दरअसल, भाजपा, कांग्रेस हों या शरद पवार तीनों के लिए यह चुनाव भी सामान्य चुनाव की तरह ही है। हार हो या जीत, उनकी राजनीति में प्रासंगिकता नहीं खत्म होने वाली। भाजपा और कांग्रेस को किसी मोर्चे पर साबित नहीं करना है। शरद पवार, लोकसभा चुनाव में 8 सीट जीतकर दमखम साबित कर चुके हैं। लेकिन, उद्धव ठाकरे, एकनाथ शिंदे और अजित पवार के लिए यह चुनाव बहुत विशेष है और उन्हें राज्य की राजनीति में खुद को साबित करने का सबसे बड़ा अवसर है।
बात उद्धव ठाकरे की करें तो चुनाव आयोग की अदालत में एकनाथ शिंदे गुट के हाथों चुनाव चिन्ह गंवा चुके हैं। लेकिन, विधानसभा चुनाव में ही यह तय होना है कि जनता और कार्यकर्ता किसके साथ हैं। जहां तक शरद पवार की बात है तो लोकसभा चुनाव में वो खुद को साबित कर चुके हैं और बेटी सुप्रिया सुले भी बारामती से लोकसभा चुनाव जीतकर खुद का लोहा मनवा चुकी हैं। लोकसभा में मौका चूक जाने वाले अजीत पवार के सामने विधानसभा चुनाव ही वो अवसर है, जिसमें वे राज्य की राजनीति में खुद को साबित कर सकते हैं। अगर उद्धव ठाकरे हारते हैं तो फिर शिवसेना के उन ख़ांटी कार्यकर्ताओं में भी एकनाथ शिंदे का वर्चस्व बढ़ेगा, हो विपरीत हालात में भी उनके साथ खड़े रहे थे। अगर अजीत पवार लोकसभा के बाद विधानसभा में भी छाप छोड़ने में असफल रहते हैं तो फिर न इधर के रहेंगे न उधर के रहेंगे। अगर शिंदे गुट अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाता है तो फिर एनडीए में भाव कम होगा।
आमने सामने टक्कर में साबित होगा कौन असली – नकली
लोकसभा चुनाव में भले ही उद्धव ठाकरे की शिवसेना को 9 सीटें मिलीं थी लेकिन, उनसे कम सीट पर लड़कर एकनाथ शिंदे का गुट 7 सीटें जीतने में सफल रहा था। ऐसे में असली तस्वीर विधानसभा चुनाव में ही उभरेगी। सभी की निगाहें उन सीटों पर टिकी हैं, जहां दो धड़ों के बीच सीधा मुकाबला है। उद्धव और शिंदे दोनों धड़े 49 सीटों पर आमने-सामने हैं तो शरद पवार और अजित पवार गुट 38 सीटों पर आमने सामने की लड़ाई में है। शरद पवार और अजित पवार के बीच ज्यादातर पश्चिम महाराष्ट्र की सीटों पर आपसी लड़ाई है।