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भारत के इन गांवों में रहने वाले लोगों के पास है Dual Citizenship, जानें क्या है वजह?

Dual Citizenship: भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में कुछ ऐसे अनोखे गांव हैं जो दो देशों की सीमाओं पर बसे हुए हैं।

नई दिल्लीDec 19, 2024 / 03:48 pm

Anish Shekhar

Dual Citizenship: भारत में कई ऐसे गांव है जो दो देशों के बीच की सीमा पर बसे हुए है। जहां के निवासियों को एक खास अधिकार मिला हुआ है। इन गांव के लोगों को दोनों देशों की सुविधाओं और सांस्कृतिक विरासत का लाभ उठाने का अवसर मिलता है। यहां की जीवनशैली और संस्कृति में दोनों देशों का प्रभाव देखा जा सकता है। हालांकि, यह स्थिति प्रशासनिक और कानूनी रूप से जटिल होती है, लेकिन यहां के लोग इसे एक अवसर के रूप में देखते हैं और अपने जीवन को दोनों देशों के साथ मिलाकर जीते हैं।
भारत के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्सों में कुछ ऐसे अनोखे गांव हैं जो दो देशों की सीमाओं पर बसे हुए हैं। जैसे भारत और बांग्लादेश के बीच कई ऐसे गांव है जो दोनों देशों की सीमा पर बसे हुए है। ऐसे गांवों की संख्या लगभग 162 है, जिन्हें एन्क्लेव या “छिटमल” कहा जाता है। ऐसा ही एक गांव है लोंगवा जो भरत के उत्तर-पूर्वी राज्य नागालैंड में बसा हुआ है। जहां के लोगों को भारत और म्यांमार दोनों देशों की नागरिकता मिलती है। ऐसे ही कई और भी गांव है जहां के लोग दोहरी नागरिकता का आनंद उठाते है। आज हम इनमें से कुछ प्रमुख गांव और क्षेत्रों के बारे में जानेंगे।
1. दहग्राम और आंगरपोटा ये गांव भारतीय क्षेत्र में बसे हुए हैं, लेकिन पूरी तरह से बांग्लादेशी सीमा से घिरे हुए हैं। इन गांवों को केवल एक संकरी गलियारे के जरिए से भारत से जोड़ा गया है, जिसे ‘टीन बीघा कॉरिडोर’ कहा जाता है। यह कॉरिडोर दोनों देशों के बीच संवाद और व्यापार को बढ़ावा देता है, जिससे गांव के निवासियों को सीमा से भी जुड़े रहने का अवसर मिलता है।
2. बोंगामुरा बोंगामुरा गांव एक अनोखा स्थान है जो बांग्लादेश के अधीन है, लेकिन भारतीय क्षेत्र से घिरा हुआ है। यहां के निवासियों को दोनों देशों की नागरिकता का लाभ मिलता है, जिससे वे दोनों देशों की सुविधाओं का उपयोग कर सकते हैं। गांव की विशेषता यह है कि यह एक सांस्कृतिक मेले का केंद्र है, जहां हर साल बांग्लादेशी और भारतीय नागरिक एकत्रित होते हैं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को साझा करते हैं। इसके अलावा, यहां के लोग एक-दूसरे के साथ अच्छे से खुशी-खुशी रहते हैं, जो इस गांव को एक अनोखी और खास जगह बनाता है।
3. दौलतपुर दौलतपुर गांव बांग्लादेश में स्थित है, लेकिन यह भारतीय सीमा से सटा हुआ है। यहां के निवासियों को दोनों देशों की सुविधाओं का लाभ मिलता है। दौलतपुर की खासियत इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आपसी अच्छा व्यवहार है। यहां के लोग भारतीय और बांग्लादेशी त्योहारों को मिलजुल कर मनाते हैं। गांव की अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से खेती पर आधारित है, और यहां के किसान आधुनिक और पारंपरिक कृषि तकनीकों का संगम देखते हैं। दौलतपुर में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं दोनों देशों से मिलती हैं, जिससे यह गांव एक अनोखा उदाहरण बनता है।
4. मछलीहाटी मछलीहाटी गांव भारत में स्थित है, लेकिन यह बांग्लादेशी सीमा के बहुत करीब है। यहां के लोग भारतीय और बांग्लादेशी संस्कृतियों का अद्भुत संगम हैं। मछलीहाटी में मछली पालन प्रमुख आर्थिक गतिविधि है, जिससे गांव का नाम भी पड़ा है। यहां के लोग बांग्लादेशी बाजारों में अपनी मछलियों को बेचते हैं और भारतीय बाजारों से वस्त्र और अन्य आवश्यक वस्तुएं खरीदते हैं, जिससे यह गांव दो देशों की जीवनशैली का संगम बन जाता है।
5. फुलबाड़ी फुलबाड़ी गांव भारतीय क्षेत्र में स्थित है, लेकिन यह बांग्लादेशी सीमा के बहुत करीब है। यह गांव इसकी खेती और बागवानी के लिए जाना जाता है। फुलबाड़ी का नाम यहां की खुशबूदार फूलों की खेती के कारण पड़ा है, जो यहां की प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। यहां के लोग भारतीय और बांग्लादेशी बाजारों में अपने फूल बेचते हैं। गांव की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर भी विशेष उल्लेखनीय है, जहां भारतीय और बांग्लादेशी त्योहारों को एक साथ मनाया जाता है। फुलबाड़ी के निवासी अपनी दोनों नागरिकताओं का लाभ उठाते हुए शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार में उन्नति कर रहे हैं।
6. मोहेशखोला भारत के उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय में एक ऐसा अनोखा गांव है जो दो देशों के बीच बसा हुआ है। मोहेशखोला गांव का आधा हिस्सा भारत में है और आधा बांग्लादेश में। इस कारण यहां के लोगों को दोनों देशों की नागरिकता मिलती है। यहां के लोग अपने घर के एक हिस्से में भारतीय कानूनों के तहत रहते हैं और दूसरे हिस्से में बांग्लादेशी कानूनों के तहत। यहां के लोग दोनों देशों की संस्कृतियों का मजा लेते हैं। वे भारत के त्योहारों जैसे दिवाली और होली के साथ-साथ बांग्लादेश के ईद और पोहेला बोइशाख (बांग्ला नववर्ष) भी धूमधाम से मनाते हैं। बच्चों को दोनों देशों की भाषाएं, हिन्दी और बांग्ला, सीखने का मौका मिलता है।
7. लोंगवा नागालैंड राज्य के मोन जिले में स्थित यह गांव भारत और म्यांमार की सीमा पर बसा हुआ है। लोंगवा गांव के निवासी दोनों देशों के नागरिक माने जाते हैं। यहां के लोग बिना वीजा-पासपोर्ट के दूसरे देश में चले जाते हैं। यहां के मुखिया का घर भी दोनों देशों की सीमा पर स्थित है, जिसमें आधा घर भारत में और आधा म्यांमार में है। गांव के लोग म्यांमार में खेती और व्यापार करते हैं जबकि भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठाते हैं।

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