पत्रिका रिपोर्टर व कैमरामेन करीब एक बजे हिंगोरिया स्थित वाटर फिल्टर प्लांट पर पहुंचे। इस दौरान मुख्य गेट पर कोई चौकीदार नहीं था। मुख्य बड़े गेट पर रस्सी बंधी थी। जबकि पास के गेट की कुंदी खोलकर टीम बाइक लेकर अंदर घुसी। इस दौरान तक कोई व्यक्ति नजर नहीं आया। जो आकर पूछे और रोक टोक करें। इसके बाद मुख्य फिल्टर प्लांट पर टीम पहुंची और नीचे पंप हाउस में आवाज लगाकर पूछा कोई है। किसी का जवाब नहीं मिला। जिसके बाद प्रथम तल पर टीम पहुंची। इस दौरान प्रयोगशाला खुली पड़ी थी। वाटर पंप चल रहे थे। वहां भी कोई मौजूद नहीं था। फिल्टर खुले पानी टेंक तक टीम गई। पानी में हाथ डालकर चैक किया। लेकिन इस दौरान भी वहां रोकने और टोकने वाला कोई नहीं आया। करीब पौन घंटे तक घूमने के बाद वह पास के पंप हाउस पर पहुंचे तो वहां पंप ड्राइवर सुनील दिखा। उससे पूछा कि यहां कोई नहीं है क्या। उसने कहा साहब हम है। हमने कहां कि लेब व फिल्टर प्लांट में पौन घंटे से घूम रहे थे। कहां थे, साहब खाना खा रहे थे। यहां पर सुरक्षा गार्ड नहीं है। एक पंप कुली भैरूलाल और पंप खलासी देवी सिंह है। लेब के प्रीाारी सुरेश पंवार सुबह ९ से ११ बजे तक ही रहते हैं। उससे कहा कि यहां का ध्यान नहीं रखते हो, कोई भी पानी में कुछ मिला जाए तो कितना बड़ा हादसा हो सकता है। उसका कहना था कि क्या करें साहब, यहां की हालत काफी खराब है और उसने असामाजिक तत्वों की समस्या बताई।
पंप ड्रायवर सुनील ने बताया कि पीछे बांछड़ा समुदाय के लोग यहां पर कच्ची शराब छिपाते है। उन्हें रोकते है तो धमकाते है। यहां पर अकेले नौकरी भी करने आना होता है। इस कारण डर से उनसे कुछ नहीं कहते हैं। वहंीं रात को यहां शराब भी पीकर बोतल फेंक जाते हैं। यहां पर सुरक्षा गार्ड होने चाहिए। जो कि इनको भी रोक सके और सुरक्षा भी दे सके।
सीएमओ- स्टाफ की कमी है, गेट वहां पर बंद रहता है।
पत्रिका- सर, बड़ा गेट बंद था, लेकिन छोटे गेट को खोलकर आराम से बाइक लेकर पहुंचे थे, किसी ने नहीं रोका।
सीएमओ- अगर सुरक्षा गार्ड तैनात करते है तो करीब तीन लगेंगे। जिसका खर्च करीब तीन लाख आएगा, बजट की दिक्कत है।
पत्रिका- शहर के लाखों लोग की सुरक्षा का सवाल है।
सीएमओ- मौजूदा स्टाफ को हिदायत दी जाएगी, एक न एक वहां पर हमेशा मौजूद रहे।