आचार्यश्री विद्यासागर के समाधिस्थ होने के बाद संघ के आचार्य पद पर पदारोहण मंगलवार को कुंडलपुर में हुआ। विद्यासागर जी के सांसारिक जीवन के छोटे भाई और पहले शिष्य समय सागर को उच्चासन पर बैठाया। इस अवसर पर मुनिसंघ और आर्यिकाओं का उन्हें विनय करते देख माहौल भावुक हो गया। निर्यापक मुनियों और मुख्य अतिथि ने आचार्य समय सागर को पदारोहण कराया। सोने के कलशों से उनके पाद प्रच्छालन किए गए। निर्यापक मुनि नियम सागर ने मंत्रोच्चार कर आचार्य पदारोहण की विधि संपन्न कराई। आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ द्वीप प्रज्ज्वलन कर किया। आचार्यश्री से जुड़े वृतांतों पर अपने विचार रखे। साथ ही भारत को इंडिया नहीं भारत बनाने के लिए सभी से एक होने की बात कही।
सीएम डॉ. मोहन यादव (mp cm dr mohan yadav) ने कहा कि सागर आयुर्वेदिक कॉलेज का नाम आचार्य विद्यासागर महाराज के नाम पर किया है। सीएम ने कहा कि उन्हें आचार्यश्री से कई बार मिलने का अवसर मिल चुका है। उन्हीं के आशीर्वाद से मैं पहली बार सत्ता में आया हूं। पहली कैबिनेट में खुले में मांस पर प्रतिबंध लगाने का काम किया। आचार्य समय सागर महाराज से मप्र वासियों के लिए आशीर्वाद भी मांगा।
अब समय सागर जी बढ़ाएंगे जीवन का रथ
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत (rss chief mohan bhagwat) ने कहा आचार्यश्री विद्यासागर से मेरा पहला परिचय जबलपुर के पास हुआ था। इसके बाद उनसे कई बार मिला। वे कहते थे भारत को भारत कहो, इंडिया मत कहो, क्योंकि भारत को भारत कहेंगे तो भारत को भारत समझकर जानेंगे। उन्होंने कहा, अब समय सागर जी के मार्गदर्शन की छाया में अपने जीवन का रथ आत्म सुखाय और सर्व जन सुखाय आगे बढ़ता रहे।
समयसागर जी के आचार्य बनने के बाद पहला प्रवचन
कुंडलपुर में नवीन आचार्य समय सागर महाराज ने पद संभालने के बाद धर्मसभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा, संत पुरुषों के चरण स्पर्श से यह धरती पवित्र हो रही है। आपका सौभाग्य है कि आपको गुरुदेव आचार्य विद्यासागर को जानने का अवसर मिला, उन्होंने पूरे विश्व के लिए प्रकाश दिया है। जो गुरुदेव ने किया है वो न भूतो: न भविष्यति है। ऐसा प्रकाश वही दे सकते हैं। सत्य और शील का अवलंबन धारण किया है। भगवान भक्ति और पूजा से प्रसन्न नहीं होते हैं। भगवान की आज्ञा का अनुपालन जब हृदय से करते हैं तब भगवान प्रसन्न होते हैं। आजकल लोग औपचारिक भक्ति कर कर रहे हैं। प्रभु का दर्शन साक्षात हमने नहीं किया ना और ना ही आपने। प्रभु का स्वरूप गुरु में ही दिखाई देता था।