये भी है कि 2017 में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (GST) की 28% दर के बीड़ी पर लागू होने से इस उद्योग पर गहरा असर पड़ा है। मालिकों पर वित्तीय दवाब बढ़ा है जिससे उन्होंने श्रमिकों के वेतनों में कमी करनी शुरू कर दी है। साथ ही साथ, सख्त एंटी-टबेको कानूनों की वजह से भी बीड़ी उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
इसके अलावा, असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बड़ी संख्या में बीड़ी श्रमिक पंजीकृत नहीं होते और इस कारण उन्हें कर्मचारी भविष्य निधि (Provident Fund) योजना और न्यूनतम वेतन जैसी सुरक्षा योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कल्याणकारी उपायों का लाभ भी सही तरीके से लागू न होने के कारण सीमित ही है। बीड़ी श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए निर्धारित डिस्पेंसरियों में डॉक्टरों और पैरामेडिकल कर्मचारियों की कमी ने स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में गिरावट का कारण बना दिया है। इस प्रकार देखें तो बीड़ी श्रमिकों की हालत दिन-ब-दिन खास्ता होती जा रही है।
इस संकट से उबरने के लिए कुछ सुझाव हैं जैसे 28% की जीएसटी दर में कमी की जानी चाहिए। जिससे मालिकों पर वित्तीय दबाव कम हो और श्रमिकों के वेतन में सुधार हो। सभी बीड़ी प्रतिष्ठानों को पंजीकृत करना और श्रम कानूनों का पालन सुनिश्चित करना। इससे श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा होगी जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ भी मिल सकेगा। बीड़ी श्रमिकों और उनके परिवारों के लिए चिकित्सा सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाना और शिक्षा और कौशल विकास कार्यक्रमों तक पहुंच में सुधार उनके समग्र कल्याण में योगदान कर सकता है। सभी बीड़ी श्रमिकों को पहचान पत्र जारी करना उन्हें कानूनी लाभों और सामाजिक सुरक्षा उपायों का लाभ उठाने में सक्षम बनाएगा।
- आकाश कुमार, स्वतंत्र पत्रकार