इस परियोजना से जुड़ी मैसरु विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास और पुरातत्व अध्ययन विभाग की अध्यक्ष वी. शोभा ने कहा कि गांव के पश्चिम में एक छोटी सी पहाड़ी है और आस-पास के खेतों में मेगालिथिक काल की सैकड़ों कब्रें हैं, जो लौह युग से मेल खाती हैं। इन कब्रों में बड़े-बड़े पत्थरों से बने घेरे हैं, इसलिए इन्हें मेगालिथिक नाम दिया गया है। चूंकि इस अवधि के दौरान लौह प्रौद्योगिकी का उपयोग किया गया था, इसलिए इसे लौह युग के रूप में भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में, इस अवधि को मोटे तौर पर 1200 ईसा पूर्व से 300 ईसवी के समय के दायरे में रखा गया है।
1000 से अधिक दफन थे उन्होंने बताया कि डोड्डलाथुर मेगालिथिक दफन स्थल की खोज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सी. कृष्णमूर्ति ने 1961 में की थी। स्थानीय गांवों के अनुसार, इस स्थल पर कभी 1,000 से अधिक दफन थे, लेकिन हाल के वर्षों में कृषि और खेती की गतिविधियों, निपटान और भूमि विकास परियोजनाओं के विस्तार के कारण कई गायब हो गए हैं। गड़बड़ी के बावजूद अधिकांश दफन अभी भी बरकरार हैं। ऐसे में इस स्थल पर खुदाई की संभावना है।
अधिक प्रकाश डालने की उम्मीद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त अधीक्षण पुरातत्वविद् सी.बी. पाटिल, उत्खनन और परियोजना के सह-निदेशक हैं। उन्हें इस अवधि के लिए वैज्ञानिक तिथियों को इक_ा करने के अलावा दक्षिणी कर्नाटक के पहाड़ी क्षेत्रों में मेगालिथिक-लौह युग की संस्कृति पर अधिक प्रकाश डालने की उम्मीद है।