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देशी पेड़ लगाकर कई चुनौतियों से निपट रहे 66 वर्षीय किसान वेलुपिल्लै

तिरुचि. जिले के लालगुडी तालुक के अलुंदलैपुर गांव के 66 वर्षीय किसान अलमारम वेलुपिल्लै आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें यह प्रसिद्धि वर्षों से सैकड़ों बरगद के पेड़ लगाने और उनका पालन-पोषण करने के लिए मिली है। वेलुपिल्लै के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरों के विस्तार के लिए हरे पेड़-पौधों और वनों […]

चेन्नईOct 17, 2024 / 04:33 pm

P S VIJAY RAGHAVAN

Environment Chennai
तिरुचि. जिले के लालगुडी तालुक के अलुंदलैपुर गांव के 66 वर्षीय किसान अलमारम वेलुपिल्लै आज किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें यह प्रसिद्धि वर्षों से सैकड़ों बरगद के पेड़ लगाने और उनका पालन-पोषण करने के लिए मिली है। वेलुपिल्लै के मुताबिक पिछले कुछ दशकों के दौरान शहरों के विस्तार के लिए हरे पेड़-पौधों और वनों की कटाई में काफी तेजी आई है। इसका प्रभाव मेरे गांव पर भी पड़ा और पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के चलते मेरे गांव के आस-पास के इलाकों में जैसे पेड़ों का अकाल पड़ गया।
पेड़ वे बताते हैं पेड़ों की कमी के चलते मुझे जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियां नजर आने लगीं और इससे बचने के लिए मैंने देशी पौधे लगाने का फैसला किया। इसके लिए पत्नी इलवरसी की मदद से मैंने पहले पक्षियों के बीट से बीज एकत्र किया और करीब 15 साल पहले अपने घर और गांव के पास बरगद के पेड़ लगाना शुरू किया। अब तक मैंने करीब 200 बरगद और 1000 देसी पौधे लगाए हैं।
उन्होंने आगे बताया कि पिछले 15 सालों से हम जलवायु परिवर्तन की समस्या से जूझ रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण कहीं जरूरत से अधिक बारिश हो रही है तो कहीं सूखा पड़ रहा है। इसके अलावा बिन मौसम बरसात की घटना भी आजकल आम बात हो गई है। इस समस्या का इलाज अधिक से अधिक पेड़ लगाना और उन्हें संरक्षित करना है। अधिक पेड़ लगाकर ही हम पर्याप्त वर्षा और ताजी हवा प्राप्त कर सकते हैं।
बरगद और पीपल के पेड़ के कई फायदे

वेल्लुपिल्लै ने पेड़ लगाने का व्यावहारिक लाभ समझाते हुए कहा कोविड-19 के दौरान 2020 में वायरस से संक्रमित होने के कारण मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था। अस्पताल से ठीक होकर घर लौटने के बाद भी जब मुझे सांस लेने में दिक्कत हुई तब घर वालों ने मुझे फिर से डॉक्टर के पास जाने के लिए कहा। हालांकि तब मैंने हफ़्ते भर अपने घर के पास स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे रहने का फैसला किया और इसी से ठीक हो गया। अब मुझे श्वसन संबंधी कोई समस्या नहीं है। दरअसल ताजी हवा समेत कई अन्य फायदों के चलते मैं बरगद और पीपल के पेड़ अधिक लगाता हूं।
पेड़ों का कटना दुखद

उन्होंने इन दोनों पेड़ों की घटती संया पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि घरों के निर्माण और सड़कों के चौड़ीकरण के लिए हरे भरे पेड़ों की कटाई मुझे काफी दुखी कर देती है। बरगद और पीपल जैसे बारिश लाने वाले पेड़ 500 से 1000 साल तक जीवित रहते हैं। गांवों में पहले लगभग हर त्योहार पर इन पेड़ों की पूजा की जाती थी, लेकिन धीरे-धीरे अब यह प्रथा समाप्त होती जा रही है। अगर सेहतमंद और आनंदमयी जीवन जीना है तो इन पेड़ों को कटने से बचाना होगा।
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