दरअसल, अब जिन हालात में उमर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं, वह पहले से कहीं अलग है। अब जम्मू-कश्मीर पूर्ण राज्य की बजाय केंद्र शासित प्रदेश है और लद्दाख वाला हिस्सा भी अब उससे अलग हो चुका है। सरकार को लगभग हर निर्णय के लिए उपराज्यपाल (एलजी) की ओर देखना होगा। सरकार को वित्तीय फैसले, अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग, भ्रष्टाचार के मामलों में एलजी पर निर्भर रहना होगा। वहीं भाजपा भी मजबूत स्थिति में है। इसके चलते भाजपा अपनी राजनीतिक लड़ाई यहां लड़ती दिखेगी। ऐसे में यहां फिर से रोशनी जमीन घोटाले जैसे भ्रष्टाचार के मामलों की गूंज सुनाई दे सकती है। 25 हजार करोड़ रुपए के कथित घोटाले में कांग्रेस, एनसी और पीडीपी के कई नेताओं पर आरोप लगते रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी चुनाव प्रचार के दौरान भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अलगाववाद के मुद्दे पर एनसी और कांग्रेस को घेरते रहे हैं।
इन चुनावी वादों को पूरा करना दूर की कौड़ी
-स्वायत्तता प्रस्ताव -अनुच्छेद-370 और 35-ए की बहाली -पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना -सभी राजनीतिक कैदियों के लिए माफी -कश्मीरी पंडितों की घाटी में सम्मानजनक वापसी -200 यूनिट मुफ्त बिजली -आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को हर साल 12 एलपीजी सिलेंडर मुफ्त -भूमिहीनों को जमीन देना -गैर-निवासियों पर उचित प्रतिबंध लगाने के लिए कानूनों में संशोधन -बेरोजगारों के लिए रोजगार के अवसर मुहैया
-भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत -आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के परिवारों की महिला मुखिया को हर महीने 5000 रुपए -राज्य के ध्वज की बहाल
विधायकों को टूटने से बचाने की चुनौती
जम्मू-कश्मीर में कुल विधायकों की संख्या 90 है और इंडिया ब्लॉक के पास 48 विधायकों का सामान्य बहुमत है। पीडीपी के समर्थन के बाद यह संख्या 51 तक पहुंच रही है। वहीं कुछ निर्दलीय भी सरकार को समर्थन दे सकते हैं। इसके बावजूद भाजपा के अन्य राज्यों में सरकार बनाने के प्रयासों को देखते हुए यहां पर भी ऐसा होने की संभावना बनी रहेगी। गठबंधन के सामने कांग्रेस के सभी विधायकों को अपने साथ रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि भाजपा के पास 29 विधायक है। वहीं 5 विधायकों को उपराज्यपाल मनोनीत कर सकते हैं। इसके अलावा 7 निर्दलीय, जेपीसी का एक विधायक भी है।
कैबिनेट की पहली बैठक में लाएंगे राज्य का दर्जा बहाल करने करने का प्रस्ताव
नेशनल कॉफ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को पत्रकारों से कहा कि एनसी-कांग्रेस सरकार अपनी पहली कैबिनेट बैठक में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित करेगी। उमर ने कहा कि हमारे और दिल्ली में अंतर है। दिल्ली कभी पूर्ण राज्य नहीं था और किसी ने दिल्ली को राज्य का दर्जा देने का वादा भी नहीं किया था। इसके विपरीत जम्मू-कश्मीर 2019 से पहले एक राज्य था, जिसे अनुच्छेद 370 हटाने के बाद केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री और अन्य वरिष्ठ मंत्रियों ने जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने का वादा किया था। यह भी कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर में तीन कदम उठाए जाएंगे जिसमें परिसीमन, चुनाव और फिर राज्य का दर्जा शामिल था। उन्होंने कहा कि परिसीमन हो चुका है, अब चुनाव भी हो चुके हैं, इसलिए केवल राज्य का दर्जा बचा है, जिसे बहाल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने रोजगार, विकास, राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए वोट दिया है। नई दिल्ली के साथ टकराव से इन मुद्दों का समाधान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि वे इस बात से वाकिफ है कि कश्मीर और जम्मू के बीच एक तीव्र विभाजन है। इसलिए आने वाली हमारी सरकार पर जम्मू के लोगों को स्वामित्व की भावना देने की एक बड़ी जिम्मेदारी होगी। सरकार के भीतर उन क्षेत्रों पर विशेष जोर दिया जाएगा, जहां से इस गठबंधन में विधायकों की संख्या कम होगी।
मनोनीत विधायकों से भी नहीं बना पाएगी भाजपा सरकार
उमर ने उपराज्यपाल को पांच विधायक मनोनीत नहीं करने की सलाह दी है। क्योंकि उन पांच विधायकों को नामित करने के बाद भी भाजपा सरकार नहीं बना पाएगी। उन्हें केवल विपक्ष में बैठने के लिए नामित किया जाएगा, जिससे विवाद होगा। तब फिर हमें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना होगा, जबकि हम केंद्र के साथ सौहार्द्रपूर्ण संबंध रखना चाहते हैं। चुनाव जीतने वाले कुछ निर्दलीय पहले से ही हमारे संपर्क में हैं।