इस सबके बीच जब अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की, तब उन्हें अपनी कंपनी में काम करने और मिलों में मजदूरों की जरूरत थी। क्योंकि पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत थी, इसलिए उनके लिए मजदूरों का इंतजाम करना मुश्किल काम नहीं रहा. अंग्रेजों ने अपनी मिलों में भारतीय गरीबों को बतौर मजदूर नौकरी दी। दुर्भाग्य यह था कि अब तक अपनी मर्जी से जीने वाला भारतीय अंग्रेजों के इशारों पर जी रहा था। मजदूरों से पूरे सप्ताह काम लिया जाता था।
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लगातार काम करने के कारण मजदूरों की सेहत पर बुरा असर दिखाई देने लगा था। वो बिमार पड़ने लगे, मगर बीमारी की हालत में भी उन्हें काम करना पड़ता था, उसे आराम करने की इजाजद नहीं थी। उस समय सरकार का नियम था कि यदि मजदूर आराम करता है, तो उसके आराम किए गए समय से दोगुना अतिरिक्त समय काम में देना होगा। इससे बचने के लिए मजदूरों ने लगातार काम जारी रखा। इस अत्याचार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति मिलों के मजदूरों को मौत की चौखट पर ला खड़ा किया।इसी बीच पुणे जिले के गरीब परिवार से तालुक रखने वाले नारायण मेघाजी लोखंडे, जो उस समय रेलवे के डाक विभाग में काम करते थे, अंग्रेजों की नौकरी करते हुए उन्हें भी साप्ताहिक अवकाश का सुख नहीं मिला। जिसके बाद उन्होंने बॉम्बे टेक्सटाइल मिल में बतौर स्टोर कीपर काम करना शुरू किया। यही वह जगह थी, जब उन्हें मजदूरों की परेशानियों को नजदीक से देखने और समझने का मौका मिला।
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उन्होने ‘दीन बंधु’ जर्नल की मदद से लोगों तक मजदूरों की दयनीय स्थिति को उजागर किया। उनके लेखों ने क्रांतिकारियों और मजदूरों को काफी प्रभावित किया। इसके बाद 1884 में ‘बॉम्बे हैंड्स एसोसिएशन’ के नाम से पहली बार ट्रेड यूनियन की स्थापना की गई, तो नारायण लोखंडे उसके अध्यक्ष बने। एसोसिएशन के माध्यम से उन्होंने पहली बार अंग्रेजों से 1881 में बने कारखाना अधिनियम में बदलाव करने की बात रखी।
लोखंडे ने मजदूरों के हक में कहा कि मजदूरों को साप्ताहिक छुट्टी मिलना चाहिए ताकि वे अपनी थकान मिटा सकें या अपने लिए भी वक्त नकाल सकें। उनकी ये कोशिश रंग लाई और उनके चलते 10 जून, 1890 को ब्रिटिश शासन ने सबके लिए रविवार के दिन छुट्टी घोषित कर दी। अब आप सोच रहे होंगे की आखिर रविवार के दिन को ही छुट्टी के लिए क्यों चुना गया, तो आपको बता दें रविवार को ही छुट्टी के लिए इस वजह से चुना गया, क्योंकि उस दिन अंग्रेजों की छुट्टी रहा करती थी। रविवार को अंग्रेज चर्च जाते थे। ऐसे में जब हफ्ते में एक दिन छुट्टी देने की बात आई तो अंग्रेजों ने रविवार को सबकी छुट्टी करने का फैसला किया।