दरअसल, 12 नवंबर 2019 को केन्द्रीय राज्य मंत्री कैलाश चौधरी व नागौर सांसद बेनीवाल तेजाजी के धार्मिक उत्सव में भाग लेने बायतु जा रहे थे। इस दौरान तत्कालीन राजस्व मंत्री व पंजाब के कांग्रेस प्रभारी हरीश चौधरी, उनके भाई मनीष चौधरी समेत करीब 100 से अधिक लोगों ने घातक हथियारों से कैलाश व बेनीवाल के काफिले पर हमला कर दिया। बेनीवाल की ओर से दी गई रिपोर्ट में बताया कि जान से मारने की नीयत से हमलावरोंं ने फायर भी किया, जिससे उनके वाहनों के कांच टूट गए। सुरक्षाकर्मियों की तत्परता से दोनों नेताओं ने अपनी जान बचाई। बेनीवाल ने बताया कि हरीश चौधरी उनका राजनीतिक विरोधी है। यह कार्यक्रम हरीश के क्षेत्र में होना था, जिसके चलते बौखलाहट में उन्होंने सुनियोजित तरीके से पुलिस की मौजूदगी में हमला करवा दिया। इस मामले में पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके चलते बेनीवाल ने लोकसभा की विशेषाधिकार समिति में इस मामले को पेश किया। समिति ने करीब तीन साल तक सुनवाई करने के बाद गत 23 सितंबर को राजस्थान की मुख्य सचिव ऊषा शर्मा को आदेश दिया कि 7 दिन में बेनीवाल की रिपोर्ट पर मुकदमा दर्ज कर इसकी सूचना समिति को भेजी जाए।
बाड़मेर एसपी की भूमिका संदिग्ध-बेनीवाल जानलेवा हमला होने के बावजूद इसकी धारा 307,आम्र्स एक्ट का मुकदमा दर्ज नहीं किया गया। विशेषाधिकार समिति ने 23 सितम्बर को 7 दिन में मुकदमा दर्ज कर जांच की प्रगति से अवगत करवाने को कहा। इसके 10 दिनों बाद मुकदमा दर्ज किया गया, जो विशेषाधिकार हनन से जुड़े मामलों की समिति व संसद का अपमान है। एक तरफ सरकार ऑनलाइन एफआईआर की बात करती, जबकि एक सांसद और केंद्र के मंत्री पर जानलेवा हमला नवंबर 2019 में हुआ और अक्टूबर 2022 में इस प्रकरण में आधा अधूरा मामला दर्ज किया जाता है। इससे पता चलता है कि हरीश चौधरी व उसके परिजनों को बचाने का प्रयास किया जाएगा। इस मामले में बाड़मेर एसपी सहित कई पुलिस अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है, जिनके विरुद्ध सरकार को दंडात्मक कार्यवाही करने की जरूरत है।
हनुमान बेनीवाल, संयोजक राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी व सांसद, नागौर