कौन दे रहा है इस कानून को चुनौती?
देशद्रोह की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, अरूण शौरी, महुआ मोइत्रा और कुछ अन्य लोगों की ओर से दाखिल की गई हैं। जिस पर सीजेआई एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर केंद्र से इस पर जवाब दाखिल करने को कहा था लेकिन केंद्र सरकार ने इसके लिए और समय मांगा। केंद्र की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई तक का समय दिया है। 10 मई को इस मामले पर फिर से सुनवाई होगी।
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क्या है देशद्रोह की धारा 124A?
भारतीय कानून संहिता (IPC) की धारा 124-ए में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता है या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, तो उसे आजीवन कारावास या तीन साल की सजा हो सकती है।
कहां से आया नियम?
सैडीशन लॉ यानि देशद्रोह कानून ब्रिटिश सरकार की देन है। आजादी के बाद इसे भारतीय संविधान ने अपना लिया। देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था। इसे 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अब ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये विवादित कानून आज भी मौजूद है।
सबसे पहले किस पर किया गया इस कानून का इस्तेमाल?
1870 में बने इस कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों ने स्वतंत्रता आंदोलन के समय महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं के खिलाफ किया था। महात्मा गांधी पर इसका इस्तेमाल वीकली जनरल में ‘यंग इंडिया’ नाम से आर्टिकल लिखे जाने की वजह से किया गया था। यह लेख ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लिखा गया था।
किन-किन पर लगा देशद्रोह का कानून और क्या थे मामले?
– महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर इस कानून का इस्तेमाल देश की आजादी से पहले किया गया था। देश के आजाद होने के बाद इसका इस्तेमाल बिहार के रहने वाले केदारनाथ सिंह पर 1962 में किया गया। जिस पर हाई कोर्ट ने रोक लगा दी थी।
– 2010 को बिनायक सेन पर नक्सल विचारधारा फैलाने का आरोप लगाते हुए उन पर इस केस के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। बिनायक के अलावा नारायण सान्याल और कोलकाता के बिजनेसमैन पीयूष गुहा को भी देशद्रोह का दोषी पाया गया था। इन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी लेकिन बिनायक सेन को 16 अप्रैल 2011 को सुप्रीम कोर्ट की ओर से जमानत मिल गई थी।
– 2012 में काटूर्निस्ट असीम त्रिवेदी को उनकी साइट पर संविधान से जुड़ी भद्दी और गंदी तस्वीरें पोस्ट करने की वजह से इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया। यह कार्टून उन्होंने मुंबई में 2011 में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए एक आंदोलन के समय बनाए थे।
– तो वहीं 2012 में हीं तमिलनाडु सरकार ने भी कुडनकुलम परमाणु प्लांट का विरोध करने वाले 7 हजार ग्रामीणों पर देशद्रोह की धाराएं लगाईं थी।
– 2015 में हार्दिक पटेल कन्हैया कुमार से पहले गुजरात में पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाले हार्दिक पटेल को गुजरात पुलिस की ओर से देशद्रोह के मामले के तहत गिरफ्तार किया गया था।
क्यों खत्म न हो देशद्रोह क़ानून?
पिछले साल सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि इसका भारी दुरुपयोग किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि इस कानून को क्यों नहीं खत्म कर देना चाहिए, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने किया था। इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने कहा कि “देशद्रोह के अपराध से निपटने वाले आईपीसी के तहत प्रावधान को ख़त्म करने का कोई प्रस्ताव नहीं है”। साथ ही सरकार ने कहा कि “राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्वों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए प्रावधान को बनाए रखने की आवश्यकता है”।