दरअसल, सिरुगुप्पा तालुक में लगभग 14 वर्ग किलोमीटर में फैला जीआइबी अभयारण्य अब कर्नाटक Karnataka में इन पक्षियों के लिए अंतिम बचा हुआ निवास स्थान है। वन विभाग इन भव्य पक्षियों की शेष बची अंतिम आबादी की सुरक्षा के लिए कुछ तत्काल उपाय करने की योजना बना रहा है। वन विभाग द्वारा नियोजित उपायों में पक्षियों की जीपीएस-टैगिंग, अंडों से कृत्रिम रूप से बच्चे निकालना, युवा पक्षियों को जंगल में लाना, स्थानीय समुदायों को शामिल करना और सिरुगुप्पा में एक शोध केंद्र स्थापित करना शामिल है।
वन विभाग के बल्लारी डिवीजन ने राज्य सरकार से अनुरोध किया है कि वह सिरुगुप्पा और उसके आसपास के इलाकों में देखे गए इन दो पक्षियों की जीपीएस टैगिंग की अनुमति दे। वन विभाग ने कर्नाटक-आंध्र प्रदेश सीमा पर पक्षियों की आवाजाही पर लगातार नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे पहले ही लगा दिए हैं।
भारत India के जंगलों में 200 से भी कम जीआइबी मौजूद हैं। इनमें से ज्यादातर राजस्थान RAJASTHAN में प्रजनन कर रहे हैं। गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में कुछ ही पक्षी दिखे हैं। कर्नाटक में पक्षियों की संख्या सबसे कम है। वन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार दो दशक पहले तक कर्नाटक के पांच जिलों में ये पक्षी दिखते थे। लेकिन, अब ये सिर्फ सिरुगुप्पा तक ही सीमित रह गए हैं।
सूर्यवंशी ने कहा, हमने जागरूकता लाने के लिए बल्लारी जिले में स्थानीय समुदायों, किसानों और स्कूली बच्चों को शामिल किया है। हमारे निरंतर प्रयासों से इन पक्षियों के अवैध शिकार में कमी आई है।
वन विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा, छह महीने पहले, हमने छह पक्षियों की गिनती की थी। यह संभव है कि शेष चार आंध्र प्रदेश में चले गए हों। सिरुगुप्पा में उनकी उड़ान वरीयताओं और आवासों की निगरानी करना महत्वपूर्ण है। हमने सरकार से इन पक्षियों को जीपीएस-टैग करने की अनुमति देने का अनुरोध किया है।
राज्य सरकार ने जीआइबी संरक्षण के लिए 24 करोड़ रुपए जारी करने पर सहमति जताई है। इसमें से 6 करोड़ रुपए जिला खनिज निधि और कल्याण कर्नाटक क्षेत्रीय विकास निधि के तहत पहले चरण में आवंटित किए गए हैं, ताकि सिरुगुप्पा में जीआइबी अनुसंधान केंद्र का निर्माण किया जा सके और जीपीएस GPS टैगिंग और जीआइबी के कृत्रिम प्रजनन जैसे प्रयोग किए जा सकें।