ममता के प्रस्ताव को सिरे से खारिज किया
कांग्रेस नेता व सांसद अधीर रंजन चौधरी ने प्रस्ताव को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। तर्क दिया जब राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के प्रभाव को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार करने में बात हुई तो सीएम ममता ने इस पर अपनी अनिच्छा दिखाई। उनका यह व्यवहार कांग्रेस के बारे में उनकी वास्तविक धारणा को उजागर करती है।
गठबंधन को लेकर ममता की है अलग थ्योरी
अधीर रंजन चौधरी ने बताया, गठबंधन के बारे में ममता बनर्जी का मानना है कि, अपने क्षेत्रों में ताकत रखने वाले दलों को सीधे भाजपा का मुकाबला करना चाहिए। जैसे दिल्ली में आप, बिहार में राजद-जद-यू, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और तमिलनाडु में द्रमुक-कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस। हमने कर्नाटक में कांग्रेस का समर्थन किया था, अब उन्हें पश्चिम बंगाल में भी हमारे साथ वैसा ही करना चाहिए। कई राज्यों में विपक्षी दल एकजुट होकर चला रहे सरकार
अगर राज्यों की बात करें तो कई राज्यों में विपक्षी दल एकजुट हैं। बिहार में कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड का महागठबंधन सत्ता में हैं। झारखंड में भी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद का गठबंधन सत्ता में है। महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का महाविकास अघाड़ी गठबंधन सत्ता में था।
पर बात हो रही है कि राष्ट्रीय स्तर पर कौन सा दल विपक्षी दलों के गठबंधन का नेतृत्व करेगा। तो अब लगता है कांग्रेस का कुछ माहौल बन रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण ममता बनर्जी की पेशकश है।
कांग्रेस से ममता बनर्जी ने शुरू किया अपना राजनीतिक कैरियर
कांग्रेस और ममता बनर्जी का सम्बंध क्या है। तो सत्तर के दशक में कॉलेज में पढ़ रही ममता बनर्जी को राज्य महिला कांग्रेस का महासचिव बनाया गया। 1984 में ममता ने सीपीएम के वरिष्ठ नेता सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर लोकसभा सीट से हराया सब हतप्रभ रह गए। इस विजय के साथ देश की सबसे युवा सांसद बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
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सात बार लोकसभा सांसद बनीं
कोलकाता दक्षिण संसदीय सीट से वो 1991,1996, 1998, 1999, 2004 और 2009 में निर्वाचित हुईं। 1991 में ममता, नरसिम्हा राव सरकार में मानव संसाधन विकास, युवा मामलों और महिला एवं बाल विकास विभाग में राज्य मंत्री बनीं। वह नरसिम्हा राव सरकार में खेल मंत्री भी बनाई गईं। बस यही से उनकी नाराजगी शुरू हुई।
नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाया
कांग्रेस का हाथ छोड़कर अप्रैल 1998 में ममता बनर्जी ने नई पार्टी तृणमूल कांग्रेस बनाया। 1998 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने 8 सीटों पर कब्जा किया। और एनडीए का हिस्सा बन गईं। पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते मूल्य का विरोध करते हुए उन्होंने साल 2001 में एनडीए से इस्तीफा दे दिया।
2004 में फिर से एनडीए से नाता जोड़ा
पर जनवरी 2004 में वे फिर से एनडीए सरकार में शामिल हो गईं। 20 मई 2004 को आम चुनावों में सिर्फ ममता ही चुनाव जीत सकीं। अब की बार उन्हें कोयला और खान मंत्री बनाया गया। ममता को 2005 से 2009 में बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। यह भी पढ़ें – नीतीश की विपक्षी एकता मुहिम को बड़ा झटका यूपीए से साल 2009 में ममता ने तोड़ा नाता
अपने अस्तिव को बचाने के लिए ममता बनर्जी ने यूपीए साल 2009 में नाता जोड़ लिया। इस गठबंधन को 26 सीटें मिलीं और ममता फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गईं। 2011 में ममता राज्य की मुख्यमंत्री बनीं। ममता ने 18 सितंबर 2012 को यूपीए से अपना समर्थन वापस ले लिया। तब से अब ममता ने कांग्रेस की तरफ अपना झुकाव दिखाया।
यूपीए क्या है जानें ?
यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) का गठन 2004 में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में हुआ था। इसमें कांग्रेस समेत कुल 13 पार्टियां शामिल थीं। वर्तमान में यूपीए में 19 दल शामिल हैं। मौजूद वक्त में एक बार फिर मोदी सरकार विपक्षी गठबंधन तैयार हो रहा है। अब इसका नाम क्या होगा कुछ नहीं कहा जा सकता है।
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