scriptExclusive Interview: संसद में हंगामा लोकतंत्र की जड़ों पर आघात, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से बातचीत | Rajya Sabha Dy chairman Harivansh Narayan Singh Exclusive Interview With Rajasthan Patrika | Patrika News
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Exclusive Interview: संसद में हंगामा लोकतंत्र की जड़ों पर आघात, राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से बातचीत

सदन को लेकर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने पत्रिका की वरिष्ठ संवाददाता डॉ. मीना कुमारी से खास बातचीत की। उन्होंने कहा संसद में हंगामे या अकल्पनीय दृश्यों के लिए कोई जगह नहीं है।

नई दिल्लीJan 02, 2025 / 11:21 am

Kamlesh Sharma

नई दिल्ली. लोकतंत्र की सफलता संवाद, सहमति और समर्पण पर निर्भर है। ऐसे में संसद में आसन की भूमिका फैसिलिटेटर की है, जो पक्ष-विपक्ष को साथ लाने का प्रयास करती है। सदन में आसन की भूमिका को लेकर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश से पत्रिका वरिष्ठ संवाददाता डॉ. मीना कुमारी ने खास बातचीत की । उन्होंने कहा, संसद में हंगामे या अकल्पनीय दृश्यों के लिए कोई जगह नहीं हो है। उनसे बातचीत के कुछ अंश ।

सवाल: पत्रकारिता से संसद तक की यात्रा और अनुभव कैसे रहे?

जवाब: हमारी पत्रकारिता से संसद तक का सफर अनुभवों और सीखों से समृद्ध है। राजस्थान पत्रिका से प्रेरणा भी इसमें है। 1977 में आपातकाल के बाद, टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में बतौर ट्रेनी पत्रकार चयनित हुआ। कुलिशजी की पुस्तक ‘मैं देखता चला गया’ ने हमारी पत्रकारिता की दृष्टि को गहराई दी। धर्मयुग और रविवार ने बाद प्रभात खबर से जुड़ा। तब क्षेत्रीय अखबारों की ताकत और समाज पर उनके प्रभाव को गहराई से समझा। बिहार आंदोलन और जयप्रकाश नारायण के विचारों से प्रभावित होकर पत्रकारिता को सामाजिक बदलाव का माध्यम बनाने का निर्णय लिया। 27 साल की क्षेत्रीय पत्रकारिता में जमीनी अनुभव के बाद, पत्रकारिता से राजनीतिक यात्रा शुरू हुई। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी के सौजन्य से 2014 में राज्यसभा सदस्य बना । 2018 में एनडीए के समर्थन से उपसभापति पद तक पहुंचा।

सवाल: आपने राज्यसभा के कार्यकाल क्या प्रमुख बदलाव और सुधार किए।

जवाब: राज्यसभा की कार्यप्रणाली और लोकतंत्र में उसकी भूमिका पर चर्चा बेहद महत्वपूर्ण है। आज भी देश के अधिकांश नागरिक नहीं जानते कि राज्यसभा और लोकसभा कैसे काम करते हैं। आजादी के बाद राज्यसभा के लिए जो नियम बनाए गए थे, उनमें अब तक 13 संशोधन हुए हैं, जिनमें से अधिकांश कांग्रेस के शासनकाल में हुए। 2014 के बाद से कोई नया संशोधन नहीं हुआ है। राज्यसभा और लोकसभा का संचालन उन्हीं नियमों के अनुसार होता है। किसी भी संशोधन के लिए सभी दलों के सदस्यों से विमर्श एवं सदन की सहमति आवश्यक होती है। राज्यसभा या लोकसभा के कामकाज से संबंधित नियमों, कामकाज की प्रक्रिया में संशोधन की एक संवैधानिक प्रक्रिया है। इसमें सभी दलों की सहमति चाहिए। इसके बाद यह संबंधित सदन में जाता है। सदन के द्वारा यह अप्रूव होता है। तब यह संशोधन मान्य होता है। इस तरह यह एक लंबी प्रक्रिया है और आसान नहीं है।

सवाल: विपक्ष और सरकार के बीच संवाद बेहतर करने के लिए आपने क्या प्रयास किए हैं?

जवाब: लोकतंत्र की सफलता संवाद, सहमति और समर्पण पर निर्भर है। संसद में आसन की भूमिका केवल फैसिलिटेटर की होती है, जो पक्ष-विपक्ष को साथ लाने का प्रयास करती है। संसद में होने वाली बहस और चर्चाओं का क्रम एवं समय बिजनेस एडवाइजरी कमेटी के माध्यम से तय होती है। इस कमेटी में सभी दलों के सदस्य एवम् संसदीय कार्य मंत्री होते हैं। हाल के वर्षों में राष्ट्रपति अभिभाषण समेत कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा का समय बढ़ा है, माननीय सभापति महोदय के सौजन्य से। पर इसका सदुपयोग पक्ष-विपक्ष की सामूहिक जिम्मेदारी है। सरकार पर समयबद्ध डिलीवरी का जनदबाव होता है, क्योंकि वह एक निश्चित समय पाँच साल के लिए चुनी जाती है और जनता के प्रति जवाबदेह है। यदि संसद में बहस या निर्णय अवरूद्ध होते हैं तो इससे सरकार की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसी कारण, संसद में काम काज सुचारु रूप से चलने की आवश्यकता होती है। दुर्भाग्यवश, कभी-कभी सदस्य अनावश्यक मुद्दों को मीडिया में ले जाते हैं, मसलन, जो विषय स्वीकृत नहीं हैं या जिन पर माननीय सदस्यों ने नोटिस दिया, उन पर बिना चर्चा किए बात पहले मीडिया में जाती है। दो तीन दशक पहले यह होता था कि पहले मुद्दे संसद में उठते थे या उन पर चार होती थी, तब मीडिया में बात आती थी। अब स्थिति पलट रही है। जो सुखद नहीं है।

सवाल: हंगामे से लोकतांत्रिक व्यवस्था किस तरह से प्रभावित होती है।

जवाब: विधाईका या संसद हंगामा या अकल्पनीय दृश्यों के लिए नहीं है। इसे मर्यादित ढंग से चलाना चाहिए। आज हम संविधान का पालन कितना करते हैं? संसद में अत्यंत महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग जब व्यवधान के कारण नहीं बोल पाते, तो यह दृश्य संविधान की मूल भावना के विपरीत हैं। भारत का संविधान, विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान, सर्वसम्मति से देशहित को प्राथमिकता देकर बनाया गया।

सवाल: क्या लगातार हंगामे की वजह से संसद की छवि प्रभावित हो रही है?


जवाब: गांधीजी हमारी प्रेरणा के केंद्र हैं। उन्होंने 1929 में कहा था कि अनुशासन को न मानना सबसे बड़ी हिंसा है। यह बात आज के परिप्रेक्ष्य में बेहद प्रासंगिक है, खासकर जब विधायिका और संसद के भीतर अनुशासनहीनता का माहौल देखने को मिलता है। अगर यहां अनुशासन नहीं होगा, तो पूरे देश में लोकतंत्र की संस्कृति बिगड़ेगी। अगर सदस्य खुद अनुशासित न हों, तो चेयर की कार्यवाही भी विवाद का मुद्दा बन जाती है। हमें विधायिका को उसकी गरिमा में बनाए रखना होगा। संविधान को सर्वोपरि मानना होगा, न कि निजी और राजनीतिक विचारों को।

सवाल: आपके अनुसार राज्य सभा का भविष्य किस दिशा में जाना चाहिए?


जवाब: देखिए, राज्यसभा में होने वाली बहसों की गुणवत्ता पर गौर करें। हर पक्ष में ऐसे वक्ता हैं ,जो बेहद प्रभावशाली तरीके से अपनी बात रखते हैं। यह परंपरा पहले भी थी, लेकिन लोकतंत्र में बहसों का स्तर 1965-67 के बाद तेजी से गिरने लगा। इस गिरावट को रोकने की जिम्मेदारी सभी राजनीतिक दलों की है। दलों को समझना चाहिए कि देश को मजबूत बनाने के लिए सर्वसम्मति की राजनीति, विशेषकर राष्ट्रीय हित में, आवश्यक है।


सवाल: क्या तकनीकी और डिजिटल साधनों से कार्यवाही बेहतर बनाई जा सकती है?

जवाब: 2014 के बाद संसद में डिजिटलीकरण और आधुनिकरण ने जो रफ्तार पकड़ी है, वह अद्वितीय और अनुकरणीय है। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हर सांसद अपने देश के प्रति और सकारात्मक दृष्टिकोण कैसे अपनाएं। भविष्य हमारे सामने है, जिसे हमें मिलकर गढऩा होगा। हमारी प्राथमिकता आर्थिक समृद्धि होनी चाहिए., क्योंकि इसके बिना भारत की समस्याओं का समाधान संभव नहीं।

सवाल: राजनीतिक सहमति के लिए कौन कौन से मुख्य मुद्दे हो सकते हैं?

जवाब: भारत की आर्थिक ताकत को लेकर एक स्पष्ट दृष्टिकोण हर दल में होना चाहिए। चाहे सरकार कोई भी हो, हमें याद रखना चाहिए कि डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए हमेशा यही कहा था कि आर्थिक रूप से मजबूत बनना देश का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। भारत दुनिया के सबसे बड़े देश के रूप में खड़ा है, हमारी आबादी 143 करोड़ के पार हो चुकी है।क्षेत्रफल में हम सातवें नंबर पर हैं। यह संख्या किसी और देश की आबादी से कहीं अधिक है। इतने बड़े देश में हम किस तरह से आने वाले वर्षों में नौकरियां उत्पन्न करें, आर्थिक समृद्धि लाएं,इस पर ध्यान देने की जरूरत है। और ऐसे विषय पर सबके बीच सहमति होनी चाहिए।

सवाल: युवाओं की राजनीति में सहभागिता बढ़ाने और जागरूक करने के कौन से मुद्दे हो सकते हैं।

जवाब: हाल ही में वन नेशन, वन इलेक्शन के प्मुद्दे पर देश में चर्चा हो रही है। इस पर संसद की एक कमिटी भी है। हमें उम्मीद है कि जब इस पर बहस होगी तो खुले मन से हर पहलू पर समृद्ध चर्चा होगी। बाबा साहब आंबेडकर भी संसद को विमर्श का श्रेष्ठ केंद्र मानते थे। और श्रेष्ठ बहसों में ही इसकी उपयोगिता भी देखते थे। माननीय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी की अगुवाई में गठित वन नेशन वन इलेक्शन से संबंधित कमिटी ने एक रिपोर्ट दी है। इसमें एक पहलू आर्थिक है। समिति की रिपोर्ट है कि यह होने से देश का जीडीपी एक से डेढ़ प्रतिशत बढ़ सकती है। यह इशू सीधे देश की आर्थिक समृद्धि और विकास से जुड़ा है। विकसित भारत या आर्थिक रूप से समृद्ध भारत में ही भारतीय युवाओं समेत हरेक नागरिक का भविष्य श्रेष्ठ बनेगा। युवा पीढ़ी के लिए एक अहम विषय है । साथ ही युवा भारतीय लोकतंत्र के प्रति कैसे जागरूक हों, यह प्रयास भी संसद द्वारा 2014 के बाद इनोवेटिव ढंग से हो रहा है । मसलन, पहले संसद में फ्लोरल ट्रिब्यूट्स केवल रस्म बन कर रह गए थे, लेकिन अब माननीय प्रधानमंत्री जी के सुझाव पर इसे युवा पीढ़ी के साथ बहुत अच्छी तरह से जोड़ा जा रहा है। साथ ही अन्य कई प्रयास हो रहे हैं।
Harivansh Narayan Singh

सवाल: आपके लिए संसद में सबसे चुनौतीपूर्ण और संतोषपूर्ण क्या रहा है?

जवाब: संसद में सबसे अच्छा समय वह होता है जब सबसे अच्छी बहस हो। इससे यह अनुभूति होती है कि हम सबने मिलकर देश के लिए कुछ योगदान किया। इस पद पर आने के बाद, हमने हर दिन को चुनौतीपूर्ण माना और सोचा कि हम सब मिलकर कैसे संसदीय कामकाज को बिना गतिरोध कैसे आगे बढ़ा सकते हैं। सबसे दुखद क्षण वह होता है , जब संसदीय समय बर्बाद होता है। अगर कुछ सदस्यों के कारण संसद नहीं चलती, तो लगता है कि यह अन्य सदस्यों के अधिकारों का हनन है।

सवाल: सांसदों की भागीदारी बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए गए?

जवाब: राज्यसभा और लोकसभा के कार्य संचालन के लिए एक निश्चित पद्धति है, जो नियम और प्रक्रिया पर आधारित है। इसके तहत सामूहिक रूप से मिलकर बिजनेस एडवाइजरी कमिटी में सभी दल के फ्लोर लीडर बहस का समय निर्धारित करते हैं। माननीय चेयरमैन को अनुरोध कर, उनकी स्वीकृति से बहस की यह अवधि बढ़ाते भी हैं। कई बार सबकी सहमति से दी रात तक बैठते हैं । बहस करते हैं। अपनी बातें रखते हैं।

सवाल: आप किस प्रकार की नीतियों और कानूनों को विशेष प्राथमिकता देते हैं?


जवाब: यह चेयर का काम नहीं है। कानून और नीतियों को प्राथमिकता देने का बुनियादी दायित्व सरकार का है। इसमें आसन का कहीं कोई रोल नहीं है। कारण हमारी व्यवस्था में नीतियां सरकार बनती है, संसद सामने आए मुद्दों पर, सरकारी नीतियों पर श्रेष्ठ बहस और संवाद करे, इसकी देखरेख आसन करता है। सभी सांसद श्रेष्ठ बहस करें तो उसका देश और जनता पर बेहतर, अनुकूल और सकारात्मक असर पड़ेगा। यह हमारा यकीन है।

सवाल: पार्टी और उपसभापति के कामों के बीच कैसे संतुलन बना पाते हैं?


जवाब: उपसंभापति का पद संवैधानिक पद है। भारतीय संसदीय व्यवस्था में शुरू से ही यह स्थापित परंपरा है कि स्पीकर, डिप्टी स्पीकर और डिप्टी चेयरमैन, जब अपने पद पर हैं,तो वे सक्रिय राजनीति से अलग रहें। इन पदों की स्थापित गरिमा, मर्यादा के अनुकूल ही हमारा आचरण रहे, यह शुरू से हमारी कोशिश रही है।

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