लोकसभा चुनाव के 7वें और अंतिम चरण के तहत शनिवार 1 जून को 8 राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों की 57 लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों पर चुनाव प्रचार के आखिरी दिन, चुनाव प्रचार अभियान की समाप्ति के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीन दिवसीय आध्यात्मिक यात्रा पर ध्यान लगाने के लिए कन्याकुमारी पहुंच गए हैं। प्रधानमंत्री के कन्याकुमारी जाने के बाद से ही इंटरनेट पर लोग लगातार कन्याकुमारी के बारे में सर्च कर रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कन्याकुमारी का नाम पहले कन्याकुमारी नहीं था और इसका नाम बदलने की जरुरत क्यों पड़ी? तो टेंशन मत लीजिए आपको इस आर्टिकल में पूरी जानकारी मिलेगी।
कन्याकुमारी भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।
तीन सागरों का होता है मिलन कन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।
भगवान शिव से जुड़ा है किस्सा कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया।
दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर सागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर है।