Habib Tanvir : एक ‘चोर’ जिसने बॉलीवुड में बनाई खास पहचान, आज भी लोगों के जहन में ताजा हैं इनके किस्से
Habib Tanvir Biography : थिएटर के महान नायक कवि, डायरेक्टर, लेखक हबीब तनवीर का आज जन्म दिवस है। 1 सितंबर 1923 में जन्में हबीब साहब ने 8 जून 2009 को आखिरी सांस ली। patrika.com पर देखें हबीब तनवीर के जन्म दिवस पर जानें उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से…।
Habib Tanvir Biography : अपने अंतिम समय तक भी हबीब तनवीर ऊर्जा से भरे थे। वो लगातार काम किया करते और पूरी तरह से थिएटर, आर्ट और जनता के लिए समर्पित थे। थकान उनके आसपास भी नहीं नजर आती थी। हबीब तनवीर ही हैं जिन्होंने भोपाल में 1959 में थिएटर की नींव रखी थी। यह थिएटर आज भी चल रहा है। हबीब दा की शौहरत भोपाल के भारत भवन की देन है। उनका सबसे चर्चित और प्रसिद्ध नाटक ‘चरणदास चोर’ इतना फेमस हुआ कि इसी नाटक ने उन्हें बालीवुड की दुनिया में पहुंचा दिया। यह नाटक आज भी किसी अवसर पर आयोजित किया जाता है, लेकिन इसमें हबीब दा नजर नहीं आते, उनकी सिर्फ रूह ही नजर आती हैं।
कुछ लोग ही जानते है कि हबीब तनवीर की दो ख्वाहिशें थीं, जो पूरी नहीं हो सकीं। 1 सितंबर 1923 में जन्में थिएटर के इस महान नायक हबीब तनवीर ने 8 जून 2009 को अंतिम सांस ली थीं। patrika.com पर देखें हबीब तनवीर के जन्म दिवस के अवसर पर उनसे जुड़े दिलचस्प किस्से…।
पहली ख्वाहिश जो रह गई अधूरी
हबीब तनवीर के पिता चाहते थे कि वे एक बार पेशावर जरूर जाएं। अपने जीवन के अंतिम दिनों में हबीब साहब ने अपनी इस ख्वाहिश का जिक्र किया था। उनके अब्बा चाहते थे कि वे पेशावर के ऑडिटोरियम में कुछ नाटक पेश करें। वहां के चप्पली कबाब खाकर आएं। लेकिन, अपने जीवन काल में वो कभी पेशावर नहीं जा सके।
दूसरी ख्वाहिश जो रह गई अधूरी
हबीब तनवीर कहते थे कि वे अफगानिस्तान के लोक कलाकारों के साथ एक वर्कशॉप करना चाहते थे। 1972 में सरकार की ओर से उन्हें फरमान मिला कि मालूम करो कि काबुल में थियेटर वर्कशॉप हो सकती है या नहीं। तब बन्ने भाई सज्जाद जहीर के साथ काबुल पहुंचे। कहवा पीते हुए हमने काबुल में थियेटर की बातें कीं। वहां जबरदस्त लोक थियेटर है। अफगान की तवायफों का नाच लगातार चलता है पर एक गम था वो ये कि वहां हालात थिएटर के लायक नहीं थे।
85 साल की उम्र में हबीब तनवीर इस दुनिया से रुख्सत हो गए। उनका जन्म रायपुर में 1 सितंबर 1923 को हुआ था। जबकि उनका निधन 8 जून 2009 को भोपाल में हुआ था। उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार (1954) चरणदास चोर (1975) आदि शामिल हैं। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित की थी। उनका पूरा नाम हबीब अहमद खान था, लेकिन कविता लिखनी शुरू की तो अपना तखल्लुस ‘तनवीर’ रख लिया। उसके बाद हबीब तनवीर के नाम से मशहूर हुए। हबीब ने पत्रकार की हैसियत से कॅरियर शुरू किया था। रंगकर्म और साहित्य की अपनी यात्रा के दौरान कुछ फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं और उनमें अभिनय तक किया।
आगे का सफर
रायपुर के लौरी म्युनिसिपल स्कूल से मैट्रिक पास की थी और नागपुर के मौरिश कॉलेज से बीएकिया। हबीब की एमए प्रथम वर्ष की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई। केवल 22 साल का यह लड़का 1945 में मुंबई पहुंच गया और रेडियो में काम करने लगा। इस दौरान कुछ हिन्दी फिल्मों के गीत भी लिखे, जिनमें से अधिकतर खासा लोकप्रिय भी हुए।
मुंबई में उन्होंने प्रगतिशील लेखक संघ की सदस्यता ले ली और इप्टा का प्रमुख हिस्सा बन गए। ऐसा समय आया जब इप्टा के प्रमुख सदस्यों को ब्रिटिश राज के खिलाफ काम करने के लिए गिरफ्तार किया गया था और तब इप्टा की बागडोर हबीब तनवीर को सौंपी गई थी। वर्ष 1954 में वह दिल्ली आ गए और उन्होंने कुदमा जैदी के हिन्दुस्तान थिएटर के साथ काम करना शुरू कर दिया। इस दौरान वह बच्चों के थिएटर से भी जुड़े रहे और कई नाटक लिखे। इसी दौर में उनकी मुलाकात कलाकार और निर्देशिका मोनिका मिश्रा से हुई और बाद में उनकी पत्नी बन गई।
भोपाल में बनाया नया थियेटर
साल 1959 में हबीब तनवीर ने भोपाल में नए थिएटर की नींव रखी। ये थिएटर आज भी उन्हीं के आदर्शों को संजोकर यथावत चल रहा है। हालांकि, हबीब उस वक्त विवादों में आ गए थे, जब 90 के दशक में उन्होंने धार्मिक ढकोसलों पर आधारित नाटक ‘पोंगा पंडित’ प्ले किया था। नाटक का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अन्य कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों के खासा विरोध का सामना करना पड़ा था। भोपाल गैस त्रासदी की एक फिल्म में भी उन्होंने भूमिका निभाई थी। उनकी पत्नी मोनिका मिश्रा का 28 मई 2006 को निधन हो गया था। तभी से वे एकाकी जीवन जी रहे थे। अंत में 8 जून 2009 को उन्होंने भी भोपाल में आखिरी सांस ली और फानी दुनिया से रुख्सत हो गए।
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