सीजेआई ने लोक अदालतों को विवादों के निपटारे का वैकल्पिक तरीका बनाने की वकालत करते हुए कहा कि चूंकि मध्यस्थता और लोक अदालत के माध्यम से विवादों के निपटारे में बहुत सारी प्रणालीगत खामियां होती है, इसलिए लोक अदालत में बैठने वाले न्यायाधीश अक्सर छोटी रकम पर मामलों का निपटारा करने के लिए सहमत नहीं होते हैं, भले ही पक्षकार तैयार हों। सीजेआई ने एक उदाहरण दिया जब जस्टिस विक्रमनाथ ने समझौते के रूप में एक लाख रुपए देने के प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने सहमति से छह लाख रुपए देने का आदेश दिया।
एक हजार से ज्यादा मामलों का निपटारा
जस्टिस चंद्रचूड़ पहली बार शीर्ष अदालत में पांच दिन तक (29 जुलाई से 2 अगस्त) आयोजित लोक अदालत के बाद अपना अनुभव साझा कर रहे थे। इस लोक अदालत में कई पीठों ने एक हजार से अधिक मामलों का निपटारा किया। सीजेआई ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों के समक्ष आने वाले अन्य मुद्दे पर भी प्रकाश डाला। लोक अदालत में दोनों पक्षों की आपसी सहमति से सुनवाई शुरू होने से पहले विवाद का समाधान किया जाता है। आपसी सहमति से निपटाए गए ऐसा मामलों में किए गए फैसले पर अपील नहीं होती है।
वकीलों और जजों ने मिलकर की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की लोक अदालत में भी पहली बार वकील और न्यायाधीश एक साथ मामलों की सुनवाई करते हुए नजर आए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोक अदालत के पैनल में दो न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के एक वरिष्ठ सदस्य शामिल थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ऐसा करने का उद्देश्य वकीलों को ऑनरशिप प्रदान करना था। यह ऑनरशिप केवल न्यायाधीशों के लिए नहीं है। वकीलों को हमेशा प्रक्रियात्मक मुद्दों के बारे में ज्यादा पता था और हमने उनसे बहुत कुछ सीखा। उन्होंने हमें बताया कि कैसे एक समझौता मामले को फुलप्रूफ बनाया जा सकता है। वकीलों ने हमसे यह भी सीखा कि इस तरह के मुद्दों से निपटने में हम कितनी सावधानी बरतते हैं।’
हम ऊंचे मंच पर बैठने के आदीः सीजेआई
सीजेआइ ने कहा, ‘हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश ऊंचे मंच पर बैठने के आदी हैं। हमारे सामने केवल वकील ही होते हैं। हम अपने मुवक्किलों को शायद ही जानते हैं। जिन लोगों के लिए हम सुप्रीम कोर्ट में न्याय करते हैं, वे हमारे लिए अदृश्य हैं। हमें लगता है कि यह सुप्रीम कोर्ट के काम करने के तरीके की कमी है। लेकिन, अनुभवी जज अपने पास आने वाले मामले का चेहरा याद रखने की कोशिश करते हैं। हम उनसे अलग नहीं हैं जो हमारे सामने हैं। हम एक मानव श्रृंखला की तरह एक साथ बंधे हुए हैं।’ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय भले ही दिल्ली में स्थित है, लेकिन यह दिल्ली का सर्वोच्च न्यायालय नहीं बल्कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय है। रजिस्ट्री अधिकारी पूरे भारत के अलग-अलग हिस्सों से हैं।